For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हॉस्पिटल से आने के बाद दिया ने आज माँ से आईना माँगा | माँ आँखों में आँसू भर कर बोली “ना देख बेटा आईना, देख न सकेगी तू |” पर दिया की जिद के आगे उसकी एक न चली और उसने आईना ला कर धड़कते दिल से दिया के हाथ में थमा दिया और खुद उसके पास बैठ गई | दिया ने भी धड़कते दिल से आईना अपने चेहरे के सामने किया और एक तेज चीख पूरे घर में गूँज गई, माँ की गोद में चेहरा छुपा कर फूट-फूट कर रो पड़ी दिया | माँ ने अपने आँसू पोंछे और उसके सिर पर स्नेह से हाथ फेरते हुए बोली कि “मैंने तो पहले ही तुझसे बोला था कि मत देख आईना पर तू ही नही मानी |” माँ का कलेजा भी फटा जा रहा था अपनी बेटी की ये दशा देख कर |
कितनी खुश थी उस दिन दिया जब वो कोलेज की सबसे सुन्दर लड़की चुनी गई थी | तभी महेश से उसकी दोस्ती हुई | सब कुछ अच्छा चल रहा था बीएसी फाइनल में जब उसकी शादी तय हुई तब उसने ये खुशखबरी महेश को दी, वो एकदम आगबबूला हो गया “ये कैसे हो सकता है, प्यार मुझसे और शादी किसी और से ?” ये सुन कर दिया आवाक रह गई | दिया ने उसे बहुत समझाया कि वो दोनों एक अच्छे दोस्त के सिवा कुछ भी नही पर महेश अपनी जिद पर अड़ा रहा | उसने दिया को घमकी दी कि वो उसकी शादी किसी और से नही होने देगा | दिया ने उसकी बातों को कोई महत्व नही दिया और उससे मिलना-जुलना, बात करना सब बंद कर दिया | ठीक सगाई से एक दिन पहले जब वो पार्लर जा रही थी, उसके सामने से एक बाइक निकली और दिया के मुंह से हृदयविदारक चीख निकल गई थी |

मौलिक/अप्रकाशित 

मीना पाठक 

Views: 855

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Meena Pathak on December 19, 2013 at 12:14pm

आदरणीय सौरभ सर
सादर प्रणाम 
रचना पर आप की उपस्थिति और शुभ शुभ का आशीर्वाद मेरे लिए बहुत मायने रखता है | आगे भी मेरी रचनाओं को आप का स्नेहाशीष मिलता रहे इसी उम्मीद के साथ आप का तहेदिल से आभार | सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 19, 2013 at 1:08am

सामाजिक रूप से या व्यावहारिक रूप से क्या उचित है और क्या अनुचित है लघुकथा स्वयं न कह कर निर्णय का काम पाठकों पर छोड़ देती है. यही किसी कथ्य की सफलता भी है जो रचना के माध्यम से पाठकों से संवाद प्रारम्भ कर बीच से स्वयं का लोप कर दे.
आपकी लघुकथा के कथ्य की अनुभूति को गहराई से महसूस किया जाना यही बताता है कि कथा अपने उद्येश्य में सफल है.
शुभ-शुभ

Comment by Meena Pathak on December 13, 2013 at 5:51pm

पता नही प्रेम का ये कैसा रूप है, यही तो मुझे भी समझ नही आता, क्या कहूँ .....

उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार स्वीकारें आदरणीया प्राची जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 13, 2013 at 8:46am

उफ़ ये कैसा विकृत स्वरुप है प्रेम का....

हृदयविदारक !

ऐसे दिल दहला देने वाले वाकिये को सफलता से लघुकथा में प्रस्तुत किया है आ० मीना पाठक जी.

शुभकामनाएँ 

Comment by Meena Pathak on December 12, 2013 at 2:41pm

आदरणीय विजय मिश्र जी बिल्कुल सही कह रहे हैं आप | इन्हें तो कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए |
बहुत बहुत आभार | सादर 

Comment by Meena Pathak on December 12, 2013 at 2:36pm

परम आदरणीय विजय जी रचना पर टिप्पणी रूप में आशीर्वाद के लिए हार्दिक आभार, आशा करती हूँ कि आगे भी यूँ ही आप का स्नेह मिलता रहेगा | सादर  

Comment by Meena Pathak on December 12, 2013 at 2:33pm

आदरणीय शुभ्रांशु जी मैंने एक छोटा सा प्रयास किया है पीड़िता के दर्द को बयान करने का पर  उसकी पीड़ा को शब्दों में बयान करना नामुमकिन है, मेरे पास भी शब्द नही है | आप ने जो लिंक दिया है मै उस पर वो न्यूज नही देख पा रही हूँ | रचना को सराहने हेतु सादर आभार स्वीकारें 

Comment by विजय मिश्र on December 11, 2013 at 5:09pm
सहनशीलता का अभ्यास ही गौण हो गया है , समर्पण और त्याग अप्रासंगिक हो गया है और आजकी दौर में ये मुआँ प्यार , इसकी तो आजके छौकड़ों ने पलीद निकाल दियी है|तहस-नहस करके रख दिया है | कभी मुँह जला देते हैं तो कभी गर्दन ही उतार देते हैं|आज सभी हिंस्र होते जा रहे हैं | साधुवाद मीनाजी |
Comment by vijay nikore on December 11, 2013 at 7:36am

सामयिक विषय पर इस अच्छी लघुकथा के लिए बधाई, आदरणीया मीना जी।

Comment by Shubhranshu Pandey on December 10, 2013 at 8:13pm

आदरणीय मीना जी, मैने जैसा कहा कि इस तरह का समाचार मैने पढा़ है 

http://www.bhaskar.com/article-hf/PUN-LUD-bride-injured-from-acid-a...   

ये है उस समाचार का लिंक...  आपने उस महिला के मनोभावों को शब्द दे कर मन द्रवित कर दिया है...

सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted discussions
13 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
13 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
yesterday
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service