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ग़ज़ल - अक्षरों में खुदा दिखाई दे !

ग़ज़ल –

२१२२ १२१२ २२

अक्षरों में खुदा दिखाई दे

अब मुझे ऐसी रोशनाई दे |

 

हाथ खोलूं तो बस दुआ मांगूँ,

सिर्फ इतनी मुझे कमाई दे |

 

रोशनी हर चिराग में भर दूं ,

कोई ऐसी दियासलाई दे |

 

माँ के हाथों का स्वाद हो जिसमें,

ले ले सबकुछ वही मिठाई दे |

 

धूप तो शहर वाली दे दी है,

गाँव वाली बरफ मलाई दे |

 

बेटियों को दे खूब आज़ादी ,

साथ थोड़ी उन्हें हयाई दे |

 

तल्ख़ लहजा तमाम लोगों को,

मीर दे मीर की रुबाई दे |

 

दर्द होरी सा दे रहा है तो,

साथ धनिया सी एक लुगाई दे |

 

घूस के सौ दहेज़ से बेहतर,

अपने हाथों बनी चटाई दे |

       *सर्वथा मौलिक - अप्रकाशित .

       (c)&(p)  - अभिनव अरुण .

      

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Comment by Abhinav Arun on November 16, 2013 at 7:59am

चाह मुझको नहीं मिलन की है ,

इश्क़ में तू मुझे जुदाई दे ...

आदमी आदमी रहे बनकर ,

एक ऐसी मुझे खुदाई दे ..

...........क्या कहने डॉ अनुराग जी बहुत शुक्रिया ! 

Comment by Abhinav Arun on November 16, 2013 at 7:52am

आभार आभार आभार श्री CHANDRA SHEKHAR PANDEY  जी 

Comment by Abhinav Arun on November 16, 2013 at 7:52am

आ.श्री अखिलेश जी शुक्रिया ग़ज़ल आपका अनुमोदन प्राप्त कर धन्य हुई !

Comment by Abhinav Arun on November 16, 2013 at 7:51am

डॉ गोपाल जी आपकी प्रतिक्रिया ...मुझे दायित्व का आभास दिलाती है ...आभार और अभिवादन आपका !

Comment by Saarthi Baidyanath on November 15, 2013 at 10:18pm

बहुत सुन्दर और प्यारी ग़ज़ल ...ये मेरे पसंद का शेर 

हाथ खोलूं तो बस दुआ मांगूँ,

सिर्फ इतनी मुझे कमाई दे |.....लाजवाब अरुण साहब :)

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on November 15, 2013 at 10:06pm

बहुत साड़ी जायज मांग की है ,

दूर रख मुझे किसी बेवफा के मिलन से 

मुझे प्यार न दे सिर्फ जुदाई दे 

बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने 

बधाई स्वीकार करे दिल से 

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on November 15, 2013 at 8:18pm
वाह वाह और वाह
Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on November 15, 2013 at 6:22pm

बेटियों को दे खूब आज़ादी ,

साथ थोड़ी उन्हें हयाई दे |    सुंदर भाव और कहीं सटीक कटाक्ष , बधाई अभिनव अरुण भाई पूरी गज़ल के लिए ॥

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 15, 2013 at 11:15am

अरुण जी

होरी का दर्द सामंतकालीन  भारतीय किसान का दर्द है   i  उसने जीवन भर संघर्षो  का जिस जीवटता से लोहा लिया वह उसे कर्मवीर नायक बनाता है  i  इसीलिये एपिक गोदान का अंगी रस विद्वानों ने  वीर माना  है  i होरी का दर्द  पीडा  का मूर्तिमंत स्वरुप है उसका उदहारण देकर आप मुझे नास्टेल्जिया में ले गए  i  धन्यवाद i

Comment by Abhinav Arun on November 15, 2013 at 9:48am

आ. गीतिका जी ग़ज़ल पसंद आई आपको मेरा सृजन सार्थक हुआ , आभार आदरणीया !

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