पहले थे हम इक हकीकत अब कहानी हो गए
जब से अपने ख्वाब यारो आसमानी हो गए
पांच सालों में महल सा अपने घर को कर लिया
चोर डाकू करके मेहनत खानदानी हो गए
तुम जियो खुश जिन्दगी भर ऐसा उसने जब कहा
एक सिक्का था उछाला हम भी दानी हो गए
यूँ हमारी हर ग़ज़ल खुशबू हुई औ सर चढ़ी
देखते देखते हम जाफरानी हो गए
“दीप” गम के पर्वतों को तुमने क्या पिघला दिया
गर्दिशों की कौम के सब पानी पानी हो गए
संदीप पटेल “दीप”
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
खूबसूरत ग़ज़ल हुई आ संदीप जी...
हार्दिक बधाई स्वीकारें...
तुम जियो खुश जिन्दगी भर ऐसा उसने जब कहा
एक सिक्का था उछाला हम भी दानी हो गए
बहुत अच्छा शे’र हुआ है संदीप जी। दाद कुबूलें
भाई, संदीप जी, कमाल की ग़ज़ल हुई है. अधोलिखित शेर के लिये बहुत-बहुत बधाई.
तुम जियो खुश जिन्दगी भर ऐसा उसने जब कहा
एक सिक्का था उछाला हम भी दानी हो गए
वाह भाई वाह !
यूँ हमारी हर ग़ज़ल खुशबू हुई औ सर चढ़ी
देखते देखते हम जाफरानी हो गए
सानी में शायद देखते देखते के मध्य ही का होना बनता है न ?
शुभ-शुभ
बहुत ही खूबसूरत गज़ल लिखी है। बधाई।
हर शेर उम्दा है पूरी ग़ज़ल मुकम्मल और जानदार ..
तुम जियो खुश जिन्दगी भर ऐसा उसने जब कहा
एक सिक्का था उछाला हम भी दानी हो गए
यूँ हमारी हर ग़ज़ल खुशबू हुई औ सर चढ़ी
देखते देखते हम जाफरानी हो गए
...बहुत बहुत बधाई आपको संदीप जी
तुम जियो खुश जिन्दगी भर ऐसा उसने जब कहा
एक सिक्का था उछाला हम भी दानी हो गए
visheshkar is sher ne manmoh liya
तुम जियो खुश जिन्दगी भर ऐसा उसने जब कहा
एक सिक्का था उछाला हम भी दानी हो गए...बहुत सुन्दर
वाह वाह आदरणीय संदीप भाई साहब बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने बहुत बहुत बधाई स्वीकारें
सुन्दर ग़ज़ल कही है आ० सदीप जी ..
पांच सालों में महल सा अपने घर को कर लिया
चोर डाकू करके मेहनत खानदानी हो गए............हालात-ए-हजरा पर सुन्दर शेर
हार्दिक बधाई
आदरणीय योगराज सर जी सादर प्रणाम
आपका ह्रदय से धन्यवाद और आभार संशोधन हेतु
स्नेह और आशीष यूँ ही बनाये रखिये
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