बहर-।ऽऽऽ ।ऽऽऽ ।ऽऽऽ ।ऽऽऽ
...
लिपट के आबशारों से तराने खो गए होंगे।
उतर के देवदारों से उजाले सो गए होंगे॥
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जिन्हें मालूम है दुनिया मुहब्बत की इमारत है,
ग़ुज़र के मैकदे से भी वही घर को गए होंगे।
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न परियों का फ़साना था न किस्से देवताओं के,
कहानी कौन सी सुन के सलोने सो गए होंगे।
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उन्हीं की नींद उजड़ी है,उन्हीं के ख्वाब बिखरे हैं,
किसी की आँख के तारे चुराने जो गए होंगे।
...
ज़रा सी चाँदनी छू लें,सितारों की दमक देखें,
यही कहते,यही सुनते ज़माने हो गए होंगे।
...
-मौलिक व अप्रकाशित।
-15.12.2013
Comment
भाई रवि प्रकाशजी, दिल खुश कर दिया आपने ! मतला और आगे हर शेर दिल से वाह वाह ले रहा है.
सही है, ग़ज़लों में अश’आर की संख्या नहीं उनकी तासीर असर करती है.
बार-बार बधाई.. .
उन्हीं की नींद उजड़ी है,उन्हीं के ख्वाब बिखरे हैं,
किसी की आँख के तारे चुराने जो गए होंगे। ...... बहुत खूब भाव की प्रस्तुति हुयी है!
बढि़या गज़ल कही है आपने, सादर
वाहहहह शानदार गज़ल हुयी है भाई जी
वाहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहह
अच्छी ग़ज़ल है ... सभी शेर पसंद आये
मतला खूब हुआ है
दूसरे शेर में वही को वो सब करके देखिये शायद और पसंद आये
आख़िरी शेर स्पष्ट नहीं हो पा रहा है
उन्हीं की नींद उजड़ी है,उन्हीं के ख्वाब बिखरे हैं,
किसी की आँख के तारे चुराने जो गए होंगे।////////////वाह वाह बहुत खूब
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल भाई जी हार्दिक बधाई आपको। ......... सादर
आदरणीय रविप्रकाशजी बेहतरीन ग़ज़ल है दाद कुबूल करें
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