बहरे रमल मुसमन महजूफ
2122 2122 2122 212
फूल जो मैं बन गया निश्चित सताया जाऊँगा,
राह का काँटा हुआ तब भी हटाया जाऊँगा,
इम्तिहान-ऐ-इश्क ने अब तोड़ डाला है मुझे,
आह यूँ ही कब तलक मैं आजमाया जाऊँगा,
लाख कोशिश कर मुझे दिल से मिटाने की मगर,
मैं सदा दिल के तेरे भीतर ही पाया जाऊँगा,
एक मैं इंसान सीधा और उसपे मुफलिसी,
काठ की पुतली बनाकर मैं नचाया जाऊँगा,
जख्म भीतर जिस्म में अँगडाइयाँ लेने लगे,
मैं बली फिर से किसी भी क्षण चढाया जाऊँगा,
जब जरुरत पर कोई भी काम आएगा नहीं,
मैं भले खोटा ही सिक्का हूँ चलाया जाऊँगा...
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
लाख कोशिश कर मुझे दिल से मिटाने की मगर,
मैं सदा दिल के तेरे भीतर ही पाया जाऊँगा,..
वाह बहुत बढियां ...
आदरणीय अरुण अनंत भाई , लाजवाब , खूबसूरत गज़ल कही है , आपको तहे दिल से मुबारक बाद !!!! बधाइयाँ !!!!
फूल जो मैं बन गया निश्चित सताया जाऊँगा,
राह का काँटा हुआ तब भी हटाया जाऊँगा,------------- बहुत खूब ,ढेरों बधाई !!!!
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल पढ़ी है अरुन साहिब ...
इम्तिहान-ऐ-इश्क ने अब तोड़ डाला है मुझे,
आह यूँ ही कब तलक मैं आजमाया जाऊँगा....! भाव उम्दा हैं ! शिज्जू साहब का इशारा भी समझने का प्रयास करेंगे ..!
लाख कोशिश कर मुझे दिल से मिटाने की मगर,
मैं सदा दिल के तेरे भीतर ही पाया जाऊँगा,...........बहुत सुंदर.
लाख कोशिश कर मुझे दिल से मिटाने की मगर,
मैं सदा दिल के तेरे भीतर ही पाया जाऊँगा,
बहुत ही खूबसूरत शेर बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल
बहुत बहुत बधाई आदरणीय अरुण भाई ।
//फूल जो मैं बन गया निश्चित सताया जाऊँगा,
राह का काँटा हुआ तब भी हटाया जाऊँगा, // बेहतरीन मतला हुआ है वाह
//इम्तिहाने-इश्क ने अब तोड़ डाला है मुझे,
आह यूँ ही कब तलक मैं आजमाया जाऊँगा,// क्या खूब कहा भाई अरुण जी आपने दाद कुबूल करें
//जब जरुरत पर कोई भी काम आएगा नहीं,
मैं भले खोटा ही सिक्का हूँ चलाया जाऊँगा.// ग़ज़ब का यकीन है वाह
इस ग़ज़ल के लिये तो बस वाह वाह है
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