For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

खुश हो जाते हैं वे

खुश हो जाते हैं वे
पाकर इत्ती सी खिचड़ी
तीन-चार घंटे भले ही
इसके लिए खडा रहना पड़े पंक्तिबद्ध ...

खुश हो जाते हैं वे
पाकर एक कमीज़ नई
जिसे पहनने का मौका उन्हें
मिलता कभी-कभी ही है

खुश हो जाते हैं वे
पाकर प्लास्टिक की चप्पलें
जिसे कीचड या नाला पार करते समय
बड़े जतन से उतारकर रखते बाजू में दबा...

ऐसे ही
एक बण्डल बीडी
खैनी-चून की पुडिया
या कि साहेब की इत्ती सी शाबाशी पाकर
फूले नही समाते वे...

इस उत्तर-आधुनिक समय में
ऐसे लोग अब भी
पाए जाते हैं हमारे आस-पास
और हम
अपनी सुविधाओं में कटौती से
हैं कितने उदास..........
-----------अ न व र सु है ल ----------

(मौलिक अप्रकाशित)

Views: 482

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 9, 2014 at 2:10pm

उन्नति या प्रगति या विकास के लंगड़ेपन को अब और कैसे अभिव्यक्त किया जाय !

वो परिवार इतना गरीब है कि उसके किचेन में एक अदद फ्रिज तक नहीं है,  जैसे वाक्य अब अपने देश में भी कौतुक का विषय नहीं रह गये हैं. जबकि ज़मीनी सच्चाई ऐसी है कि रग़ों में पारा बहता महसूस होता है..

सादर आदरणीय.

Comment by MAHIMA SHREE on January 7, 2014 at 7:53pm

ऐसे लोग अब भी
पाए जाते हैं हमारे आस-पास
और हम
अपनी सुविधाओं में कटौती से
हैं कितने उदास............................. कटु सत्य आदरणीय ... अनेकों बधाईयाँ.. इस रचना की भाव भूमि को नमन सादर

Comment by Meena Pathak on January 7, 2014 at 1:56pm

और हम 
अपनी सुविधाओं में कटौती से 
हैं कितने उदास..........

सच्चाई बयान करती रचना ..... बहुत बहुत बधाई 

Comment by ajay sharma on January 6, 2014 at 10:50pm

...................इत्ती सी खिचड़ी 
..................................पाकर प्लास्टिक की चप्पलें 

जिसे कीचड या नाला पार करते समय 
बड़े जतन से उतारकर रखते बाजू में दबा...

ऐसे ही ...................एक बण्डल बीडी 
खैनी-चून की पुडिया 
या कि साहेब की इत्ती सी शाबाशी पाकर 
फूले नही समाते वे...

................................हम 
अपनी सुविधाओं में कटौती से 
हैं कितने उदास..........wah wah mahodaya ...............behad khoobsoorati se itne sanzeeda ashaar pesh kiye .......daad qubool farmaye .....

 

Comment by Saarthi Baidyanath on January 5, 2014 at 11:11pm

अद्भुत व वन्दनीय रचना ..मुझे बेहद भायी ..मुबारकबाद व साथ ही साथ नमन आपको 

Comment by annapurna bajpai on January 5, 2014 at 4:37pm

सच्चाई बयान करती रचना , बधाई आ0 अनवर सुहैल जी ।

Comment by coontee mukerji on January 5, 2014 at 3:53pm


एक बण्डल बीडी
खैनी-चून की पुडिया
या कि साहेब की इत्ती सी शाबाशी पाकर
फूले नही समाते वे... इस उत्तर-आधुनिक समय में
ऐसे लोग अब भी
पाए जाते हैं हमारे आस-पास
और हम
अपनी सुविधाओं में कटौती से
हैं कितने उदास..........बहुत अच्छी बात कही है सुहैल भाई. बधाई.

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on January 5, 2014 at 12:57pm

भारत की सही सच्ची तस्वीर प्रस्तुत करने के लिए बधाई सुहैल भाई ॥

Comment by नादिर ख़ान on January 4, 2014 at 10:53pm

ऐसे लोग अब भी 
पाए जाते हैं हमारे आस-पास 
और हम 
अपनी सुविधाओं में कटौती से 
हैं कितने उदास..........

जनाब अनवर सुहैल जी, निशब्द कर दिया अपने ....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . .तकदीर
"आदरणीय अच्छे सार्थक दोहे हुए हैं , हार्दिक बधाई  आख़िरी दोहे की मात्रा फिर से गिन लीजिये …"
14 hours ago
सालिक गणवीर shared Admin's page on Facebook
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी's blog post was featured

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . .तकदीर

दोहा सप्तक. . . . . तकदीर   होती है हर हाथ में, किस्मत भरी लकीर । उसकी रहमत के बिना, कब बदले तकदीर…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ छियासठवाँ आयोजन है।.…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय  चेतन प्रकाश भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय बड़े भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आभार आपका  आदरणीय  सुशील भाई "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service