रिश्ते यहाँ लहू के सिमटने लगे हैं अब
माँ बाप भाई भाई में बँटने लगे हैं अब
लो आज चल दिया है वो बाज़ार की तरफ
सब्जी के दाम लगता है घटने लगे हैं अब
वो प्यार से गुलाब हमें बोल क्या गए
यादों के खार तन से लिपटने लगे हैं अब
बदले हुए निजाम की तारीफ क्या करें
याँ शेर पे सियार झपटने लगे हैं अब
नेताओं की सुहबत का असर उनपे देखिये
देकर जबान वो भी पलटने लगे हैं अब
मशरूफ “दीप” सब हैं क्या मिलना नसीब हो
मसले भी फोन पर ही सलटने लगे हैं अब
संदीप पटेल “दीप”
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
मित्र
सब्जी के दाम तो नहीं घटे
पर आपके ग़ज़ल की कीमत जरूर बढ़ी
मित्र गिरिराज की सलाह में' भी' शब्द उपयुक्त प्रतीत होता है i
आप जैसा उचित समझे i
क्या बात है , बहुत खूब.................
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