उन्हें विरासत में मिली है सीख
कि देश एक नक्शा है कागज़ का
चार फोल्ड कर लो
तो रुमाल बन कर जेब में आ जाये
देश का सारा खजाना
उनके बटुवे में है
तभी तो कितनी फूली दीखती उनकी जेब
इसीलिए वे करते घोषणाएं
कि हमने तुम पर
उन लोगों के ज़रिये
खूब लुटाये पैसे
मुठ्ठियाँ भर-भर के
विडम्बना ये कि अविवेकी हम
पहचान नही पाए असली दाता को
उन्हें नाज़ है कि
त्याग और बलिदान का
सर्वाधिकार उनके पास सुरक्षित है
इसीलिए वे चाहते हैं
कि उनकी महत्वाकांक्षाओं के लिए
हम भी हँसते-हँसते बलिदान हो जाएँ
और उनके ऐशो-आराम के लिए
त्याग दें स्वप्न देखना...
त्याग दें प्रश्न करना...
त्याग दें उम्मीद रखना.....
क्योंकि उन्हें विरासत में मिली सीख
कि टेढ़ी-मेढ़ी रेखाओं से
कागज़ पर अंकित
देश एक नक्शा मात्र है....
(मौलिक अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय अनवर सुहैलजी, दिल से बधाई स्वीकारे इस कविता के होने लिए.
मात्र शीर्षक पढ़ कर मेरे जैसा कोई पाठक, अवश्य है, कि पूरी कविता के प्रति अन्यमनस्क हो सकता है. कारण, शीर्षक में कविश्रेष्ठ सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की एक अमर कविता से लिया गया जीवन-रक्त है.
लेकिन जैसे ही कविता आगे बढ़ती है, न केवल अपनी सत्ता बनाती चलती है, आखिर तक आते-आते पाठक की सोच को झकझोर डालती है.
इस सशक्त कविता के होने पर बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें, आदरणीय.
सादर
क्योंकि उन्हें विरासत में मिली सीख
कि टेढ़ी-मेढ़ी रेखाओं से
कागज़ पर अंकित
देश एक नक्शा मात्र है....
क्या बात है सर ..जोरदार और धारदार भी ...ढेरो बधाई आपको ...
अच्छी रचना है जनाब अनवर सुहैल साहब बधाई आपको
सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई .आ० अनवर जी ।
जोरदार तमाचा है देश का बपौती समझने वालों के मुंह पर साथ ही सर्वसाधारण को झकझोरती भी है !
//देश एक नक्शा है कागज़ का// ..... कहीं गहरे तक धसती पंक्ति ! साधुवाद !
क्योंकि उन्हें विरासत में मिली सीख
कि टेढ़ी-मेढ़ी रेखाओं से
कागज़ पर अंकित
देश एक नक्शा मात्र है....
सत्य.....सत्य और सिर्फ सत्य ...शायद यही वजूद रह गया है आज देश का ...उन्हें विरासत में मिली है सीख
कि देश एक नक्शा है कागज़ का
चार फोल्ड कर लो
तो रुमाल बन कर जेब में आ जाये...........अद्भुत रचना ....सर बधाई
आदरणीय , सुन्दर रचना के लिये बधाई !!!!!
मित्र सुहैलं जी
बहुत सुन्दर रचना i
त्याग दे स्वप्न देखना/ प्रश्न करना /उम्मीद रखना ----
मेरी बधाइयाँ i
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