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आज खबरों में जहाँ जाती नज़र है।
रक्त में डूबी हुई, होती खबर है।
फिर रहा है दिन उजाले को छिपाकर,
रात पूनम पर अमावस की मुहर है।
ढूँढते हैं दीप लेकर लोग उसको,
भोर का तारा छिपा जाने किधर है।
डर रहे हैं रास्ते मंज़िल दिखाते,
मंज़िलों पर खौफ का दिखता कहर है।
खो चुके हैं नद-नदी रफ्तार अपनी,
साहिलों की ओट छिपती हर लहर है।
हसरतों के फूल चुनता मन का माली,
नफरतों के शूल बुनती सेज पर है।
आज मेरा देश क्यों भयभीत इतना,
हर गली सुनसान, सहमा हर शहर है।
मौलिक व अप्रकाशित
कल्पना रामानी
Comment
आदरणीया मीना जी, कुंती जी, प्राची जी, सविता जी,आदरणीय अरुण शर्मा जी , अजय जी गिरिराज जी,गोपाल जी, अभनव अरुण जी,
आप सबकी प्रोत्साहित करती हुई टिप्पणियों के लिए हृदय से आभारी हूँ।
सादर
आज मेरा देश क्यों भयभीत इतना,
हर गली सुनसान, सहमा हर शहर है।..आदरणीया कल्पना जी यह एक शेर ..अप्रतिम ..सम्पूर्ण है... हालात को आईना दिखाती ग़ज़ल ..विमर्श को आत्मचिंतन को प्रेरित करती इस ग़ज़ल लिए हार्दिक साधुवाद उत्तम प्रस्तुति !!!
महनीया
फिर रहा है दिन ----------
क्या बात है ?
बेमिसाल i बेमिसाल i
आदरणीया कल्पना जी , बहुत सुन्दर गज़ल कही है , हर शे र अच्छे हुये हैं , आपको हार्दिक बधाई !!!!
bahut hi acchhi gazal huyi hai .......
खो चुके हैं नद-नदी रफ्तार अपनी,
साहिलों की ओट छिपती हर लहर है।
kya baat hai
बहुत खुबसूरत ...
आज मेरा देश क्यों भयभीत इतना,
हर गली सुनसान, सहमा हर शहर है
आदरणीया कल्पना रमानी जी बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही है आपने सभी शेर अच्छे बन पड़े हैं बहुत बहुत बधाई आपको.
आदरणीया कल्पना रामानी जी
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है..
ये दो शेर ख़ास तौर पर पसंद आये
फिर रहा है दिन उजाले को छिपाकर,
रात पूनम पर अमावस की मुहर है।
ढूँढते हैं दीप लेकर लोग उसको,
भोर का तारा छिपा जाने किधर है।
बहुत बहुत बधाई
हसरतों के फूल चुनता मन का माली,
नफरतों के शूल बुनती सेज पर है। .............लाजवाब.कल्पना जी.शुभकामनाएँ
बहुत सुन्दर गज़ल आ० कल्पना दी | सादर बधाई स्वीकारें
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