अलग सबसे तबीयत है करें क्या
कि इक बुत से मुहब्बत है करें क्या /१
दुआ में मांगते हैं मौत मेरी
सितमगर की शरारत है करें क्या /२
न कोई आ रहा सुन डुगडुगी अब
मदारी को शिकायत है करें क्या /३
ये आदत छोड़िये जी शाइरी की
मगर दिल की जरुरत है करें क्या /४
तमाशा देख लो उस नामवर का
लिबासों की इबादत है करें क्या /५
हमें दिल में सनम ने रख लिया है
न मरने की इजाजत है करें क्या /६
अरे अब आसमां मत बांट देना
ज़मीं ने की फज़ीहत है करें क्या /७
मियां तुम लाख खुद को पाक़ बोलो
नज़र आती हकीक़त है करें क्या /८
किताबें बंद कर लो सारथी जी
कि सांसों की बगावत है करें क्या /९
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सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित
वज्न १२२२ १२२२ १२२
Comment
हमें दिल में सनम ने रख लिया है
न मरने की इजाजत है करें क्या//६...........बहुत खूब.
बढिया प्रयास हुआ है, भाईजी.
कोई मिसरा अनावश्यक कि से शुरु होना उचित नहीं माना जाता.
बाकी कई अश’आर थोड़ा और समय चाहते थे.
शुभेच्छाएँ
सुन्दर ग़ज़ल हुई है आ० बैद्य नाथ जी
ग़ज़ल का रदीफ़ बहुत पसंद आया ..
हार्दिक बधाई
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी :
कि आदत छोड़िये जी शाइरी की
मगर दिल की जरुरत है करें क्या.....
कोटिशः धन्यवाद प्रेषित कर रहा हूँ , मान्यवर कृतग्य रहूँगा !...जी, मैं हमेशा कोशिश करता हूँ लेकिन हर बार तज़कीर-ओ-तानीस(पु.स्त्री लिंग), वाहिद-ओ-जमा (एक-अनेक वचन) और लफ्ज़ों के हिज्जे के मुआमले में कहीं ना कहीं चूक हो ही जाती है। सिखलाते रहिएगा ...उपकार होगा । अनेक धन्यवाद सहित :)
आदरणीय SANDEEP KUMAR PATEL साहिब ... दिली शुक्रिया आपका ! अनेक धन्यवाद सहित ! :)
जनाब शकील जमशेदपुरी साहिब .... बिल्कुल सही फरमा रहे हैं आप, मुआफी चाहता हूँ, भूलवश ऐसा हुआ है ! ..इस ओर ध्यान दिलाने के लिए बेहद शुक्रिया आपका ! सादर !
आइन्दा कोशिश करूँगा इस तरह के दोषों पर पहले ही विचार कर लूँ प्रेषित करने से पहले! सादर :)
बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है वाह आदरणीय दिली दाद क़ुबूल करें
आदरणीय शकील जी की बात से इत्तेफाक रखता हूँ इन्हें भी बधाई
आदरणीय Baidya Nath 'सारथी' जी,
हाल ही में मैंने इस बहर पर लिखने की कोशिश की थी, पर निभाने में काफी मुश्किल हो रही थी। आपने जिस आसानी के साथ बह्र को निभाया है, उससे काफी हौसला मिला है।
हां एक बात जरूर जोड़ना चाहूंगा। चौथे, पांचवें और सातवें शेअर में तकाबुले रदीफ का दोष है। जरा देख लीजिएगा। सादर।
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