खबर क्या है किसी को कल की
ज़िन्दगी ठहरी फ़क़त दो पल की
एक से ही हैं गम हमारे
एक सी ही तो खुशियाँ
दिल से दिल के दरमयाँ
फिर क्यूँ इतनी है दूरियाँ
तमन्ना किसे है आखिर ,किसी ताजमहल की
ज़िन्दगी ठहरी फ़क़त दो पल की .............
आ चल दो पल हम
जरा दिल से रो लें
नफ़रत के हर निशाँ
आँसुओं से धो लें
ओढ़ माँ का आंचल
दो पल को हम सो लें
जिन्दगानी हो कहानी ,यक नए पहल की
ज़िन्दगी ठहरी फ़क़त दो पल की .............
~~~ चिराग़
[July 21,2013]
मौलिक एवम् अप्रकाशित
Comment
आपकी इस सुंदर प्रस्तुति पर सादर बधाई ..
आदरणीय चिराग साहब अच्छा प्रयास किया है आपने भावपक्ष बहुत पसंद आया शिल्प और ध्यान देने की आवश्यकता है प्रयासरत रहें इस प्रयासपर बधाई स्वीकारें.
ओढ़ माँ का आंचल
दो पल को हम सो लें .. खासकर ये पंक्ति बहुत ही पसंद आई.
अच्छे भाव हैं . बधाई .
सभी गुरुजनों का दिल से बहुत बहुत आभारी हूँ ..अभी सीख रहा हूँ ...रचना शिल्प की खामियां अच्छी तरह समझता हूँ...बिलकुल लचर है और भाव के सिवा कुछ भी नहीं ...संध्या जी, मुझे स्वयं ही ज्ञात नहीं क्या विधा है क्योंकि गीत कह नहीं सकता ...मात्रिकता का कोई ख्याल नहीं रखा गया है ...और कोई हो नहीं सकता सिवा नवगीत के ...अब नवगीत के नियमों पे खरा है या नहीं ये आप बतलाईये ...मैं तो अभी काफी नौसिखुआ हूँ बहुत सीखना है .....
केडीआ चिराग जी, भाव बहुत ही बढ़िया पकड़े हैं, शिल्प पर और कसावट होनी चाहिए, बधाई इस प्रयास पर |
sundr bhaav yukt rachna...badhaaee
चिराग जी
अच्छे भाव शिल्प के लिए आपको बधाई i
अच्छी रचना है ...मगर किस विधा में है ?
बहुत ही सुन्दर , हार्दिक बधाई आपको...... |
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