For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वर्तमान पर कविता / संदीप पटेल /अतुकांत

आँखों से बहता लहू

लाल लाल धधकती ज्वालायें

कृष्ण केशों सी काली लालसाएँ

ह्रदय की कुंठा

असहनीय वेदना

दर्दनाक कान के परदे फाड़ती

चीखें

लपलपाती तृष्णा

तिलमिलाती भूख

अपाहिज प्रयास

इच्छाओं के ज्वार भाटे

आश्वासन की आकाशगंगा

विश्वासघाती उल्कापिंड

हवस से भरे भँवरे

शंकाओं से ग्रसित पुष्प

उपेक्षाओं के शिकार कांटे

हाहाकार चीत्कार ठहाके

विदीर्ण तन

लतपथ , लहूलुहान बदन

जो बींध डालता है

अंतर्मन

 

कहीं हाथों की

गदेलियों की ओट में

छुपा चंदा

कुंठित, लज्जित, शर्मिंदा

फटे चीथड़े

तंग कपड़ों में

कराहता सा

 

वर्तमान की कोख में पलता

भविष्य

घिरा आशंकाओं से

लालायित

तथाकथित ममता के लिए

और

आतुर है उड़ने को

देखता ही नहीं

शालीनता धरती की

सोच है बस आसमाँ की

माँ ने दिए हैं

पर ..............

कहीं

कूड़ेदान में जीवन

अद्भुत आज

एक सिक्के में

करोड़ों की दुआएं

और

एक पेट के लिए छप्पन भोग

और छप्पन पेटों के लिए

एक वक़्त की एक रोटी

 

कहीं

सुराही दार दीप्तिस्तम्भ

आलीशान महल

आँगन में लाखों रंगीन पुष्प

 

कहीं जलती दियासलाई

और झुलसती झोपड़ियां

और एक ही रंग

दरो दीवार , आँगन हर जगह

दर्द का

पानीदार  

पानीदार

और सिर्फ पानीदार

बस कर कवि

मत लिख

मत लिख तू

इस वर्तमान पर कविता

मत कर आहत कविता को

उसके सौन्दर्य को

के उसके बदन से टपकने लगे लहू

और

उसे देख मचलाने लगे जी

पाठकों का और श्रोताओं का

 

मत कर आहत कविता को

के शब्द सागर से निकले मोती

रक्तरंजित कांतिहीन हो जाएँ

 

हे कवि मत लिख तू कविता

वर्तमान पर

क्यूंकि कविता ढाल लेती है

सबको अपने रंग में

संदीप पटेल "दीप"

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 904

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 14, 2013 at 11:43am

आदरणीय सौरभ सर आप मुझे हर विधा में उतना ही आग्रही समझिये ...............हठ कम नहीं हुआ है और कब तुतलाते हुए बड़ा हो जाऊँगा इसे मैं भी नहीं जानता किन्तु एक दिन आएगा अवश्य ............मुझे आपके आशीर्वाद और अपने प्रयासों पर यकीन है

ये स्नेह यूँ ही बनाए रखिये ................सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 14, 2013 at 11:30am

आप सार्थक और सकारात्मक प्रयास करें, भाईजी. हम सभी साथ-साथ हैं.

सही कहें तो आपको हम आज का संदीप कम और तुतलाती ज़ुबान लिये ग़ज़ल और छंद का प्रयास करने के क्रम में धुर आग्रही संदीप के रूप में अधिक याद रखना चाहते हैं, जो तब समझा देने के भाव के तहत नहीं, बल्कि सीखने के लिए हठ अपनाता हुआ प्रस्तुतियाँ साझा किया करता था. इसे अपनी आज की क्षमता पर कोई अन्यथा दवाब न समझियेगा. भाईजी. क्योंकि आज वही तुतलाती ज़ुबान इतनी सक्षम हुई है.  आपके प्रयास में उसी समर्पण और अदम्य उत्साह की अपेक्षा है, जिसकी तब हमसभी इस मंच पर भूरि-भूरि प्रशंसा किया करते थे. 

शुभेच्छाएँ

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 14, 2013 at 10:59am
आदरणीय सौरभ सर सादर प्रणाम

आपके कहे को समझ रहा हूँ और धीरे धीरे संभवतः सुधार हो जाएगा .ये स्नेह और आशीष बनाये रखिये

आदरणीया महिमा श्री जी आपका ह्रदय से आभार
Comment by MAHIMA SHREE on December 13, 2013 at 11:09pm

वाह ... गज़ल के साथ अब तो अतुकांत  भी,  आप छा गए ...:)

 

बहुत खूब ..आ. संदीप जी हार्दिक बधाई आपको


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 13, 2013 at 10:48pm

भाई संदीपजी,
पहली बात, आप अतुकान्त शैली की सम सामयिक कवियों की अमूमन कितनी रचनाएँ पढ़ते हैं जो बड़े परिदृश्य में स्थापित हैं ? इस विधा पर क्या किताबें पढ़ना अच्छा लगता है, जो अतुकान्तशैली में हैं ?  यदि इसका उत्तर सकारात्मक है तो आप इतने संवेदनशील हैं कि अच्छा-बुरा सहज ढंग से सोच सकते हैं.

अतुकान्त शैली की कविताएँ मात्रिक या वर्णिक शैली की नहीं हैं कि आपको उस लिहाज में ’बतायी’ जायें. यह विधा अपने विन्दुओं को सकारात्मक इंगितों में और तथ्यात्मक ढंग से कहने की अपेक्षा रखता है.

भाईजी, आप आँख और समझ खुली रखें और उन कवियों की अतुकान्त कवितायें पढ़ते रहें जिन्हें लोग सम्मान देते हैं.

दूसरे, क्या रचनाकर्म में सुगढ़ होना कलाकारी करना कहलाता है ? यह तो बड़ा ही नकारात्मक शब्द माना जाता है भाईजी. या, फिर व्यंग्य में कहा जाता है कि फलाना बड़ा ’कलाकार’ है और ’कलाकारी’ करता है. तो क्या वे सभी जो अतुकान्त रचनाएँ करते हैं, ’कलाकारी’ करने में सिद्हस्त होते हैं ? .. हा हा हा हा.... .  :-)))

इसमें शक नहीं कि आपको मैंने अतुकान्त शैली में रचनाकर्म करते जबभी देखा है तो आपकी ग़ज़लों या अन्य विधाओं की रचनाओं के सापेक्ष दुर्बल ही पाया है..
शुभेच्छाएँ.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 13, 2013 at 9:45pm

आप सभी स्नेहीजनों का ह्रदय से धन्यवाद .................स्नेह और आशीष यूँ ही बनाये रखिये

आदरणीय सौरभ सर सादर प्रणाम

क्या आप मेरी मदद करेंगे

कृपया इस रचना को सुधार कर मुझे एक बार दिखायेंगे .............मुझे समझ ही नहीं आता की शाब्दिक होने से कैसे बचा जाये .........................दिमाग सुन्न हो जाता है ............पर कलाकारियाँ हमसे आती नहीं क्या करें

कैसे करें

Comment by वीनस केसरी on December 11, 2013 at 12:15am

जय हो !!!!!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 10, 2013 at 11:43pm

इतने प्रतीक.. ऐसे-ऐसे बिम्ब ! और इतने ?!

लेकिन सारे भाव शाब्दिक हो कर रमते गये ..

हाँ यह भी कभी सोचियेगा कि कविता को मोनोटोनस होने से कैसे बचायें

जय-जय 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 7, 2013 at 1:44am

सुंदर शब्दों से आज की परिस्थितियों का सजीव चित्रण करती रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीय संदीप जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 6, 2013 at 2:09pm

आदरणीय संदीप भाई साहब बहुत ही शानदार रचना है वर्तमान परिस्थिति का खूबसूरत बिम्ब खींचा है आपने बहुत बहुत बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . रोटी

दोहा पंचक. . . रोटीसूझ-बूझ ईमान सब, कहने की है बात । क्षुधित उदर के सामने , फीके सब जज्बात ।।मुफलिस…See More
1 hour ago
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा पंचक - राम नाम
"वाह  आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत ही सुन्दर और सार्थक दोहों का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
yesterday
दिनेश कुमार posted a blog post

प्रेम की मैं परिभाषा क्या दूँ... दिनेश कुमार ( गीत )

प्रेम की मैं परिभाषा क्या दूँ... दिनेश कुमार( सुधार और इस्लाह की गुज़ारिश के साथ, सुधिजनों के…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

दोहा पंचक - राम नाम

तनमन कुन्दन कर रही, राम नाम की आँच।बिना राम  के  नाम  के,  कुन्दन-हीरा  काँच।१।*तपते दुख की  धूप …See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"अगले आयोजन के लिए भी इसी छंद को सोचा गया है।  शुभातिशुभ"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका छांदसिक प्रयास मुग्धकारी होता है। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह, पद प्रवाहमान हो गये।  जय-जय"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी, आपकी संशोधित रचना भी तुकांतता के लिहाज से आपका ध्यानाकर्षण चाहता है, जिसे लेकर…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई, पदों की संख्या को लेकर आप द्वारा अगाह किया जाना उचित है। लिखना मैं भी चाह रहा था,…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए है।हार्दिक बधाई। भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ । "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service