तेरी कान्हा बांसुरी, छेड़े ऐसी तान
जिसकी धुन में मन रमा, बिसरा सुध-बुध-ध्यान
बिसरा सुध-बुध-ध्यान, मोह के बंधन छूटे
जग माया का जाल, दर्प के दरपन टूटे
हुआ क्लेश का नाश, पीर सब हर ली मेरी
पर ये क्या बैराग? लुभाती है छवि तेरी !!
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय शकील जम्शेद्पुरी जी, जीतेन्द्र भाई, गिरिराज जी आप सबका हार्दिक आभार!
आ० बृजेश जी
बहुत भावमय कुण्डलिया ...मन जैसे आनंद से सराबोर हो गया..
तेरी कान्हा बांसुरी, छेड़े ऐसी तान
जिसकी धुन में मन रमा, बिसरा सुध-बुध-ध्यान............. वाह! वाह! बंशी धुन में रम जग भूल जाना .....शीतल एहसास
बिसरा सुध-बुध-ध्यान, मोह के बंधन छूटे
जग माया का जाल, दर्प के दरपन टूटे.................दर्प के दर्पण का टूटना ..अहा! अहा! पूर्ण समर्पण से ही होता है..बहुत सुन्दर
हुआ क्लेश का नाश, पीर सब हर ली मेरी
पर ये क्या बैराग? लुभाती है छवि तेरी !!............जग से वैराग्य ...पर मन में तो कान्हा छवि ही बस गयी ..वाह! वाह!
मैंने भी बिलकुल इन्ही भावों पर एक कुण्डलिया की रचना की थी ..अंतिम पंक्तियाँ सांझा करने का मोह संवरण नहीं कर पा रही....
प्राण भक्ति में लीन ओढ़ चूनर केसरिया
प्रभु संग मधुर मिलन हुई जोगन बावरिया....ये प्रस्तुति कृष्ण की ही समर्पित थी
इस उत्कृष्ट प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
वाह वाह बहुत ही सुन्दर आदरणीय ब्रिजेश सर जी
बधाई स्वीकारें
बहुत ही उत्तम भाव..
जी बस उल्टा पल्टी और कुछ नहीं आदरणीय :):):):)
//प्रारम्भ में तेरी कान्हा करने से अब कुण्डलिया निर्दोष हो गई है|//
आदरणीया, भाई बृजेश ने तो मूलतः यही वाक्यांश दिया है न ! .. ???..
:-)))))))))))))
प्रारम्भ में तेरी कान्हा करने से अब कुण्डलिया निर्दोष हो गई है| :):):)
ज्ञान वर्धन हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय सौरभ भईया जी ।
हां, कान्हा तेरी बिल्कुल सही है. मेरी दृष्टि पहले शब्द कान्हा और अंतिम शब्द तेरी पर गयी. इस कारण मेरा ध्यान नहीं गया. समुच्चय में शब्दों को नही देख पाया. खेद है.
शुभ-शुभ
छन्न से दरपन से टूटे.. नियमतः सही होगा. क्योंकि छन्न त्रिकल है और रोला छंद के सम चरण का विन्यास त्रिकल से ही प्रारम्भ हो सकता है. यदि कोई विद्वान या कवि इस चरण को अन्य ढंग से प्रारम्भ करें तो वैधानिक दोष होता है.
लेकिन यह पदांश ..दर्प के दरपन टूटे... कुण्डलिया के मूल भाव में समायोजित यानि पूरी तरह गूँथा हुआ महसूस होता है. दर्प का टूटना विशेष इंगित को बखूबी संप्रेषित करता है जो आगे के बैराग (वैराग्य) के सैद्धांतिक ज्ञान के थोथेपन को उजागर करता है..
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