हर इंसान के जीवन में
एक लम्हा
ऐसा आता है /
वक़्त नहीं थमता,
वह लम्हा
रह जाता है खड़ा हुआ
ज्यों चित्रलिखित सा ।
और कभी
जब चलते चलते
थक जाता है वक़्त
तो
इस लम्हे की छाया में
कुछ देर बैठ कर सुस्ताता है|
और कभी
जब बदली छा जाती है ,
और मन का पंछी
घबरा जाता है
तो यह लम्हा
इन्द्रधनुष सा
आसमान में बिखर जाता है /
और ये मौसम पहले जैसा खुशगवार
फिर हो जाता है ।
मै तो ऐसा दीवाना हूँ ,
मैंने हर लम्हे को
उस लम्हे के साथ जिया है /
कभी उसे घिस कर
चन्दन सा तिलक लगाया /
और कभी
उसको कविता का शब्द बनाया /
और कभी
वह लम्हा मेरे साथ चला है
छाया बन कर /
और कभी
वह लम्हा मुझको छलता है
माया बन कर ।
उस लम्हे की खातिर
मै अपने से लड़ा हूँ /
और साथ उस ही लम्हे के
आज वक़्त के शिलाखंड पर
एक ज़र्रे सा पड़ा हुआ हूँ ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
अरविन्द भटनागर 'शेखर'
Comment
आदरणीय अरविन्द जी... बहुत ही अनुपम कृति है..... भावों का सुंदर समावेश..... बधाई हो....
वाकई वह लम्हा ज़िंदगी मे कई बार संभाल लेता है| राह देता है, खुशी देता है और उन सभी अनुत्तरित प्रश्नो के उत्तर भी| इस लम्हे को आपने चित्र लिखित किया बहुत खूबसूरती से|
बधाई !!
सुन्दर सशक्त रचना ! हार्दिक बधाई !!
सुन्दर भावों की उससे भी सुन्दर अभिव्यक्ति की है आपने , अरविन्द भाई !!!! ढेरों बधाई स्वीकार करें !!!!
एक एक शब्द दिल से निकला हुआ सा लगता है,भाई अरविन्द जी, यहाँ बड़ी खूबसूरती से आपने अपने भावों को व्यक्त किया बधाई स्वीकार करें
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