रमाकांत को पचास वर्ष की आयु में सात पुत्रियों के बाद पुत्र रत्न की प्राप्ती हुयी थी | आज बेटे की छठी बड़े धूमधाम से मनाई जा रही थी | मित्रों और रिश्तेदारों से घर भरा हुआ था कहीं तिल रखने की भी जगाह नही थी घर में | महिलाएँ बधाई गीत गा रहीं थीं | रमाकांत सपत्नी खुशी से फूले नही समा रहे थे | बेटियाँ चुपचाप ये सब देख रहीं थीं | सबसे छोटी बेटी जो मात्र तीन वर्ष की थी अपनी सबसे बड़ी बहन की गोद में बैठी थी | सभी बहने देख रहीं थी कि कैसे सभी उसके नन्हें से भाई को गोद में ले कर स्नेह दिखा रहे थे | माँ पापा भी खुश थे | अचानक ही एक बहन बोली “दीदी हमारे जन्म पर भी ऐसे ही खुशी मनाई गई होगी ना ? बड़ी बहन उसके सिर पर प्रेम से हाथ फेरते हुए बोली “ना रे दादी कहती है की बाबू (नन्हा भाई) से ही इस घर का वंश चलेगा, हम सब अपने घर का वंश चलाएँगी |”
“तो क्या ये हमारा घर नही है ?” छोटी बहन ने उत्सुकता से पूछा |
“दादी कहती है कि हम सब परायाधन हैं, ये हमारा अपना घर नही है |” छोटी बहन उदास हो कर अपनी दादी को देखने लगती है जो पोते की बलईयाँ लेते नही थक रही है |
मीना पाठक
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
सच कहा आप ने आ० प्राची जी ये लघुकथा आँखों देखी ही है और कई गर्भ में ही मार दी गयीं | कई का जन्म इस लिए हो गया कि किसी बार किसी स्वामी जी ने तो किसी बार किसी स्वामी जी ने ये विश्वास दिलाया था कि अब की बेटा ही होगा और हर बार जन्मती बेटियाँ रहीं | ऐसा नही कि बेटियों को रमाकांत जी प्यार नही करते पर उनके लालन पालन और शिक्षा पर असर पड़ रहा है | एक मध्यमवर्गी परिवार में इतने बच्चों का होना .. आप सोच सकतीं हैं कि कैसा होगा दृश्य |
मार्गदर्शन के लिए सादर आभार आदरणीया प्राची जी
आदरणीया मीना जी
ये पराया धन का एहसास... ये शब्द ही इतना रूखा है... मन में शुष्कता बेरुखी भर देता है..
मासूम बच्चियाँ शुक्र है उन्हें किसी दानव नें मारा नहीं... वर्ना बेटे की चाहना वाले सात बेटियाँ जीवित रखें , ऐसी मानसिकता के समाज में यह भी कम आश्चर्यजनक नहीं. शुक्र है बच्चियों को बचपन में ही पराया रटा दिया गया... यदि न रटाया जाए तो एक दम परायेपन का दंश भी तो कष्टकर ही है... :)
कथ्य सामयिक है. पर यह लघुकथा आँखों देखी का बखान सी लग रही है..
शिल्प की दृष्टी से अभी काफी कसावट मांगती है यह लघुकथा.
शुभकामनाएं
सादर.
बहुत बहुत आभार आदरणीय सुशील जी
आदरणीया महिमा जी उत्साहवर्धन करती टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार स्वीकारें
जी आ० कल्पना दी सहमत हूँ आप से पर अभी ये अशिक्षा कायम है समाज में | हार्दिक आभार लघुकथा सराहने के लिए | सादर
सत्यता को दर्शाती इस सुंदर लघु कथा के लिए आपको हार्दिक बधाई आदरणीया मीना जी....
आदरणीया मीना जी ..भारतीय समाज में अभी तक कई परिवार इस दकियानूसी सोच के दायरे में जी रहे हैं ... आपने बहुत ही खूबसूरती से अपने लघु कथा में उसे बुना .. हार्दिक बधाई ...
अभी तक यह दक़ियानूसी सोच सिर्फ जहाँ अशिक्षा है, वहीं कायम है। नई पीढ़ी में काफी बदलाव आ चुका है, बल्कि बेटियों को अधिक महत्व और मान, प्यार दिया जाने लगा है। मार्मिक भावपूर्ण सुंदर लघुकथा के लिए आपको बहुत बहुत बधाई
जी आ० अरुन जी .. अभी ये बीमारी पूरी तरह से ठीक नही हुई है | बहुत बहुत आभार स्वीकारें
जी बिल्कुल सही कहा आप ने आदरणीय आशुतोष जी बहुत बहुत आभार आप का | सादर
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