प्रेम तृणों से …….
पलक पंखुड़ी में प्रणय अंजन से
सुरभित संसृति का श्रृंगार करो
भ्रमर गुंजन के मधुर काल में
कुंतल पुष्प श्रृंगार करो
तृप्त करो तुम नयन तृषा को
मिलन क्षणों को स्वीकार करो
अपने उर में अपने प्रिय की
अनुपम सुधि से श्रृंगार करो
विस्मृत कर प्रतिकार सभी तुम
श्वासों में प्रेम श्रृंगार करो
चिर सुख के प्यासे अधरों पर
तृप्ति वृष्टि का संचार करो
अभिलाषाओं की बस्ती में तुम
प्रेम तृणों से श्रृंगार करो,
प्रेम तृणों से श्रृंगार करो ……..
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
बेहद सुंदर रचना हेतु बहुत बधाई स्वीकारें आ0 सुशील शर्मा जी ।
aa.Arun Sharma Anant jee aapkee snehil pratikriya ka haardik aabhaar
भ्रमर गुंजन के मधुर काल में
कुंतल पुष्प श्रृंगार करो ...अहा ! क्या कहने , बहुत ही मधुर रचना ! सादर :)
आदरणीय सुशील सर बेहद सुन्दर रचना हार्दिक बधाई स्वीकारें
aadrneeya Meena Pathak jee rachna par aapkee snehil prashansa ka haardik aabhaar
aa.Avinash S Bagde jee rachna par aapkee snehil pratikriya ka haardik aabhaar
aa.Dr.Gopal Narain Shrivastav jee rachna par aapkee snehaasheesh ka haardik aabhaar
aadrneey Giriraj Bhandaaree jee rachna par aapkee aatmeey pratikriya ka haardik aabhaar
सुन्दर रचना हेतु सादर बधाई
चिर सुख के प्यासे अधरों पर
तृप्ति वृष्टि का संचार करो
सुन्दर श्रृंगार रचना सुशील भाई
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