शब्द कोष से संकलित
क्लिष्ट शब्दों का समुच्चय
गद्यनुमा खण्डित पक्तियों में
शब्द संयोजन
कथ्य और प्रयोजन से कोसों दूर
लक्ष्यहीन तीरों के मानिंद
बिम्ब और प्रतीक
कही तो जा धसेंगे
बस
वही होगा लक्ष्य
फिर.......
पाठक का द्वन्द्ध
बार-बार पढ़ना
पग-पग पर अटकना
समझने का प्रयत्न
गुणा भाग, जोड़ घटाव
सुडोकू सुलझाने का प्रयास
और अंततः
एक प्रतिक्रिया
नि:शब्द हूँ ।
***
(मौलिक व अप्रकाशित)
पिछला पोस्ट =>लघुकथा : छवि
Comment
कृत्रिम और नैसर्गिक पुष्प का अंतर बताती सुन्दर रचना.बधाई आदरणीय गणेश जी..............
भाई राहुलदेव जी, आपके कहे का शतप्रतिशत समर्थन करता हूँ. यही कहना मेरा आशय भी था. और यही गणेश भाई का भी कहना है. भाई गणेशजी ने सटीक और सार्थक तथ्य उठाये हैं अपनी इस प्रस्तुति में. बस बातें तनिक सार्वभौमिक सी हो गयी हैं उसी का निवारण आवश्यक जान मैं चर्चा कर रहा हूँ.
//हाँ छिटपुट लोग ऐसे भी पाए जाते हैं जो अपनी विद्वता झाड़ने के लिए जानबूझकर क्लिष्टता का कृत्रिम मायाजाल रचते हैं जैसा कि बागी जी ने अपनी रचना के माध्यम से इंगित किया है। //
एकदम सत्य. भाई गणेशजी की रचना का मूल यही है. और हम गणेश भाई के इस तथ्य का हृदयतल से सर्मथन करते हैं.
आदरणीय गणेश जी
ऐसी अतुकांत अभिव्यक्तियाँ जिनमें कथ्य या भाव शाब्दिकता का भार वहन करने में असमर्थ हो उनपर व्यंग करती आपकी इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई..
सादर.
आदरणीय गणेशजी बहुत खूबसूरती से आपने अपनी बात कही है आपकी इस सार्थक संदेश देती हुई रचना के लिये बधाई
आदरणीय बागी जी , आपकी शानदार लघु कथाओं की तरह यह रचना भी मुझे बेहद भाई ..लेकिन मुझे लगता है हर रचनाकार एक जैसा नहीं होता है ..हर तरह के साहित्यकार है हर तरह की रचनाएँ भी ..सादर बधाई के साथ
आदरणीय सौरभ भईया, रचना पर आपकी उपस्थिति हर्ष विभोर करती है, आपकी टिप्प्णी को मैं केवल पढ़ता ही नहीं बल्कि मनन करता हूँ , गुनता हूँ, अपनी कमियों को पुनः याद करता हूँ और सुधार के लिए प्रयासरत रहता हूँ | आपका आशीर्वाद पा गदगद हूँ, बहुत बहुत आभार आदरणीय |
आदरणीय सुशील सरना जी, आपको रचना सार्थक लगी, रचना सफल हुई, आभार प्रेषित है |
आदरणीय
आपका कथन सत्य है i स्वीकार्य है i किन्तु आपकी रचना वस्तुतः बहुत सामयिक और उद्देश्यपूर्ण है i सादर i
आदरणीया गीतिका जी, क्लास - वलास कुछ नहीं, यह तो स्वाभाविक अभिव्यक्ति है, आपको रचना अच्छी लगी, मुझे ख़ुशी हुई, बहुत बहुत आभार आपका |
प्रिय अरुण श्रीवास्तव जी, अतुकांत शैली में मैंने बहुत ही कम रचनाएं लिखी है, मुझे यह विधा बहुत ही कठिन लगती है, मैं इस विधा को समझने कि प्रक्रिया में हूँ, आपकी टिप्प्णी प्राप्त हुई, मुझे ख़ुशी हुई, सादर आभार |
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