समाज की अति व्यस्तता में मगन हम आनंद का अनुभव करने के लिए विशेष अवसरों की खोज करतें हैं | त्यौहार उन विशेष अवसरों में से एक है | ये हमारे जीवन में नयापन लाते हैं, आनन्द और उल्लास पैदा करते हैं | हमारे त्योहारों में दीपावली का विशेष स्थान है | दीपावली का साधारण अर्थ दीपों की पंक्ति का उत्सव है और दीपक का प्रकाश ज्ञान और उल्लास का प्रतीक है | दीपावली कब और क्यों मनाया जाता है ये तो हम सभी जानते हैं | इसके बारे में अनेक सांस्कृतिक,ऐतिहासिक एवं धार्मिक परम्पराएं और कितनी कहानियां प्रचलित हैं ये भी हम सब जानते हैं | इस दीपावली पर मै किसी और तरफ़ आप सभी का ध्यान आकर्षित करना चाहती हूँ | दीपावली खुशियों का त्यौहार, दीपों का त्यौहार और सबसे बढ़ कर लक्ष्मी के स्वागत का त्यौहार है | घर-घर में साफ़ सफाई हो रही है | घर का हर कोना साफ़ किया जा रहा है, दीवारों को चमकाया जा रहा है लक्ष्मी के स्वागत के लिए | पर क्या अपना मन भी इसी तरह साफ़ किया जा रहा है या साफ़ किया जा सकता है ? अगर ऐसा हो जाए तो लक्ष्मी सदैव के लिए ही घर में रुक जायें | घर की सफाई से ज्यादा जरूरी अपने हृदय रुपी घर की सफाई है जिसकी दीवारें घर की लक्ष्मी के लिए मान,सम्मान और प्रेम की भावना से रंगी हों और उसकी मुस्कुराती हुई तस्वीर हर दीवार पर टंगी हो ऐसे घर में तो लक्ष्मी के साथ नारायण भी वास करना चाहेंगें और जहाँ नारायण का वास हो वहाँ से लक्ष्मी भला कहाँ जा सकती हैं | इसके विपरीत जिस घर में गृहलक्ष्मी आँसू पोछती रहती है, घुटती रहती है उस घर को लाख साफ़ करो पर लक्ष्मी वहाँ से दूर ही रहती हैं | लक्ष्मी मिट्टी की मूर्ती में वास नही करतीं वो वास करती है जीती जागती गृहलक्ष्मी में जिसका एक बार स्वागत कर कर के आप सैकड़ों बार उसकी आत्मा के साथ बलात्कार करते हो | जिस घर में स्त्री का सम्मान नही होता वहाँ दलिद्रता का वास होता है तभी तो लक्ष्मी पूजन के बाद परेवा को दलिद्र भागने की परम्परा है | पर सूप पीटने से दलिद्र नही भागते | ना ही नाना विधि से मूर्ती के सामने फल,फूल और मिठाइयाँ अर्पित करने से लक्ष्मी प्रशन्न होतीं हैं | तो सबसे पहले अपने हृदय की सफाई जरूरी है | इस दीपावली लक्ष्मी पूजन के समय शपथ लें की अपने गृहलक्ष्मी को सम्मान देंगे, दूसरे घर की लक्ष्मियों पर कूदृष्टि नही डालेंगे तभी आप की, हमारी और सभी की दीपावली मंगलमय होगी | जहाँ स्त्री का सम्मान होता है वहीं लक्ष्मी का वास होता है | इसी लिए कहा गया है कि --
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते,रमन्ते तत्र देवता: ||
मीना धर
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
बहुत सुन्दर बात कही है आदरणीया मीना जी
जहां हृदय निर्मल स्वच्छ हैं वहां से लक्ष्मी जी कहीं नहीं जातीं..
और जहां नारी का सम्मान होता है वहां ही देवताओं का वास होता है
इस उद्देश्यपूर्ण संदेशपरक लेख के लिए हार्दिक बधाई
दीपावली की मंगलकामनाएं
सोच और मानसिकता का गरीबी और शिक्षा से कुछ लेना-देना नहीं होता. संस्कार जेब या मार्कशीट देखकर नहीं आते.
आपका लेख अपने उद्देश्य और सन्देश में सफल है. कसावट में कमी है.
सादर!
घर को साफ करने के लिए बहुत सारे सामान उपलब्ध हैं पर मन को धो सके ऐसा कोई नुस्खा तो दीजिए, फिर देखिए अपनी क्या सबके मन की सफाई कर दें, ............. नारी की पूजा जहां होगी वहीं देवताओं का निवास होगा ......... ऐसा क्यों ... पुरुषों की पूजा होने से तो देवियां निवास नहीं करती ?.............. आप कहेंगी ये सब लिखने का मकसद क्या है .... मकसद एक ही है कि थोड़ी चर्चा इस बिंदु पर हो, सादर
आदरणीया मीना जी , बहुत सार्थक और वास्तविकता के करीब आपकी सोच के लिये आपको हार्दिक बधाई !!!!!!
आ. मीना पाठकजी सुंदर भावपूर्ण सामयिक रचना की बधाई । आधुनिकता के नाम पर फिल्म टीवी और शहरी चकाचौंध से प्रभावित स्त्रियाँ महफिल, उत्सव में मर्दों द्वारा की गई झूठी तारीफ और दिखावे को अपने लिए सम्मानजनक मानती हैं और उसे लगता है कि घर से ज्यादा कद्र तो बाहर वाले करते हैं । जबकि नारी को सही सम्मान, प्यार और अपनापन परिवार में ही मिलता है। हाँ, वो उसे शब्दों में बार-बार व्यक्त नहीं करते । ( कुछ अपवादों को छोड़ दीजिए )। आपकी रचना में भी कुछ सच्चाई है लेकिन यह आर्थिक बोझ से दबे और शराब आदि का सेवन करने वाले व अशिक्षित परिवारों में ज्यादा दिखता है। बचपन से ही अच्छे संस्कार और धार्मिक वातावरण मिले तो हृदय भी पवित्र हो जाता है यह परिवर्तन अचानक नहीं होता । टंकण की दो तीन त्रुटियों को दूर कर लीजिए। ......... सादर।
आदरणीया मीना जी बहुत ही संदेशपरक व् अच्छी प्रस्तुति है//// बहुत बहुत बधाई आपको //// सादर
आदरणीया मीना जी कितनी सच बात कह डाली आपने , यदि घर के भीतर विराजती अपनी गृह लक्ष्मी का सम्मान नहीं किया तो आप कितना भी मूर्ति पुजा कर लें सब बेकार है । वही हाल बेटियों के संबंध मे भी है यदि बेटियों को मान सम्मान नहीं मिला तो सरस्वती भी बाहर ही रहती है । इस सुंदर संदेशयुक्त आलेख के लिए आपको साधुवाद ।
'घर की सफाई से ज्यादा जरूरी अपने हृदय रुपी घर की सफाई है'........ वाह कितना संदेशपरक लेख है आदरणीय मीना जी.... गृहलक्ष्मी का सम्मान करने के विषय में आपके विचार निश्चित रूप से कमज़ोर मानसिकता वाले उन व्यक्तियों की सोच को बदलेंगे जो स्त्री को मात्र भोग विलास की वस्तु समझते हैं.......
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते,रमन्ते तत्र देवता: ||............. सौ प्रतिशत् सही बात है........... जहाँ नारी की पूजा होती है, वहीं देवताओं का वास होता है........... इस सारगर्भित लेख के लिए, आपकी उत्कृष्ट सोच के लिए एवं दीपावली का सही अर्थ बताने के लिए हार्दिक बधाई एवं सपरिवार दीपावली की अग्रिम शुभकामनाएँ आपको.....
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