For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सपने बिना जीवन

आजकल अक्सर
टीसती रहती हैं
माथे पर उभर आई नसें


मटमैली-लाल होकर
दुखने लगती हैं आँखें


चेहरे पर बरसती रहती है फटकार

पपडियाये होंठों से हठात
निकलती हैं सूखी गालियाँ


खोजती रहती हैं नज़रें
दूर-दूर तक
क्षितिज से टकराकर
खाली हाथ लौट आती हैं निगाहें

दिमाग में ख्यालों का अकाल
दिल में कल्पनाओं के टोटे...


सब तरफ एक सन्नाटा...
कोई आहट...न कोई इशारा...

झुंझुलाए मेरे इस रूप से
घबराते हैं अपने भी
और बिदक गए
कोसों दूर सपने भी.....
सपनो के  बिना
क्या इन्सान जीवित रह सकता है..?

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 481

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 17, 2013 at 7:37pm

उद्विग्नता और एकाकीपन को शब्दबद्ध करना रचनाकारों को सबसे प्रिय है. विधा कोई हो लेकिन सफल गिने-चुने ही हो पाते हैं. अतुकान्त विधा में तो यह और भी कठिन है. आपकी इस सफल रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई आदरणीय.

सादर

Comment by विजय मिश्र on October 16, 2013 at 6:02pm
जागी आँखों के सपने जिंदगी में जीने के दम भरते हैं ,बेहद खुस्क और खुरदरी जमीन पर उगी मगर बहुत प्यारी सी रचना जो जिंदगी के हकीकतों से रूबरू कराती है .शुक्रिया अनवर भाई .
Comment by shashi purwar on October 16, 2013 at 5:08pm

behatarin sundar rachna , waah hardik badhai


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 15, 2013 at 3:10pm
आदरणीय अनवर भाई , सुन्दर प्रतुति के लिये बधाई !!!
Comment by Meena Pathak on October 15, 2013 at 12:14pm

झुंझुलाए मेरे इस रूप से 
घबराते हैं अपने भी 
और बिदक गए 
कोसों दूर सपने भी.....
सपनो के  बिना 
क्या इन्सान जीवित रह सकता है..?.............. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .. बधाई आप को 

Comment by वेदिका on October 15, 2013 at 11:19am

सुंदर रचना!! आपको हार्दिक बधाई !!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 15, 2013 at 11:16am

आदरणीय अनवर भी ..मेरे ख्याल से सबको सपने जरूर देखन सचाहिए ..बिन  जिंदगी नहीं जी जा सकती ..पर हो सकता है सपने के चाहत अपार कष्ट भी दे फिर भी सपने जरूरी हैं बेहद जरूरी ...इस बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 15, 2013 at 10:45am

मटमैली-लाल होकर
दुखने लगती हैं आँखें

चेहरे पर बरसती रहती है फटकार

पपडियाये होंठों से हठात
निकलती हैं सूखी गालियाँ

दुःख जब चारों ओर से प्रबल हो जाए, उस दुखी वेदना को, अंतर्मन से चित्रित करती आपकी सार्थक रचना पर बहुत बहुत बधाई आदरणीय अनवर साहब

Comment by Sushil.Joshi on October 15, 2013 at 5:58am

खोजती रहती हैं नज़रें
दूर-दूर तक
क्षितिज से टकराकर
खाली हाथ लौट आती हैं निगाहें...... वाह आदरणीय अनवर भाई.... कितना सार्थक चित्र उकेरा है आपने मस्तिष्क पर.....  और अंत में एक अनसुलझा सवाल.....

सपनो के  बिना
क्या इन्सान जीवित रह सकता है..?....... इस उत्तर शायद हाँ भी है और नहीं भी..... हाँ इसलिए क्योंकि यदि सपने देखे एवं पूर्ण न हुए तो बहुत चोट लगती है...... एवं नहीं इसलिए क्योंकि सपने ही तो हैं जो हमें मुश्किल से मुश्किल हालात में भी डटे रहना सिखाते हैं...... इस सार्थक अभिव्यक्ति के लिए बधाई हो....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service