For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आह ! वह सुख ----

पावसी मेह  में भीगा हुआ चंद्रमुख I

यौवन की दीप्ति से राशि-राशि  सजा 

जैसे प्रसन्न उत्फुल्ल नवल नीरजा I  

 

मुग्ध लुब्ध दृष्टि ----

सामने सदेह सौंदर्य एक सृष्टि I

अंग-प्रत्यंग प्रतिमान में ढले

ऐसा रूप जो ऋतुराज को छले  I

 

नयन मग्न नेत्र------

हुआ क्रियमाण कंदर्प-कुरुक्षेत्र I

उद्विग्न  प्राण इंद्रजाल में फंसे

पंच कुसुम बाण पोर-पोर में धंसे I

 

वपु धवल कान्त -----

अंतस में हा-हा वृत्ति, बहिरंग शांत  I

लज्ज -कंप भाव अनुराग से सने

अर्ध मुकुल नैनों में स्वप्न थे घने  I

 

रूप अपरूप -----

मंदिर के दीप की वर्तिका अनूप  I

दशक पूर्व जैसा ताप जैसा था प्रकाश I

आज भी वही अतृप्ति और वही प्यास I

 

एक चिर सत्य -----

भाव की सजीवता सदैव ही अमर्त्य  I

कुछ भी अतीत से नहीं अधिक समृद्ध

स्मृति  में कभी  नहीं नेह होता वृद्ध  I

 

मौलिक व् अप्रकाशित

 

Views: 1058

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 3, 2013 at 10:57pm

सावित्री राठौर जी

आपके प्रोत्साहन  का शत - शत आभार

Comment by MAHIMA SHREE on December 3, 2013 at 8:41pm

एक चिर सत्य -----

भाव की सजीवता सदैव ही अमर्त्य  I

कुछ भी अतीत से नहीं अधिक समृद्ध

स्मृति  में कभी  नहीं नेह होता वृद्ध  I

स्मृति  में कभी  नहीं नेह होता वृद्ध  I...... वाह बेहद सुंदर भावाभिव्यक्ति आदरणीय बधाई स्वीकार करें

Comment by कल्पना रामानी on December 3, 2013 at 7:27pm

स्मृति  में कभी  नहीं नेह होता वृद्ध  I...

बहुत सुंदर...

Comment by Savitri Rathore on December 1, 2013 at 10:31pm

कुछ भी अतीत से नहीं अधिक समृद्ध

स्मृति  में कभी  नहीं नेह होता वृद्ध  I

सत्य लिखा है आपने। अतिसुन्दर  रचना !

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 1, 2013 at 7:43pm

विजय मिश्र जी

स्मृति  पर आपकी  मधु कामना का कृतज्ञ  हूँ i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 1, 2013 at 7:41pm

नीर जी

स्मृति रचना पर आपके प्रोत्साहन से आनंदित हुआ i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 1, 2013 at 7:40pm

आशीष यादव जी

स्मृति पर आपकी सराहना का आभार  i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 1, 2013 at 7:37pm

आदरणीय सौरभ जी

अभी चैट पर आपसे  विचार विनिमय हुआ i

आपकी सम्मति से अधिकाधिक लाभान्वित भी हुआ i

स्मृति  आपको पसंद आयी,  मुझे माँ नो देव-प्रसाद मिल गया i

अनुग्रह हूँ i आदरणीय i अभिलाषी हूँ ऐसी ही कृपा का i  सादर  i


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 1, 2013 at 7:22pm

कुछ भी अतीत से नहीं अधिक समृद्ध
स्मृति  में कभी  नहीं नेह होता वृद्ध
अद्भुत ! इस मनोदशा की कविताएँ अब ढूँढनी होती हैं. भाव अत्यंत प्रखर हैं और शब्द सटीक ! जिस तारतम्यता से रचना बढती है वह अत्यंत मुग्धकारी है, आदरणीय

Comment by आशीष यादव on December 1, 2013 at 6:29pm
सच नेह एवं यादेँ कभी वृद्ध नही होतीँ।
अनुपम

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय Aazi जी बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
13 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय तिलक जी नमस्कार बहुत बहुत शुक्रिया आपका, आपने इतनी बारीकी से ग़ज़ल को देखा  आपकी इस्लाह…"
13 minutes ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय आज़ी भाई आदाब! ग़ज़ल का बहुत अच्छा प्रयास हुआ है जिसके लिए बहुत बहुत बधाई हो। मतला यूँ देखिए…"
28 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल कही आदरणीय आपने आदरणीय तिलक राज सर की इस्लाह भी ख़ूब हुई है ग़ज़ल और निखर जायेगी"
3 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल कही आदरणीय आदरणीय तिलक राज सर की इस्लाह से और बेहतर हो जायेगी अच्छी इस्लाह हुई है"
3 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय इतनी बारीकी से इस्लाह की है आदरणीय तिलक राज सर ने मतले व अन्य शेरों पर काबिल…"
3 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय आदरणीय तिलक राज सर की इस्लाह हर ग़ज़ल पर बेहतरीन हुई है काबिल ए गौर है ग़ज़ल…"
3 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई आदरणीय निलेश सर 4rth शेर बेहद पसंद आया बधाई स्वीकारें आदरणीय"
3 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय धामी सर बधाई स्वीकारें सुधार के बाद शेर और निखर गए हैं"
3 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सुधार- उम्रें न सही लम्हे बिताने के लिए आ ग़र इश्क़ है तो साथ निभाने के लिए आ/१ दिल भूल गया है सभी…"
3 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"मुश्किल में हूँ मैं मुझको बचाने के लिए आ है दोस्ती तो उसको निभाने के लिए आ 1 यही बात इन्हीं शब्दों…"
6 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service