For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दीवाना होश खो देगा

कन्हैया यूँ न मुस्काओ दीवाना होश खो देगा ।
कि खुद डूबेगा मस्ती में वो तुमको भी डुबो देगा ।

दीवाने को नही मालुम तेरी मुस्कान का जादू ।
जो देखेगा छटा मुख की तो हो जाये न बेकाबू ।

फिर तो होके वो पागल तुम्हारे पीछे दौड़ेगा ।

कन्हैया यूँ न मुस्काओ दीवाना होश खो देगा ।

ये करुणा से भरी आँखें पिलाती प्रेम का प्याला ।
के उस पर माधुरी तेरी घोल दे कौन सी हाला ।

गिरेगा लड़खड़ाकर जब तुम्हें बदनाम कर देगा ।
कन्हैया यूँ न मुस्काओ दीवाना होश खो देगा ।

कि होकर प्रेम में पागल तुम्हारे दर पे बैठा है ।
न जाने आज ये क्या क्या इरादा करके बैठा है ।

कि पूरी जब गुज़ारिश हो तभी तेरा द्वार छोड़ेगा ।
कन्हैया यूँ न मुस्काओ दीवाना होश खो देगा ।

फाड़ता खुद के ही कपड़े नाच दंगल ये करता है ।
कि इसको बाँध कर रखो बड़ी हलचल ये करता है ।

हो इसके सांचे भावों को यहाँ कोई न समझेगा ।
कन्हैया यूँ न मुस्काओ दीवाना होश खो देगा ।

के इसकी ज़िन्दगी हो तुम तो जीने कि वज़ह दे दो ।
अपने दरबार में मोहन इसे थोड़ी जगह दे दो ।

तुम्हारे रूप के मोती वहाँ जी भर के लूटेगा ।
कन्हैया यूँ न मुस्काओ दीवाना होश खो देगा ।

मौलिक व अप्रकाशित
नीरज "प्रेम"

Views: 1039

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Neeraj Nishchal on December 13, 2013 at 12:37pm

"समाधि के कई चरण होते हैं. प्रारम्भिक अवस्था के बाद संप्रज्ञात समाधि, असंप्रज्ञात समाधि के आगे अति एकाग्रता की अभिनव अवस्था यानि निर्विकल्प या निर्बीज समाधि जोकि कैवल्य चरण में संभव है."""""

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, समाधि के बारे में इतनी जानकारी नही थी मुझे आप ने जो दी उसके लिए बहुत बहुत
धन्यवाद मैंने समाधि में जाने के प्रयोग किये हैं उनके माध्यम से कुछ अनुभव ज़रूर प्राप्त हुए और इतना ही जाना है अहंकार
जितना शून्य होता जाएगा समाधि उतनी ही गहरी होती जायेगी अहंकार कि मृत्यु ही समाधि है इसलिए गोरख नाथ ने कहा " मरो
हे जोगी मरो " ऐसा मरो कि फिर से मरना ना हो एक बार में ही काम ख़तम करो रोज रोज कि झंझट छोड़ो कबीर दास जी भी इसके समकक्ष कहते हैं

मरते मरते जग मरा , लेकिन मरा न कोय ।
दास कबीरा यूँ मरा , बहुरि न मरना होय ।

और बहुत ज्यादा
प्रेम से पूर्ण होने पर समाधि सहज ही घट ती है इसलिए कहते हैं
खुदा को मत ढूढ़ बंदगी सीख ले
खुदा खुद तुझे ढूढ़ने निकल पड़ेगा
और स्त्रियों के लिए ये बिलकुल सरल बात है इसलिए आपने शायद सुना हो परमहंस जी ने भी स्त्री होने की साधना कि थी
सारे बुद्ध पुरुष स्त्रियों जैसे ही प्रतीत होते हैं परमात्मा द्वारा सृजित स्त्री तत्त्व कि हमे गहनतम खोज अपने भीतर ही करनी चाहिए

"लेकिन, भाईजी, हम तो कविता की बात कर रहे हैं न ! यानि ऐसे किसी तत्त्व के संप्रेषण के शाब्दिक साधन की बात कर रहे हैं.

यदि साधन उचित नहीं होता तो हम ध्यान के ही किस चरण तक पहुँच पाते हैं ? संभव नहीं. यहाँ साधन तो अपना शरीर ही है. यह शरीर एक उचित साधन बना रहे, इसी करण तो योग के अवयवों में यम, नियम, आसन, प्रत्याहार आदि के सोपान हैं !

इसी तरह अपने अनुभवों या वृत्तियों के कई-कई पहलुओं को शाब्दिक रूप से संप्रषित करने के लिएभी साधन का सार्थक होना आवश्यक है. यह साधन यदि कविता या पद्य है तो उसे क्या विधान सम्मत रखना और करना उचित न होगा ?

यही मुझे आपसे निवेदन करना है, भाईजी.

शुभेच्छाएँ""""""""""""""""""""""""""

आपकी इन बातों से पूरी तरह सहमत हूँ कविता लिखते वक्त उसके हर पहलुओं पर ध्यान देना ही होगा
हर तरफ से संतुलन होना चाहिए जिस तरह अध्यात्म कि भी साधना होती है उसी तरह साहित्य की
भी साधना होती है और इन दोनों साधनाओं का आपस में गहरा सम्बन्ध भी है
इस लिए आप देखें तो हमारे देश के अधिकतर आधात्मिक साधक श्रेष्ठतम साहित्यकार भी हुए हैं
फिर वो कबीर और रैदास जैसे अनपढ़े लोग भी क्यों ना हों ,,,,,,,,,
मै इन दोनों साधनाओं को अपने जीवन में समानान्तर ले चलने के लिए पूरी तरह प्रयासरत
रहने कि पूरी कोशिश करूंगा ।
सादर आभार ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 12, 2013 at 5:52pm

जी, नीरजजी, समाधि के कई चरण होते हैं. प्रारम्भिक अवस्था के बाद संप्रज्ञात समाधि, असंप्रज्ञात समाधि के आगे अति एकाग्रता की अभिनव अवस्था यानि निर्विकल्प या निर्बीज समाधि जोकि कैवल्य चरण में संभव है. बहुत अच्छा लगा, भाईजी, इन विन्दुओं पर बात कर. बहुत-बहुत धन्यवाद. यह अवश्य है कि तोतापुरीजी ठाकुर के गुरु थे.

लेकिन, भाईजी, हम तो कविता की बात कर रहे हैं न ! यानि ऐसे किसी तत्त्व के संप्रेषण के शाब्दिक साधन की बात कर रहे हैं.

यदि साधन उचित नहीं होता तो हम ध्यान के ही किस चरण तक पहुँच पाते हैं ? संभव नहीं. यहाँ साधन तो अपना शरीर ही है. यह शरीर एक उचित साधन बना रहे, इसी करण तो योग के अवयवों में यम, नियम, आसन, प्रत्याहार आदि के सोपान हैं !

इसी तरह अपने अनुभवों या वृत्तियों के कई-कई पहलुओं को शाब्दिक रूप से संप्रषित करने के लिएभी साधन का सार्थक होना आवश्यक है. यह साधन यदि कविता या पद्य है तो उसे क्या विधान सम्मत रखना और करना उचित न होगा ?

यही मुझे आपसे निवेदन करना है, भाईजी.

शुभेच्छाएँ

Comment by Neeraj Nishchal on December 12, 2013 at 1:34pm

आदरणीय पाण्डेय जी समाधि के भी चरण होते हैं
और हर समाधि पहली समाधी जैसी ही अनुभव होती है
जिसको होती है ये बात उसी को पता चलती है

Comment by Neeraj Nishchal on December 12, 2013 at 1:29pm

आदरणीय पाण्डेय जी रामकृष्ण को पहली समाधि कहने को तो सोलह वर्ष कि अवस्था में
कुदरत के खूबसूरत नज़ारे को देख कर लगी पर कहते हैं कि वो समाधि की पहली झलक थी
और एक प्रसंग ये भी आता है कि राम कृष्ण जब ध्यान में बैठ ते थे तो काली माँ कि सूरत उनके ध्यान में
आ जाती थी और वो भाव में भर जाते थे और अचेत होकर गिर जाते थे एक बार उनके यहाँ सिद्ध पुरुष
तोतापुरी जी आये उन्होंने अपनी समस्या उनको बतायी उन्होंने कहा ठीक है तुम मेरे सामने ध्यान में बैठना
राम कृष्ण ने पूछा आपको कैसे पता चलेगा कि अब काली माँ मेरे ध्यान में आ गयीं हैं तो तोतापुरी जी ने कहा
जब काली तेरे ध्यान में आती हैं तो तेरे चहरे का रंग ही बदल जाता है तू उसकी फिकर मत कर ,
फिर क्या था बैठे रामकृष्ण ध्यान में जैसे ही राम कृष्ण के ध्यान में काली आयी तोतापुरी जी ने तुरन्त पहचान
लिया और पास पड़े टूटे कांच के टुकड़े से परमहंस के माथे पर चीरा लगा दिया क्यों कि वहाँ पर मनुष्य का स्मृति द्वार होता है
और परमहंस समाधिस्थ हो गए ।
पर कहते हैं
हरि अनंत हरि कथा अनंता ।
कहत सुनत बहु विधि सब संता ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 10, 2013 at 6:30pm

नीरज भाई, आप लिखना चाहते हैं तो आपके पास सामर्थ्य भी है.

लेकिन पहले इस सामर्थ्य को लायक बनाना होगा. अलबत्ता, पहल आपही को करनी होगी. उसके लिए ओबीओ का मंच उचित स्थान है.

आप किसी टिप्पणी पर अपनी बात कहें. अवश्य कहें.  किन्तु सुनी-सुनायी बातों को तथ्य न बनायें.

आपने भाई गणेश जी के कहे पर ठाकुर के प्रसंग को यह कह कर उद्धृत किया है कि यों उनकी पहली समाधि लगी. यह आपने कहाँ पढ़ा ? हो सकता है कि उस प्रसंग में भी उनकी समाधि लगी होगी. ऐसे अनागिनत प्रसंग हैं उनके जीवन में.

आप एक बार फिर से देख लें कि उनकी पहली समाधि कब और किन हालात में लगी थी.

शुभ-शुभ

Comment by विजय मिश्र on December 5, 2013 at 1:05pm
भक्तिभाव से भरी ,कृष्ण रस में पगी बहुत सुंदर रचना , जय श्रीकृष्ण नीरजजी
Comment by Neeraj Nishchal on December 5, 2013 at 11:47am

आदरणीय आशुतोष जी आपका बहुत बहुत आभार ।

Comment by Neeraj Nishchal on December 5, 2013 at 11:46am

चन्दन सा बदन चंचल चितवन
धीरे से तेरा ये मुस्काना ।
मुझे होश ना देना जगवालों
हो जाऊं अगर मै दीवाना ।

आदरणीय निलेश जी आप सुनिये
ये गाना

आपका बहुत बहुत आभार

Comment by Neeraj Nishchal on December 5, 2013 at 11:44am

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by Neeraj Nishchal on December 5, 2013 at 11:42am

आदरणीय अरुण भाई आप जिस तरह से मुझे प्रोत्साहन देते हैं उसके लिए मै आपके प्रति शुक्र गुज़ार हो पाऊँ कम ही रहेगा
शायद मै इस से बेहतर भी लिख सकता था और मै कोशिश करूँगा कि अपनी भावनाओं को ठीक ठीक अपने शब्दों में सहेज पाऊँ
और भी अच्छा लिख सकूँ आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service