बड़े जतन से संजोई किताबें
हार्ड बाउंड किताबें
पेपरबैक किताबें
डिमाई और क्राउन साइज़ किताबे
मोटी किताबें, पतली किताबें
क्रम से रखी नामी पत्रिकाओं के अंक
घर में उपेक्षित हो रही हैं अब...
इन किताबों को कोई पलटना नही चाहता
खोजता हूँ कसबे में पुस्तकालय की संभावनाएं
समाज के कर्णधारों को बताता हूँ
स्वस्थ समाज के निर्माण में
पुस्तकालय की भूमिका के बारे में...
कि किताबें इंसान को अलग करती हैं हैवान से
कि मेरे पास रखी इन बेशुमार किताबों से
सज जाएगा पुस्तकालय
फिर इन किताबों से फैलेगा ज्ञान का आलोक
कि किताबों से अच्छा दोस्त नही होता कोई
इसे जान जाएगी नई पीढी
वे मुझे आशस्त करते हैं और भूल जाते हैं...
मौजूदा दौर में
कितनी गैर ज़रूरी हो गई किताबें
सस्तई के ज़माने में खरीदी मंहगी किताबें
बदन पर भले से हों फटी कमीज़
पैर को नसीब न हो पाते हों जूते
जुबान के स्वाद को मार कर
खरीदी जाती थीं तब नई किताबें
यहाँ-वहाँ से मारी जाती थीं किताबें
जुगाड़ की जाती थीं किताबें
और एक दिन भर जाता था घर किताबों से
खूब सारी किताबों का होना
सम्मान की बात हुआ करती थी तब...
बड़ी विडम्बना है जनाब
डिजिटल युग में सांस लेती पीढ़ी
किसी तरह से मन मारकर पढ़ती है
सिर्फ कोर्स में लगी किताबें....
मेरे पास रखी इन किताबों को बांचना नही चाहता कोई
दीमक, चूहों से बचाकर रख रहे हैं हम किताबें
खुदा जाने
हमारे बाद इन किताबों का क्या होगा......
(मौलिक अप्रकाशित)
Comment
बहुत सुन्दर आदरणीय
और उस पर आदरणीय गणेश सर के चमचमाते अशआर ग़ज़ब है
बहुत बहुत बधाई हो आपको
सुंदर भावभिव्यक्ति है आदरणीय अनवर भाई..... हार्दिक बधाई....
बड़े ही जतन से सजोई किताबें,
ये मोटी किताबें वो पतली किताबें ।
कोई अब न चाहे किताबें पलटना,
उपेक्षित पड़ीं हैं ये नामी किताबें ।
आदरणीय सुहैल साहब किताबों की अपनी अलग दुनिया है, ये तो थाती हैं जो हम अगली पीढ़ी को दे सकतें हैं । बहुत ही खुबसूरत भाव । बधाई इस भावाभिव्यक्ति हेतु ।
एकदम हट के, शानदार विषय पर लिखी गयी अत्यावश्यक कविता.... आभार ऐसी सोच के लिए !!!
आपकी रचना बांचकर मै भी गहरे सोंच में पद गया | मैंने पिताजी की और मेरी खूब संजोकर राखी गई, शैक्षणिक, साहित्यिक किताबे, धार्मिक कल्याण आदि नियमित पत्रिकाए जब हर साल छंट कर रद्दी अलग करता हूँ तो घर में सब कहते है, क्यों जगह रोक रहे हो |
बहुत सी पुस्तके लोगो को दे देता हूँ | पर इस डिजिटल युग में अब पुस्तकालय भी तो डिजिटल हो रहे है | विचारणीय रचना हेतु
बधाई
किताबों की उमर कभी कम नहीं होती है आज नहीं तो कल इसे पढ़ने वाले मिल ही जाएँगे.शुभकामनाएँ सहित.
कुंती.
आदरणीय अनवर जी, आपकी पीड़ा में अपनी पीड़ा नजर आ गई. बहुत सी अच्छी-अच्छी और कीमती किताबें मित्र-गण ले गये. मार्मिक रचना हेतु बधाई............
अपना दर्द याद हो आया भाई अनवर जी ..मेरे कितने मीन कांफ ...टॉलस्टॉय ...लेनिन ...गोर्की ..किट्स...और चैटर्ली...सुभाष ...मशुशाला ..कामायनी ....सोनभद्र के जंगल में बने बिजली बोर्ड के क्वार्टरों के दीमकों की मीमांसा शांत करने में अपना अस्तित्व खो बैठे ...खैर किताबों की सार्थकता उनको पढ़े जाने में है ..एक ने भी पढ़ा तो उनका जीवन बढ़ा ..किताबे है और रहेंगी ....अपने दर्द में मुझे हमदर्द समझें !! साधुवाद इस अभिवक्ति के लिए !!
मार्ग खर्च मैं वहन करूँगा ...
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