मौन के शव ?
बोलते चुपचाप
बात करते आप
रौंदते है मूक अन्तस को
बधिर होता है हाहाकार
दग्ध पर नहीं होते वो
ध्वंस लेता है फिर आकार
यही होता है प्रकृति में
भावनाओ की विकृति में
सतत क्रम सा बार बार
सभी है सहते उसे
और हाँ कहते उसे
निष्ठुर प्रेम !
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय निकोर जी
आपको अग्रज कहना मुझे अच्छा लगेगा
आपका हिंदी व् इंग्लिश दोनों पर समान अधिकार है
ऐसा सौभाग्य विरलों को मिलता है i
आपका आशिर्वाद पाकर मै भावुक हो गया i
आपका शत शत आभार i
पटेल जी
आपके प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार i
हृदय के हाहाकार को सुन्दर अभिव्यक्ति मिली है।
इस भावपूर्ण रचना हेतु हार्दिक बधाई।
सादर,
विजय निकोर
बहुत ही गहरी अभिव्यक्ति ...............जय हो
मित्र गिरिराज जी
आपके प्रोत्साहन का आभारी हूँ i आप कुशल तैराक है i मोती चुन ही लेंगे i
सादर i
आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , बड़ा गंभीर विषय चुना है आपने इस बार , बाहर ही बाहर तैर रहा हूँ , अंदर जाने के प्रयास मे हूँ !!!!
गूढ़ार्थ लिये आपकी रचना के लिये आपको हार्दिक बधाई !!!!!
म्रदु जी
अंतस को बधिर से मत जोडिये i
बधिर होता हाहाकार पृथक भाव् है
आपने कभी ह्रदय का हाहाकार सुना है
हमारी बुद्धि हमें एक बार सचेत तो करती है
पर चंचल मन उसे नहीं सुनता i
शायद इतना संकेत काफी होगा i
आपका शुष्क रचना में रूचि लेना का आभार i
रौंदते है मूक अन्तस को
बधिर होता है हाहाकार
पूरी रचना अत्यंत सुंदर लगी पर यहां अटक गया, अन्तस-बधिर का समायोजन बड़ा छल कर रहा है, मार्गदर्शन की अपेक्षा है, सादर
मीना पाठक जी
आपका हार्दिक आभार i
आदरणीय सरना जी
आपके प्रोत्साहन का हार्दिक आभार i
सादर i
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