ग़ज़ल –
२१२२ १२१२ २२
अक्षरों में खुदा दिखाई दे
अब मुझे ऐसी रोशनाई दे |
हाथ खोलूं तो बस दुआ मांगूँ,
सिर्फ इतनी मुझे कमाई दे |
रोशनी हर चिराग में भर दूं ,
कोई ऐसी दियासलाई दे |
माँ के हाथों का स्वाद हो जिसमें,
ले ले सबकुछ वही मिठाई दे |
धूप तो शहर वाली दे दी है,
गाँव वाली बरफ मलाई दे |
बेटियों को दे खूब आज़ादी ,
साथ थोड़ी उन्हें हयाई दे |
तल्ख़ लहजा तमाम लोगों को,
मीर दे मीर की रुबाई दे |
दर्द होरी सा दे रहा है तो,
साथ धनिया सी एक लुगाई दे |
घूस के सौ दहेज़ से बेहतर,
अपने हाथों बनी चटाई दे |
*सर्वथा मौलिक - अप्रकाशित .
(c)&(p) - अभिनव अरुण .
Comment
चाह मुझको नहीं मिलन की है ,
इश्क़ में तू मुझे जुदाई दे ...
आदमी आदमी रहे बनकर ,
एक ऐसी मुझे खुदाई दे ..
...........क्या कहने डॉ अनुराग जी बहुत शुक्रिया !
आभार आभार आभार श्री CHANDRA SHEKHAR PANDEY जी
आ.श्री अखिलेश जी शुक्रिया ग़ज़ल आपका अनुमोदन प्राप्त कर धन्य हुई !
डॉ गोपाल जी आपकी प्रतिक्रिया ...मुझे दायित्व का आभास दिलाती है ...आभार और अभिवादन आपका !
बहुत सुन्दर और प्यारी ग़ज़ल ...ये मेरे पसंद का शेर
हाथ खोलूं तो बस दुआ मांगूँ,
सिर्फ इतनी मुझे कमाई दे |.....लाजवाब अरुण साहब :)
बहुत साड़ी जायज मांग की है ,
दूर रख मुझे किसी बेवफा के मिलन से
मुझे प्यार न दे सिर्फ जुदाई दे
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने
बधाई स्वीकार करे दिल से
बेटियों को दे खूब आज़ादी ,
साथ थोड़ी उन्हें हयाई दे | सुंदर भाव और कहीं सटीक कटाक्ष , बधाई अभिनव अरुण भाई पूरी गज़ल के लिए ॥
अरुण जी
होरी का दर्द सामंतकालीन भारतीय किसान का दर्द है i उसने जीवन भर संघर्षो का जिस जीवटता से लोहा लिया वह उसे कर्मवीर नायक बनाता है i इसीलिये एपिक गोदान का अंगी रस विद्वानों ने वीर माना है i होरी का दर्द पीडा का मूर्तिमंत स्वरुप है उसका उदहारण देकर आप मुझे नास्टेल्जिया में ले गए i धन्यवाद i
आ. गीतिका जी ग़ज़ल पसंद आई आपको मेरा सृजन सार्थक हुआ , आभार आदरणीया !
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online