"प्रकाश आपने मेरी बहन की शादी मे जो अँगूठी गिफ्ट की थी न, वह किसी को पसंद नही आयी, भाभी और माँ ने आपका खूब मज़ाक उड़ाया, वो लोग कह रही थीं कि यह घटिया अँगूठी कहाँ से खरीदी है, एक तो बेहद हल्की है और डिजाइन भी देहाती टाइप, चेहरा लटकाए नीतू एक साथ बोल गयी |
"हूउउउ तो यह बात है, अरे भाई तुम्हे तो पता ही है आजकल पैसे की दिक्कत चल रही है इसलिए अँगूठी खरीदी कहाँ, शादी में तुम्हारी माँ ने जो अँगूठी मुझे दी थी वो नई ही पड़ी थी उसी को साफ करवा कर गिफ्ट कर दिया था |
(मौलिक व अप्रकाशित)
पिछला पोस्ट => लघुकथा : कन्या पूजन
Comment
सराहना हेतु आभार प्रिय आशीष नैथानि जी |
आपकी टिप्पणी हेतु आभार आदरणीय जितेंद्र जीत जी |
बहुत बहुत आभार आदरणीय रामनाथ शोधार्थी जी |
आदरणीय डॉक्टर आशुतोष मिश्रा जी, आपकी पाठक-धार्मिता को नमन करते हुए, आपकी अनमोल टिप्पणी हेतु बहुत बहुत आभार |
यह लघुकथा एक ऐसी घटना, जो रिश्तों के मध्य हार्दिक भावों और उद्दात भावनाओं को छोड़ कर रस्मी और छोटेपन की भावनाओं को महत्तम समझने को ही व्यवहार मानती है, को उजागर कर रही है.
परिवारों में अनायास व्याप गयी ओछी बातों को सामने लाने के लिए बहुत-बहुत बधाई.
शुभ-शुभ
कम से कम शब्दों में अहम् बात कह देना ... यही तो खासियत है महोदय, आपकी ... सच्ची बात!
आदरणीय गणेश भैया, कथा का सुन्दर भाव है,
गिफ़्टों के लेन देन में देने वाले के भाव से ज्यादा दाम को देखा जाता है. कथा के लिये बधाई.
...लगता है प्रकाश भाई को ससुराल से बहुत अंगूठियां मिली थीं तभी ससुराल वाले और नीतू पहचान नहीं पाये, वर्ना साडी़ का रंग और पल्लु का डिजाइन याद रखने वाली औरतें मायका की अंगुठी को कैसे नहीं पहचान पायी ????
सादर.
गिफ्ट पसंद आया . बहुत अच्छा आदरणीय बागी जी आनंद आ गया .
वाह बहुत बढ़िया व्यंग्य है ...वास्तव में उपहार परंपरा के नाम पर पैसे का दुरूपयोग और रिश्तों में कटुता यही सब हासिल हो रहा है आजकल
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