जीवन का आधार........
हर सांस
ज़िंदगी के लिए
मौत से लड़ती है
हर सांस
मौत की आगोश से
ज़िंदगी भर डरती है
अपनी संतुष्टि के लिए वो
अथक प्रयास करती है
मगर कुछ पाने की तृषा में
वो हर बार तड़पती है
तृषा और तृप्ति में सदा
इक दूरी बनी रहती है
विषाद और विलास में
हमेशा ठनी रहती है
ज़िंदगी प्रतिक्षण
आगे बढ़ने को तत्पर रहती है
और उसमें जीने की ध्वनि
झंकृत होती रहती है
हर कदम पे लक्ष्य
बदलते रहते हैं
शह और मात के
इस खेल में जीत के
प्रयास चलते रहते हैं
हार जीने के प्रयास को
आगे ले जाती है
जीत जीवन के नए
लक्ष्य बनाती है
प्रतिक्षण जीने का संघर्ष
ही जीवन का आधार है
संघर्ष का विराम ही
जीवन पृष्ठ का उपसंहार है
सुशील सरना
''मौलिक एवं अप्रकाशित ''
Comment
Arun Sharma jee rachna par aapkee snehil pratikriya aur sujaav ka haardik aabhaar. sheh ko durust kr diya hai...ye tankan kee truti thee...aapka haardik aabhaar
आदरणीय जीवन के उतार चढाव का सुन्दर चित्रण किया है आपने इस हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.
(शाह और मात के या शय और मात)
जीवन दर्शन को शब्द देती आपकी रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई ।
बहुत खूब ,... जीवन के दर्शन को बेहद खूबसूरती से बयाँ किया आपने ..हार्दिक बधाई
Vijay Mishr jee rachna par aapkee snehatmak pratikriya ka haardik aabhaar
Meena Pathak jee rachna par aapkee snehil prashansa ka haardik aabhaar
बहुत सुन्दर | बधाई स्वीकारें आदरणीय
Thanks Rahul Dev for liking the poem
aa.Shijju Shakoor jee rachna par aapke snehankit shabdon ka haardik aabhaar
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