रात का दूसरा पहर
दूर तक पसरा सन्नाटा और
गहरा कोहरा
टिमटिमाती स्ट्रीटलाइट
जो कोहरे के दम से
अपना दम खो चुकी है लगभग
कितनी सर्द लेहर लगती है
जैसे कोहरे की प्रेमिका
ठंडी हवा बन गीत गाती हो
झूम जाती हो
कभी कभी हल्के से
कोहरे को अपनी बाहों में ले
आगे बढ़ जाया करती
पर कोहरा नकचढ़ा बन वापस
अपनी जगह आ बैठता
ज़िद्दी कोहरा प्रेम से परे
बस अपने काम का मारा
सर्द रात में खुद का साम्राज्य
जमाये है हर तरफ
गली, दुकान, बड़े और
छोटे मकान, पेड़, पौधे
और सड़कों कि स्ट्रीटलाइट
पर जमा बैठा है
सारे लोगों को ठिठुरा कर
घर भेज दिया...
सोचती हूँ
क़ाश ये कोहरे जैसा भी कुछ
मन में भी होता जो
मन की सड़को से
चिन्ताओं को ठिठुरा कर
वापस समय में विलीन कर देता
और मन को खुद से ढक कर
एक सुकून भरी रात तो देता मुझे
काश!!!.......
(मौलिक एव अप्रकाशित)
प्रियंका.......
Comment
आदरणीय डॉ आशुतोष जी आपकी सराहना से मेरा लिखने प्रयास सफल हुआ.……अपने मेरी रचना को अपने विचार दे कर पूर्ण कर दिया, बहुत बहुत आभार आपका ……
सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय राहुल देव जी ........
रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय अरुण जी।
अभी आपकी कविता पुन: पढ़ी।
सार्थक चित्रात्मक बिम्बों से भरपूर आपकी रचना बहुत ही लुभावनी बन पड़ी है। आपको हार्दिक बधाई, आदरणीया प्रियंका जी।
सादर,
विजय
बहुत ही सुन्दर भाव .. कोहरे और सर्दी के बहाने आपने अपनी दिल की बात कविता के माध्यम से सुन्दरता से प्रकट किया .. बहुत बधाई ..
सुंदर भावाभिव्यक्ति आ. प्रियंका जी हार्दिक बधाई
बहुत सुन्दर भाव पिरोये हैं आपने जय हो
क़ाश ये कोहरे जैसा भी कुछ
मन में भी होता जो
मन की सड़को से
चिन्ताओं को ठिठुरा कर
वापस समय में विलीन कर देता
और मन को खुद से ढक कर
एक सुकून भरी रात तो देता मुझे
काश!!!.......
अंतर की सुंदर कल्पनाओं को बहुत खूबसूरती से चित्रित किया है, बधाई स्वीकारें आदरणीया प्रियंका जी
//क़ाश ये कोहरे जैसा भी कुछ
मन में भी होता जो
मन की सड़को से
चिन्ताओं को ठिठुरा कर
वापस समय में विलीन कर देता//
कोहरे के माध्यम कल्पना को ऊँची उड़ान दी है आपने। बधाई आदरणीया प्रियंका जी।
सादर,
विजय निकोर
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