समय के ,
सूर्य के ताप से
सूखता हुआ मल,
स्वयम ही,
स्वाभाविक रूप से ,
हो जायेगा
दुर्गन्ध हीन |
और फिर
वातावरण स्वयम ही
हो जायेगा ,
शुद्ध ,परिशुद्ध
निर्मल |
बस ,
आप कुरेदिये नही
बारम्बार
सूखते हुये मल को |
शायद अहं, मल का भी हो
या अहं, मल ही होता हो ||
*******************
मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय श्याम भाई , रचना की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ
आ० भण्डारी जी सुंदर भावो से अहं का प्रस्तुतिकरण किया है , बधाई आपको ।
शायद अहं, मल का भी हो
या अहं, मल ही होता हो ||
प्रक्रति का सूक्ष्म निरीक्षण ...sahi me
अहं का नाश शायद समय ही कर सकता है, आपके सार्थक तर्कशक्ति को नमन आदरणीय गिरिराज जी
मित्रानुज
एक सामान्य सी बात को आपने कितना महनीय बना दिया i यही वास्तविक प्रतिभा है i प्रक्रति का सूक्ष्म निरीक्षण और फिर उसका अपने ढंग से प्रस्तुतीकरण i मै आपकी ल्र्खनी को प्रणाम करता हूँ , मित्र i
वाह...! संदेशात्मक चिंतन..... अच्छी रचना...
आ गिरिराज भाई जी सादर बधाई स्वीकारें...
आदरणीय गिरिराज जी आप जिस विधा में भी रचना रच दें, लाजवाब रचना होती है | बहुत बहुत बधाई | नमन आप को
भावनाओं से ओतप्रोत रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें.... |
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