For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

स्कूटर पर जाती महिला

स्कूटर पर जाती महिला

का सड़क से गुज़रना  हो

या  गुज़रना हो

काँटों भरी संकड़ी गली से ,

दोनों ही बातें

एक जैसी ही तो है।

लालबत्ती पर रुके स्कूटर पर

बैठी महिला के

स्कूटर के ब्रांड को नहीं देखता

कोई भी ...

देखा जाता है तो

महिला का फिगर

ऊपर से नीचे तक

और बरसा  दिए जाते हैं फिर

अश्लील नज़रों के जहरीले कांटे ..

काँटों की  गली से गुजरना

इतना मुश्किल नहीं है

जितना मुश्किल है

स्कूटर से गुजरना ...

कांटे  केवल देह को ही छीलते है

मगर

हृदय तक बिंध जाते है

अश्लील नज़रों के जहरीले कांटे ...

"मौलिक व अप्रकाशित" 

Views: 662

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 27, 2013 at 4:53pm

आ० उपासना जी 

पुरुष की गंदी नज़र से नारी कितनी बार बिंध जाती है... एक आम सड़क भी कंटीला रास्ता ही प्रतीत होती है...

एक स्त्री को हर राह पर इन काँटों का सामना करते हुए, इनसे जूझते हुए ही क्यों गुज़रना होता है... नारी को मात्र एक देह समझने वाली गंदी कुंद मानसिकता से कितनी गहराई तक घायल हो जाती है एक नारी (किसी भी आयु वर्ग की नारी)..इस पीड़ा को शब्द देती अभिव्यक्ति के लिए सादर बधाई..

टंकण त्रुटियों में सुधार कर लें.. सार्थक कथ्य को सशक्त प्रस्तुतिकरण के लिए थोडा सा और साधे जाने की आवश्यता महसूस हो रही है, और अंतर गेयता व प्रवाह पर भी ध्यान अपेक्षित हैं.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 26, 2013 at 11:50pm

आदरणीया उपासनाजी, आपकी इस कविता पर अब आ पा रहा हूँ इसके लिए खेद है.
कविता की भावदशा यथार्थ की पथरीली ज़मीन पर नंगे पैरों दौड़ती हुई साफ़ महसूस हुई. ’नारी मात्र देह नहीं है..’ यह मसल अब तो खीझ पैदा करती है. हकीकत यही है कि व्यावहारिक दुनिया में अपने दैनिक जीवन को साधने के लिए लड़ती-भिड़ती हुई एक महिला ही जानती है कि एक नारी के तौर पर वह कितनी देह और कितनी विचार है. लेकिन क्यों ? इस क्यों का उत्तर कोई मर्द जानना नहीं चाहता.

अब शिल्प पर -
शाब्दिक हो चली इस कविता को आप काश अनावश्यक वाचालता से बचा पायी होतीं. यह अवश्य है कि मर्म तक को झकझोर देने वाले भाव जब कभी शब्दबद्ध होने का मौका पाते हैं तो मुखर हो उठते हैं.

लेकिन यहीं एक वक्ता और एक कवि का अंतर साफ़ होता है. आप कविता करती हुई कवयित्री हैं. इसे सुधी पाठक ही नहीं आप भी याद रखें.
सादर

Comment by coontee mukerji on December 24, 2013 at 10:51pm

कांटे  केवल देह को ही छीलते है

मगर

हृदय तक बिंध जाते है

अश्लील नज़रों के जहरीले कांटे .....एकदम सच है.

Comment by upasna siag on December 24, 2013 at 10:19pm

हार्दिक धन्यवाद। सभी मित्र गणो का और
नीरज जी , मैं आपके कथन से पूर्ण रूप से सहमत हूँ कि नए लिखने वाले को वाह-वाही की जगह समीक्षा और मार्ग दर्शन मिलना चाहिए। आभार।

Comment by बृजेश नीरज on December 24, 2013 at 10:03pm

अच्छा प्रयास है! आपको हार्दिक बधाई!

पंक्तियों को जिस प्रकार तोडा गया है उस पर पुनर्विचार की जरूरत है! कहन की गहनता पर काम करने की जरूरत है!

संकड़ी?

 

इस कविता से इतर एक बात-

जिस तरह से अब वाह-वाहियों का दौर चल निकला है, खासकर पुराने और वरिष्ठ सदस्यों द्वारा वह यह इशारा जरूर करता है कि अब इस मंच पर कविता के कहन पर एक सार्थक चर्चा की आवश्यकता है!

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 24, 2013 at 9:12am

आज की एक कडवी सच्चाई को बयां करती रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीया उपासना जी

Comment by savitamishra on December 23, 2013 at 4:47pm

यर्थाथ ...सुन्दर

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 23, 2013 at 1:54pm

उफ्फ यथार्थ लिखा है आपने आदरणीया यही है आज की कडवी सच्चाई.

Comment by Meena Pathak on December 23, 2013 at 12:31pm

कांटे  केवल देह को ही छीलते है

मगर

हृदय तक बिंध जाते है

अश्लील नज़रों के जहरीले कांटे .....//////  आदरणीया उपासना जी आप ने अपनी रचना के माध्याम से समाज की बिमार मानसिकता को बखूबी उजागर किया है , सादर बधाई आप को  

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 22, 2013 at 7:27pm

महनीय

समाज का एक पक्ष यह भी  है i

इस  अहसास की एक उम्र  होती है i 

अभी कुछ अच्छे अहसास भी होंगे i  मात्र एक अहसास ही जीवन नहीं है i

आपने अपने अहसास को शब्दों का सुन्दर जमा पहनाया है  i  बधाई हो i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service