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दिल में तुम्हारे है जो मुझको बताना प्यार से
यूँ भूल कर हमको भला क्या मिला संसार से
यूँ जानकर रुसवा किया आज महफ़िल में भला
जो तोड़कर नाता चले क्यूँ भला इस पार से
चुप सी है धड़कन मेरी अब दिल भी है खामोश तो
घायल हुआ दिल मेरा खंज़र चुभा किस धार से
नादान हूँ मैं या कि अहसान उनका है जरा
वो रोक देते हैं मुझे शर्त कि दीवार से
वो प्यार के मंजर हमें आज भी भूले नहीं
दिल भी दिये,ख़त भी लिखे सब छुपा संसार से
जो आँख में है प्यार वो क्यूँ दिखा ना यार को
जब राह देखा था कोई यूँ बड़े आसार से
अब सोहनीं, लैला कहाँ हीर की बातें करें
बस दिन गुज़रता था यहीं यार के दीदार से
तू छोड़ कर चल दे यहाँ प्यार की राहें जरा
फिर रोक ले न 'रवि' कोई यार के बाज़ार से
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मौलिक और अप्रकाशित-अतेन्द्र कुमार सिंह 'रवि'
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Comment
भाई अतेन्द्र जी मेरे कहे को मान देने के लिये आपका शुक्रिया
शिज्जू जी...आपके अनुसार हमनें मिसरे को आपके अनुसार कर लिया है ...मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद
सुझाव के ले लिए बहुत बहत शुक्रिया शिज्जू जी ....कोशिश करते हैं ...धन्यवाद
//दिल में तुम्हारे है जो मुझको बताना प्यार से//
भाई अतेन्द्र जी आप मिसरे को यूँ कर लें तो ये आपकी दी हुई बह्र के मुताबिक हो जायेगी
आपके शब्द तो मिसरे के वज़्न में सटीक बैठेगा. मग़र बताना की जगह बताइये करना होगा जोकि संभव नहीं होगा. और बताना रहने दिया गया तो शुतर्ग़ुर्बा का दोष होगा.
अतः मतले के उला पर फिर से सोचें.
हार्दिक शुभेच्छाएँ.
सौरभ सर को सादर प्रणाम ...आपने जो मार्गदर्शन दिया हम आपके बहुत आभारी हैं ...तुम्हारे में मात्रा शायद होना चाहिए 122...क्या इसके स्थान पर आपके कर सकतें हैं ...
आप यदि तुम्हारे की मात्रा पर बात करते हैं, भाई अतेन्द्रजी, तो मेरा हार्दिक सुझाव इस पर यही होगा कि आप स्वयं को थोड़ा समय दें. और मंच पर उपलब्ध ग़ज़ल के पहले पाठ दर पाठ पढ़ लें.
शुभेच्छाएँ.
सौरभ सर ...कृपया आप हमारी ग़ज़ल को देखकर जो प्रतिक्रिया दी है उसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद और उस पर हम विचार कर रहें हैं पर हम आपसे यह भी आशा करते हैं कि मतले में संशोधन किस प्रकार किया जा सकता है ...शायद हमनें "है तुम्हारे दिल में " ह कि मात्र को गिराकर १ गिना है .....उचित मार्गदर्शन करें हम आपके आभारी रहेगें .....धन्यवाद
जीतेन्द्र जी,डॉ अनुराग जी सुशील जी आप सभी को सहृदय धन्यवाद ....
शानदार गज़ल के लिए हार्दि बधाई आ0 अतेन्द्र कुमार जी......
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