खुश हो जाते हैं वे
पाकर इत्ती सी खिचड़ी
तीन-चार घंटे भले ही
इसके लिए खडा रहना पड़े पंक्तिबद्ध ...
खुश हो जाते हैं वे
पाकर एक कमीज़ नई
जिसे पहनने का मौका उन्हें
मिलता कभी-कभी ही है
खुश हो जाते हैं वे
पाकर प्लास्टिक की चप्पलें
जिसे कीचड या नाला पार करते समय
बड़े जतन से उतारकर रखते बाजू में दबा...
ऐसे ही
एक बण्डल बीडी
खैनी-चून की पुडिया
या कि साहेब की इत्ती सी शाबाशी पाकर
फूले नही समाते वे...
इस उत्तर-आधुनिक समय में
ऐसे लोग अब भी
पाए जाते हैं हमारे आस-पास
और हम
अपनी सुविधाओं में कटौती से
हैं कितने उदास..........
-----------अ न व र सु है ल ----------
(मौलिक अप्रकाशित)
Comment
उन्नति या प्रगति या विकास के लंगड़ेपन को अब और कैसे अभिव्यक्त किया जाय !
वो परिवार इतना गरीब है कि उसके किचेन में एक अदद फ्रिज तक नहीं है, जैसे वाक्य अब अपने देश में भी कौतुक का विषय नहीं रह गये हैं. जबकि ज़मीनी सच्चाई ऐसी है कि रग़ों में पारा बहता महसूस होता है..
सादर आदरणीय.
ऐसे लोग अब भी
पाए जाते हैं हमारे आस-पास
और हम
अपनी सुविधाओं में कटौती से
हैं कितने उदास............................. कटु सत्य आदरणीय ... अनेकों बधाईयाँ.. इस रचना की भाव भूमि को नमन सादर
और हम
अपनी सुविधाओं में कटौती से
हैं कितने उदास..........
सच्चाई बयान करती रचना ..... बहुत बहुत बधाई
...................इत्ती सी खिचड़ी
..................................पाकर प्लास्टिक की चप्पलें
जिसे कीचड या नाला पार करते समय
बड़े जतन से उतारकर रखते बाजू में दबा...
ऐसे ही ...................एक बण्डल बीडी
खैनी-चून की पुडिया
या कि साहेब की इत्ती सी शाबाशी पाकर
फूले नही समाते वे...
................................हम
अपनी सुविधाओं में कटौती से
हैं कितने उदास..........wah wah mahodaya ...............behad khoobsoorati se itne sanzeeda ashaar pesh kiye .......daad qubool farmaye .....
अद्भुत व वन्दनीय रचना ..मुझे बेहद भायी ..मुबारकबाद व साथ ही साथ नमन आपको
सच्चाई बयान करती रचना , बधाई आ0 अनवर सुहैल जी ।
एक बण्डल बीडी
खैनी-चून की पुडिया
या कि साहेब की इत्ती सी शाबाशी पाकर
फूले नही समाते वे... इस उत्तर-आधुनिक समय में
ऐसे लोग अब भी
पाए जाते हैं हमारे आस-पास
और हम
अपनी सुविधाओं में कटौती से
हैं कितने उदास..........बहुत अच्छी बात कही है सुहैल भाई. बधाई.
भारत की सही सच्ची तस्वीर प्रस्तुत करने के लिए बधाई सुहैल भाई ॥
ऐसे लोग अब भी
पाए जाते हैं हमारे आस-पास
और हम
अपनी सुविधाओं में कटौती से
हैं कितने उदास..........
जनाब अनवर सुहैल जी, निशब्द कर दिया अपने ....
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