झाड़
खामोश और बेकार
न पौधा न पेड़
न छाया न आराम न हवा
सिवाय जंगली छोटे कसैले- खटमिट्ठे फल
जो भूख नही मिटाते इंसान की
और पशु की भूख
वह कभी मिटती नहीं
झाड़
एक आस जरूर देता है
काँटे सी चुभती आस
किसी के पुकारने की
उलझा है दुपट्टा काँटे मे रात -दिन
उफ ये रात
सिसकता चाँद, तारों के बीच है तन्हा
घूरता हुआ दिन
भभकता हुआ सूरज
धकेलता है दिन अकेला
कोई तो रास्ता हो
तर्क- कुतर्क के परे
सब खत्म होना है एक रोज
तो फिर चीखना क्यों
झाड़ होना ही ठीक है
मैंने मौन बो दिया है!
-गीतिका 'वेदिका'
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
झरबेरियों की बहुतायत तृषितभूमि की परिचायक है. इनके होने का भाव भले खूब कुरेदता है लेकिन नियति का दुर्निवार प्रारूप चुप रह जाने को आश्वस्त कर दे तो किया ही क्या जा सकता है ! फिर, क्योंकर मान लिया जाय कि झरबेरियाँ मात्र भौतिक मरु की आरोपित नियामत हैं, या बाह्यांतर की अनचाही संगिनी ! मनोदशा के मरु भी उतने ही शापित हुआ करते हैं. और, यही श्राप परिचय बन जाय तो हर कचोटता भाव परे रख कर जीना वैयक्तिक शैली बन जाती है. कुछ इन्हीं मनोभावों की सार्थक उपज है यह अद्भुत रचना.
मैं विस्मित हूँ, गीतिकाजी. इसलिये नहीं कि एक विशिष्ट रचना निस्सृत हुई पढ़ी जाने को आग्रही हुई जा रही है, बल्कि इसलिये कि एक कितनी सुगढ़ रचना आपके संयत प्रयास की परिचयात्मकता को स्थापित कर रही है.
इन पंक्तियों के माध्यम से सम्बन्धों में व्याप चुके खालीपन को कितनी सहजता से व्यक्त किया है आपने ! ग़ज़ब !
झाड़ / एक आस जरूर देता है / काँटे सी चुभती आस / किसी के पुकारने की
या फिर, एकाकीपन को मिला स्वरालाप जो षड्ज के घोष के साथ साधिकार नकधुन्नी करता दीखता है.
सिसकता चाँद, तारों के बीच है तन्हा / घूरता हुआ दिन / भभकता हुआ सूरज / धकेलता है दिन अकेला / कोई तो रास्ता हो / तर्क- कुतर्क के परे
कविता ’झाड़’ के प्रतीक न केवल सटीक हैं, बल्कि भावदशा को शुद्धता से अभिव्यक्त करने में सक्षम हैं. चाहे, चाँद की संज्ञा हो या मौन बोने का प्रासंगिक बिम्ब !
लेकिन, एक नैतिक सुझाव के साथ इस रचना के हो जाने पर आपको हृदय से बधाइयाँ दे रहा हूँ कि अपने आप को संयत करने क्रम में स्थायी भाव को मान देना उचित है. परन्तु, हताशा को ओटना उचित नहीं. कहीं यह शौक का प्रतिबिम्ब हो गया तो बड़ा भारी उत्पात करता है.
शुभ-शुभ
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया गीतिका जी। ।हर्दिक बधाई आपको///सादर
पेड़ पौधों पे तो कई कवितायें कही जा चुकी झाड़ियों पे पहली बार देखा है, बहुत खूबसूरती से आपने अपनी बात कही बधाई आपको इस कामयाब रचना के लिये
आ0 चंद्र शेखर जी! आपकी प्रतिक्रिया रचना का छनित्र हुआ करती है| आपने जिस सतह पर रचना को अनुमोदन किया है, वाकई मैंने उसी सतह पर ही रचना लिखी|
आभार !
आ0 राजेश दी! आपकी उत्साहित प्रतिक्रिया ने मुझमें तीव्र खुशी का संचार किया है| सदैव आपसे मार्गदर्शन और स्नेह की आकांक्षा है|
सादर!!
वाह !!!!!!!!! गजब ...... आज तो आपने चौंका दिया ..... बहुत ही शानदार गहन अभिव्यक्ति ..........बार बार पढने को मजबूर कर रहा है .... बहुत-२ बधाई प्रिय वेदिका जी ...
सघन अनुभूतियों की मुखर अभिव्यक्ति! कुछ प्रश्न छोड़ती रचना! अनन्त मानवीय लिप्साएं, इच्छाओं की विस्तीर्ण मरुभूमि, और उनके बीच उम्मीदों की एक हल्की झाड़ मन को कहाँ आराम दे पाती है? इस झाड़ से भरी राह के अलावा कोई विकल्प भी तो नहीं प्रतीत होता । मौन को तुष्ट और पुष्ट करना एक अच्छा रक्षोपाय भी प्रतीत हुआ। रचना ने सोचने पर मजबूर किया, आपको हार्दिक बधाई संप्रेषित करता हूं, आदरणीया।
झाड़ होना ही ठीक है
मैंने मौन बो दिया है!
वाह्ह्ह्हह जबरदस्त अंत कविता का जो इस प्रस्तुति को उत्कृष्ट श्रेणी में खड़ा का रहा है ,बहुत- बहुत बधाई इस शानदार प्रस्तुति पर प्री गीतिका जी
आ0 सौरभ जी! आपका आशीष रचना को मिला, उत्साहित हूँ| ब्रेक के बाद वाली प्रतिक्रिया के लिए बेसब्री से प्रतीक्षारत हूँ|
सादर!!
आ0 अरुण जी! आपकी शुभकामनायें पाकर बहुत उल्लासित हूँ! स्नेह बनाए रखिए!
सादर !!
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online