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ग़ज़ल : अरुन शर्मा 'अनन्त'

बहरे रमल मुसमन महजूफ
2122 2122 2122 212

फूल जो मैं बन गया निश्चित सताया जाऊँगा,
राह का काँटा हुआ तब भी हटाया जाऊँगा,

इम्तिहान-ऐ-इश्क ने अब तोड़ डाला है मुझे,
आह यूँ ही कब तलक मैं आजमाया जाऊँगा,

लाख कोशिश कर मुझे दिल से मिटाने की मगर,
मैं सदा दिल के तेरे भीतर ही पाया जाऊँगा,

एक मैं इंसान सीधा और उसपे मुफलिसी,
काठ की पुतली बनाकर मैं नचाया जाऊँगा,

जख्म भीतर जिस्म में अँगडाइयाँ लेने लगे,
मैं बली फिर से किसी भी क्षण चढाया जाऊँगा,

जब जरुरत पर कोई भी काम आएगा नहीं,
मैं भले खोटा ही सिक्का हूँ चलाया जाऊँगा...

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 18, 2013 at 11:44pm

डूब कर कहा है आपने भाई.
दिल से बधाई लीजिये. लगता है कि आपकी ज़िन्दग़ी में अब ग़ज़ल के लिए वातावरण बनने लगा है.
जय हो...  :-)))))
शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 10, 2013 at 7:57pm

आत्म विवशता...की ज़मीन पर जिस तरह यह ग़ज़ल प्रस्तुत हुई है, सब अशआर अपना अपना असर छोड़ने में सक्षम हैं..

मर्मस्पर्शी सुन्दर ग़ज़ल 

हार्दिक बधाई प्रिय अरुण शर्मा जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 10, 2013 at 2:04pm

bahut khoob ... Ghazal ke liye Badhai

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 10, 2013 at 10:19am

फूल जो मैं बन गया निश्चित सताया जाऊँगा,
राह का काँटा हुआ तब भी हटाया जाऊँगा,...........एक तरफ कुआ दूजी तरफ खाई

एक मैं इंसान सीधा और उसपे मुफलिसी,
काठ की पुतली बनाकर मैं नचाया जाऊँगा,............ऐसा भी होता ही है

जब जरुरत पर कोई भी काम आएगा नहीं,
मैं भले खोटा ही सिक्का हूँ चलाया जाऊँगा...........अवसरवादी लोगों के क्या कहने

खुबसूरत गजल, अपने अन्तर की व्यथा का सजीव चित्रण करती हुयी, तहे दिल से दाद कुबुलिये आदरणीय अरुण अनंत जी

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 9, 2013 at 2:50pm

अरुण जी ..किसी दुखी मन की अंतर्व्यथा का कमाल का चित्रण किया है अपने ग़ज़ल के माध्यम से आपने ..बलि शब्द के मामले में मैं भी दुबिधा में हूँ ..शायद बलि  ही सही है ..आपको ढेर सारी बधाई ..सादर 

Comment by Meena Pathak on December 9, 2013 at 2:04pm

क्या बात है ... बहुत सुन्दर गज़ल 

बधाई आप को आदरणीय अरुन जी 

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 9, 2013 at 1:37pm

आदरणीया किरण दी आप आईं बहार आई, आपका स्वागत है सत्य कहा बहन आपने यही यथार्थ है हार्दिक आभार दी.

Comment by Kiran Arya on December 9, 2013 at 1:31pm

एक मैं इंसान सीधा और उसपे मुफलिसी,
काठ की पुतली बनाकर मैं नचाया जाऊँगा,.........अरुन यहीं तो है आज का यथार्थ ........सुंदर

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 9, 2013 at 12:38pm

आदरणीया वंदना जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका जी आपके सुझाव के अनुरूप परिवर्तन की आवश्यकता है, सुझाव हेतु दिल से शुक्रिया कुछ बदलके देखता हूँ.

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 9, 2013 at 12:38pm

तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय हेमंत भाई जी

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