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गजल: मैं अभागा किस कदर बादल रहा/शकील जमशेदपुरी

बह्र: 2122/2122/212

_______________________________

दीप मेरा दुनिया को है खल रहा
जब से ये बादे मुखालिफ जल रहा

फिर वही बेचैनियां और मन उदास
ख्वाब किसका दिल में फिर से पल रहा

चांद को अब सौंप कर सब रोशनी
प्यार का सूरज मेरा है ढल रहा

घुट रहा था दिल ही दिल, बरसा नहीं
मैं अभागा किस कदर बादल रहा

इस सफर में होगी बेशक रोशनी
थाम कर पलकें तेरी मैं चल रहा

आग उनके दिल की अब तो बुझ चुकी
दिल हमारा अब तलक है जल रहा

क्यों न हो मस्ती के मस्ताने हजार
मैं तुम्हारी आंख का काजल रहा

मुश्किलों में इसलिए हंसता 'शकील'
सिर पे मां का हर घड़ी आंचल रहा

- शकील जमशेदपुरी

_________________________________

*मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on November 13, 2013 at 7:05pm

आ0 शकील भाईजी,  

//मुश्किलों में इसलिए हंसता 'शकील'

सिर पे मां का हर घड़ी आंचल रहा  //----------वाह! वाह!..... बहुत खूब। बेहतरीन गजल।  ढेंरों दाद कबूल करें।  सादर,

Comment by umesh katara on November 13, 2013 at 6:14pm

शानदार गजल कही है आपने शकील साहब वाह्ह्ह्ह्


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 13, 2013 at 5:30pm

आदरणीय शकील भाई , शानदार , जानदार गज़ल के लिये आपको ढेरों बधाई !!!!!

 

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on November 13, 2013 at 4:13pm
सफल गजल
हार्दिक बधाईयाँ।
Comment by शकील समर on November 13, 2013 at 1:46pm

आदरणीय Dr Ashutosh Mishra जी
 
वैसे तो 'और' को 21 लिया जाता है। पर जरूरत के हिसाब से इसे गिराकर 'औ' भी पढ़ा जाता है और इसकी मात्रा 2 ली जाती है। सादर।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 13, 2013 at 1:03pm

फिर वही बेचैनियां और मन उदास
ख्वाब किसका दिल में फिर से पल रहा

चांद को अब सौंप कर सब रोशनी
प्यार का सूरज मेरा है ढल रहा..आदरणीय शकील जी इस बेहतरी ग़ज़ल के लिए ढेरों बधाई ..

जिज्ञासा वश यह जानना चाहता हूँ उदास का स तो बहर में नहीं शामिल होता पर क्या और का र भी बहर में शामिल नहीं होगा ..

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 13, 2013 at 11:58am

आप का दीप अनवरत जले

दुनिया को चाहे कितना भी खले

माँ की आँचल का साया मयस्सर है

हँसते रहिये आपको क्या डर  है         ग़ज़ल काबिले गौर है  क्या खूव्ब कहा है   मुबारक हो

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