शब्द तरंगहीन
गहनतम
सान्द्रतम
और
निर्बाध उन्मुक्तता में अवस्थित
विलगता-विलयन के
सुलझे तारों पर स्पंदित
मन का अंतर्गुन्जन... / मदमस्त
जब चुन बैठे कोई स्वप्न
और
नियति
चरितार्थ करने को हो बाध्य !
तब,
विधि विधान विधाता
विलयित हो
उन्मुक्त मनःस्पंदन में
खेलते है ..सृजन-सृजन !
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
वाह वाह आदरणीया जय हो
ग़ज़ब के भाव
कम शब्दों में घोर निनाद उत्पन्न करती आपकी यह रचना
बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें
बहुत सुन्दर रचना! आपकी रचना की गहनता बेमिसाल है! आपको हार्दिक बधाई!
एक प्रश्न बार-बार उठता है- क्या शब्दों की क्लिष्टता आवश्यक है?
सादर!
गहन भावों के लिए गहरे शब्द आवश्यक हैं पर कभी-कभी मुझ जैसे अकिंचन पाठक का भी ध्यान रखा करें । शब्दों का अनुरणन कभी-कभी शोर भी पैदा करता है, थोड़ी सरलता आवश्यक प्रतीत होती है अन्यथा अर्थ भी आपको ही बताना होगा, सादर
अभिव्यक्ति में अन्तर्निहित भाव-दशा व अन्तःगार्भित तथ्य आपको आनंदित कर सके, लेखन की यही सफलता है.... उत्साहित करते अनुमोदन के लिए धन्यवाद आ० अरुण श्रीवास्तव जी
रचना पर आपकी शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद आ० श्याम नारायण वर्मा जी
आदरणीय सौरभ जी
अभिव्यक्ति के कथ्य के प्रति आपकी मुखर स्वीकार्यता लेखन की तार्किकता को आश्वस्त करती हुई है.
इस रचना के प्रथम अंश की सम्प्रेशनीयता पर मैं भी पूरी तरह आश्वस्त नहीं थी.. आपने लेखन व्यवस्था में जो सुधार सुझाया है वह सम्प्रेषण में स्पष्टता के लिहाज से पूर्णतः स्वीकार्य है.
अभिव्यक्ति की सुगढ़ता के लिए सार्थक सुझाव हेतु हृदय से धन्यवाद.
सादर.
आपकी कविताओं का परोक्ष हमेशा ही बहुत गहन होता है ! जितनी बार पढ़ो , आनंद बढ़ता ही है ! बहुत सुन्दर !
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए …………….. |
क्रुपया इस लेखन व्यवस्था को देखिये --
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शब्द तरंगहीन
गहनतम
सान्द्रतम
और
निर्बाध उन्मुक्तता में अवस्थित
विलगता-विलयन के
सुलझे तारों पर स्पंदित
मन का अंतर्गुन्जन... / मदमस्त
जब चुन बैठे ये कोई स्वप्न
और
नियति
चरितार्थ करने को हो बाध्य !
तब,
विधि विधान विधाता
विलयित हो
उन्मुक्त मनःस्पंदन में
खेलते है ..सृजन-सृजन !
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आदरणीया, जय हो.. बहुत खूब !! .. :-))))
कहा तो आपने बिल्कुल सही है. परन्तु अभिव्यक्ति स्वर के माध्यम से न हो कर लिखित शब्दों के माध्यम से हो तो ऐसे भावों को अंकित करने के क्रम में कुछ और व्यवस्था उचित होती न ! .. . :-)))
शुभ-शुभ
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