For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रिश्ते यहाँ लहू के सिमटने लगे हैं अब

रिश्ते यहाँ लहू के सिमटने लगे हैं अब

माँ बाप भाई भाई में बँटने लगे हैं अब

 

लो आज चल दिया है वो बाज़ार की तरफ  

सब्जी के दाम लगता है घटने लगे हैं अब

 

वो प्यार से गुलाब हमें बोल क्या गए

यादों के खार तन से लिपटने लगे हैं अब

 

बदले हुए निजाम की तारीफ क्या करें  

याँ शेर पे सियार झपटने लगे हैं अब

 

नेताओं की सुहबत का असर उनपे देखिये

देकर जबान वो भी पलटने लगे हैं अब

 

मशरूफ “दीप” सब हैं क्या मिलना नसीब हो  

मसले भी फोन पर ही सलटने लगे हैं अब

 

संदीप पटेल “दीप”

मौलिक एवं अप्रकाशित

 

 

Views: 769

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 7, 2013 at 9:03pm

//अब से याद रखूँगा स्नेह और आशीष बनाये रखिये //

भाईजी, इस मंच की कार्यकारिणी के अहम मेम्बर हैं आप. फिर तो जो कुछ मैंने आपसे निवेदित किया है, उसकी अपेक्षा आपसे थी उन सदस्यों के प्रति जो भूलवश ऐसा कुछ लिखना या मेन्शन करना छोड़ देते.

जय हो.. . :-))))))))))

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 7, 2013 at 8:25pm

आदरणीय श्यामनारायण जी, आदरणीय गिरिराज सर जी, आदरणीय शिज्जू जी, आदरणीय गोपाल सर जी, आदरणीय जीतेन्द्र जी, आदरणीय नादिर खान जी, आदरणीय सौरभ सर जी, आदरणीय डॉ प्राची जी, आदरणीय रमेश जी, आप सभी का ह्रदय से धन्यवाद, स्नेह और मार्गदर्शन यूँ ही बनाये रखिये ..........आदरणीय सौरभ सर जी सादर प्रणाम ,,,,,,अब से याद रखूँगा स्नेह और आशीष बनाये रखिये

Comment by रमेश कुमार चौहान on November 27, 2013 at 7:07pm
संदीपजी वाह क्या कहने -

रिश्ते यहाँ लहू के सिमटने लगे हैं अब

माँ बाप भाई भाई में बँटने लगे हैं अब

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 27, 2013 at 4:59pm

लो आज चल दिया है वो बाज़ार की तरफ  

सब्जी के दाम लगता है घटने लगे हैं अब..............बहुत खूब :))

सुन्दर अशआर हुए हैं 

हार्दिक बधाई इस सुन्दर ग़ज़ल पर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 27, 2013 at 3:59pm

मज़ा आ गया. संदीप भाईजी.

वो प्यार से गुलाब हमें बोल क्या गए

यादों के खार तन से लिपटने लगे हैं अब...... यह शेर तो बस वाह वाह वाह ! ..

लो आज चल दिया है वो बाज़ार की तरफ  

सब्जी के दाम लगता है घटने लगे हैं अब......  :-)))))))))

जय हो....

भाई, ग़ज़ल के मिसरे का वज़्न तो दिया करें. .. उदाहरणार्थ, २२१ २१२१ १२२१ २१२ ..

Comment by नादिर ख़ान on November 26, 2013 at 10:49pm

बेहतरीन ....

लाजवाब......

बहुत खूब ......

Comment by विजय मिश्र on November 26, 2013 at 5:35pm
वाह ! बहुत खूब ! ताने-बाने की खूबसूरती साफ झलकती है |हर एक शे'र सबासेर है |
ढेर सारी बधाईयाँ लें संदीपजी |
Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 26, 2013 at 2:27pm

संदीप जी 

लो आज चल दिया है वो बाज़ार की तरफ  

सब्जी के दाम लगता है घटने लगे हैं अब..........तसल्ली की बात ...बहुत बढिया 

 

वो प्यार से गुलाब हमें बोल क्या गए

यादों के खार तन से लिपटने लगे हैं अब......................बेहतरीन ..दिल को छू गया 

 

बदले हुए निजाम की तारीफ क्या करें  

याँ शेर पे सियार झपटने लगे हैं अब........................शानदार शब्दों से वर्तमान पर्द्रिश्य का शानदार खाका ...ढेरो बधाई 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 26, 2013 at 7:47am

बदले हुए निजाम की तारीफ क्या करें  

याँ शेर पे सियार झपटने लगे हैं अब.......यह शेर बहुत पसंद आया

बेहतरीन गजल पर हार्दिक बधाई आदरणीय संदीप जी

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 25, 2013 at 9:59pm

//लो आज चल दिया है वो बाज़ार की तरफ  

सब्जी के दाम लगता है घटने लगे हैं अब

 

//मस्रूफ़ “दीप” सब हैं क्या मिलना नसीब हो  

मसले भी फोन पर ही सलटने लगे हैं अब//  आपके इन अशआर पर जनाब बद्र साहब का ये शेर याद आ रहा है

 

"कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बँधा हुआ

वो ग़ज़ल का लहजा नया नया न कहा हुआ न सुना हुआ"

आदरणीय संदीप जी आपका ये लहजा कुछ हट के लगा दाद कुबूल करें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब जब मलाई लिख दिया गया है यानी किसी प्रोसेस से अलगाव तो हुआ ही है न..दूध…"
7 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post पहलगाम ही क्यों कहें - दोहे
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, पहलगाम की जघन्य आतंकी घटना पर आपने अच्छे दोहे रचे हैं. उस पर बहुत…"
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा चतुर्दशी (महाकुंभ)
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, महाकुंभ विषयक दोहों की सार्थक प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. एक बात…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"वाह वाह वाह !  आदरणीय सुरेश कल्याण जी,  स्वामी दयानंद सरस्वती जैसे महान व्यक्तित्व को…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"जय हो..  हार्दिक धन्यवाद आदरणीय "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post पहलगाम ही क्यों कहें - दोहे
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  जिन परिस्थितियों में पहलगाम में आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया गया, वह…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी left a comment for Shabla Arora
"आपका स्वागत है , आदरणीया Shabla jee"
Monday
Shabla Arora updated their profile
Monday
Shabla Arora is now a member of Open Books Online
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"आदरणीय सौरभ जी  आपकी नेक सलाह का शुक्रिया । आपके वक्तव्य से फिर यही निचोड़ निकला कि सरना दोषी ।…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"शुभातिशुभ..  अगले आयोजन की प्रतीक्षा में.. "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"वाह, साधु-साधु ऐसी मुखर परिचर्चा वर्षों बाद किसी आयोजन में संभव हो पायी है, आदरणीय. ऐसी परिचर्चाएँ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service