बात सच जो लबे खुद्दार में आ जाती है
मैं ये सोचे हूँ क्यूँ बेकार में आ जाती है
सारा दिन खेलती है साथ में बच्चों के जो
उनके सोते ही वो बाज़ार में आ जाती है
हर दफा सुन के चुनावी औ सियासी बातें
याँ चमक सूरते बीमार में आ जाती है
गालियाँ भीड़ को दे यार से भी लड़ मर ले
कैसे हिम्मत किसी मैख्वार में आ जाती है
रोते चेहरों को हँसाना ही जिन्हें है भाता
रूह उन जैसी भी संसार में आ जाती है
बात घर की तो रहे घर में ही अच्छा होगा
घर से निकली तो वो अखबार में आ जाती है
“दीप” मुस्कान लिए लब पे हमेशा जलना
ऐसे जलने की अदा प्यार में आ जाती है
.............दीप...............
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय नीलेश जी ,आदरणीय डॉ प्राची जी .......उत्साहवर्धन के लिए ह्रदय से आभार स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
आदरणीय विजय मिश्र जी, आदरणीया महिमा श्री जी उत्साहवर्धन के लिए सादर आभार
आदरणीय नादिर खान सर जी , आदरणीय बृजेश सर जी .......उत्साहवर्धन के लिए सादर आभार स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
आदरणीय अखिलेश सर, आदरणीय गिरिराज सर जी सरहना के लिए सादर आभार स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
आदरणीय सुनील जी ......आदरणीय सारथि जी आपका ह्रदय से आभार स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
आदरणीय गोपाल सर जी सराहना के लिए सादर आभार
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
सारा दिन खेलती है साथ में बच्चों के जो
उनके सोते ही वो बाज़ार में आ जाती है
बात घर की तो रहे घर में ही अच्छा होगा
घर से निकली तो वो अखबार मे आ जाती है
बहुत सुन्दर शेर हुए हैं
हार्दिक बधाई संदीप जी
सारा दिन खेलती है साथ में बच्चों के जो
उनके सोते ही वो बाज़ार में आ जाती है
बात घर की तो रहे घर में ही अच्छा होगा
घर से निकली तो वो अखबार में आ जाती है .......बहुत ख़ूब ...बधाई
रोते चेहरों को हँसाना ही जिन्हें है भाता
रूह उन जैसी भी संसार में आ जाती है
बात घर की तो रहे घर में ही अच्छा होगा
घर से निकली तो वो अखबार में आ जाती है....... वाह एक से बढ़ कर एक बेहतरीन शेर ... बहुत -२ बधाई आदरणीय संदीप जी
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