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ज़िन्दगी ठहरी फ़क़त दो पल की

खबर क्या है किसी को कल की
ज़िन्दगी ठहरी फ़क़त दो पल की

एक से ही हैं गम हमारे
एक सी ही तो खुशियाँ
दिल से दिल के दरमयाँ
फिर क्यूँ इतनी है दूरियाँ

तमन्ना किसे है आखिर ,किसी ताजमहल की
ज़िन्दगी ठहरी फ़क़त दो पल की .............

आ चल दो पल हम
जरा दिल से रो लें
नफ़रत के हर निशाँ
आँसुओं से धो लें
ओढ़ माँ का आंचल
दो पल को हम सो लें

जिन्दगानी हो कहानी ,यक नए पहल की
ज़िन्दगी ठहरी फ़क़त दो पल की .............

~~~ चिराग़

[July 21,2013]

मौलिक एवम् अप्रकाशित 

Views: 565

Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 5, 2013 at 9:35am

आपकी इस सुंदर प्रस्तुति पर सादर बधाई ..

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 4, 2013 at 5:02pm

आदरणीय चिराग साहब अच्छा प्रयास किया है आपने भावपक्ष बहुत पसंद आया शिल्प और ध्यान देने की आवश्यकता है प्रयासरत रहें इस प्रयासपर बधाई स्वीकारें.

ओढ़ माँ का आंचल
दो पल को हम सो लें .. खासकर ये पंक्ति बहुत ही पसंद आई.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 4, 2013 at 3:47am

अच्छे भाव हैं . बधाई .

Comment by Kedia Chhirag on December 3, 2013 at 11:55pm

सभी गुरुजनों का दिल से बहुत बहुत आभारी हूँ ..अभी सीख रहा हूँ ...रचना शिल्प की खामियां अच्छी तरह समझता हूँ...बिलकुल लचर है और भाव के सिवा कुछ भी नहीं ...संध्या जी, मुझे स्वयं ही ज्ञात नहीं क्या विधा है क्योंकि गीत कह नहीं सकता ...मात्रिकता का कोई ख्याल नहीं रखा गया है ...और कोई हो नहीं सकता सिवा नवगीत के ...अब नवगीत के नियमों पे खरा है या नहीं ये आप बतलाईये ...मैं तो अभी काफी नौसिखुआ हूँ बहुत सीखना है .....


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 3, 2013 at 9:52pm

केडीआ चिराग जी, भाव बहुत ही बढ़िया पकड़े हैं, शिल्प पर और कसावट होनी चाहिए, बधाई इस प्रयास पर |

Comment by Sushil Sarna on December 3, 2013 at 7:48pm

sundr bhaav yukt rachna...badhaaee

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 3, 2013 at 6:36pm

चिराग जी

अच्छे भाव शिल्प के लिए आपको बधाई i

Comment by sandhya singh on December 3, 2013 at 6:20pm

अच्छी रचना है ...मगर किस विधा में है ?

Comment by Shyam Narain Verma on December 3, 2013 at 5:12pm
बहुत ही सुन्दर ,  हार्दिक बधाई आपको......

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