For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रावण, रावण को आग लगाये

कलियुग की कैसी माया देखो

रावण, रावण को आग लगाये

दशानन था रावण

इनके हैं सौ- सौ सर

लोभ, मोह, मद, इर्ष्या ,

द्वेष, परिग्रह, लालच,

राग , भ्रष्टाचार, मद, मत्सर

रहे बजबजा इनके भीतर

फिर भी  जरा नहीं शर्माए .

कलियुग की कैसी माया देखो

रावण, रावण को आग लगाये .

पंडित था रावण ,

था, अति बलशाली ,

धर्महीन हैं ये, हृदयहीन ,

विवेकशून्य , मर्यादा से खाली.

आचरण हो जिनका राम सा

जनता जिनके राज्य में

भयमुक्त हो, फूले नहीं समाये.

उन्हें ही हक है, आगे आकर

रावण को आग लगाये .

... नीरज कुमार ‘नीर’

पूर्णतः मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 705

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Neeraj Neer on October 18, 2013 at 10:49pm

आप सभी आदरणीय महानुभावों का हार्दिक अभाव..

Comment by Neeraj Neer on October 18, 2013 at 10:48pm

मेरा लैपटॉप ख़राब होने के कारण मैं समय पर उपस्थित नहीं हो सका क्षमाप्रार्थी हूँ 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 17, 2013 at 9:28pm

सार्थक प्रस्तुति आ० नीरज कुमार जी 

हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 16, 2013 at 10:55am

आज के रावण के तो दस नहीं बीस सर हैं ढूंढो तो और भी मिल जायेंगे ,वो भी रावन को जलाकर अपने को विजयी मानते हैं 

आचरण हो जिनका राम सा

जनता जिनके राज्य में

भयमुक्त हो, फूले नहीं समाये.

उन्हें ही हक है, आगे आकर

रावण को आग लगाये .------रचना में बहुत सुन्दर सन्देश दिया है ,इनको रचना की बहुमूल्य पंक्तियाँ कहूँगी ,बहुत बढ़िया बधाई आपको 

Comment by बृजेश नीरज on October 15, 2013 at 10:40pm

अच्छी रचना है आपकी! इस अभिव्यक्ति पर आपको हार्दिक बधाई!

भाई जी यदि आप चाहते तो रचना और अच्छी हो सकती थी!

Comment by विजय मिश्र on October 15, 2013 at 7:05pm
आज की प्रवंचनालिप्त ,छ्लयुक्त क्षुद्र राजनीति पर यथोचित प्रहार . अनैतिकता ,मर्यादाहीनता और कलुषता को यथोक्त पाठ पढाने की असफल चेष्टा कियी है आपने अपने इस सुगम रचना से .अनेकानेक शुभकामनाएँ नीरजी
Comment by Sushil.Joshi on October 15, 2013 at 5:24am

बहुत ही सटीक प्रस्तुति है आदरणीय नीरज भाई...... सचमुच ही राम का तो अभाव ही है ...... आज तो रावण ही रावण को जला रहा है..... बधाई सत्यता व्यक्त करती इस कृति के लिए....

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 14, 2013 at 3:24pm

दशानन था रावण

इनके हैं सौ- सौ सर

लोभ, मोह, मद, इर्ष्या ,

द्वेष, परिग्रह, लालच,

राग , भ्रष्टाचार, मद, मत्सर

रहे बजबजा इनके भीतर

फिर भी  जरा नहीं शर्माए .

अत्यंत सटीक बात, सही सन्देश देती रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीय नीरज जी

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 14, 2013 at 3:14pm

बिलकुल सही कहा है आपने ..रचना में निहित सन्देश सब तक पहुचे ये जरूरी है ..हार्दिक बधाई के साथ 

Comment by अजीत शर्मा 'आकाश' on October 14, 2013 at 2:59pm

भाई नीर जी, कथ्य अत्यन्त शानदार है..... काव्यात्मकता एवं लयात्मकता का अभाव प्रतीत होता है, ऐसा मैं सोचता हूँ ....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी प्रदत्त विषय पर आपने बहुत सुंदर रचना प्रस्तुत की है। इस प्रस्तुति हेतु…"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, अति सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"गीत ____ सर्वप्रथम सिरजन अनुक्रम में, संसृति ने पृथ्वी पुष्पित की। रचना अनुपम,  धन्य धरा…"
9 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ पांडेय जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"वाह !  आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त विषय पर आपने भावभीनी रचना प्रस्तुत की है.  हार्दिक बधाई…"
13 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ पर गीत जग में माँ से बढ़ कर प्यारा कोई नाम नही। उसकी सेवा जैसा जग में कोई काम नहीं। माँ की…"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
Thursday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
Thursday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service