स्कूल के कुछ दोस्त मिलकर घर में पड़े पुराने कम्बल गरीबों में बाँटने को निकले। कम्बल बाँट कर वे ज्यों ही वापस चलने को हुए, एक बुजुर्ग ने आवाज़ लगाई ………
"जी बाबा, आपको तो कम्बल दे दिया न ?"
"बबुआ जी, पिछले तीन दिन से चमचमाती गाड़ियों में साहब लोग आते हैं, कम्बल बाँट कर फ़ोटो खिचवाते हैं और फिर २०-२० रूपया देकर कम्बल वापस ……… "
(मौलिक व अप्रकाशित)
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Comment
आज के तथाकथिक दिखावे की मदद करने वालों के कृत्य करारा प्रहार करती लघुकथा आ। श्री बागी जी , साधुवाद , और शुभकामनायें !!
हकीकत को कलमबंद करने का बेहद सुन्दर प्रयास हुआ है भाई गणेश बागी जी. रचना विषय के साथ साथ शीर्षक के साथ भी पूरा न्याय कर रही है. मेरी दिली बधाई प्रेषित है.
ओह !!
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर कटाक्ष करती लघुकथा हेतु | सादर
बहुत जबरदस्त कटाक्ष असंवेदन शीलता की सारी हदें पार कर दी इन चमचमाती एक शब्द और जोड़ दूँ (रेड बत्ती वाली)कार वालों ने,ये कैसी समाज सेवा है बहुत-बहुत बधाई इस शानदार लघु कथा के लिए.
बहुत बढ़िया लघुकथा आदरणीय, हार्दिक बधाई स्वीकारें.... |
आह ----- आह----- आह-----
आदरणीय बागी जी i लगता है ' लघु कथा ' आपकी और आदरणीय प्रभाकर जी की USP है i तभी तो हमेशा एक सशक्त , मर्मस्पर्शी शब्द चित्र लेकर आते है i अभिभूत हूँ श्रीमन--------- i तथाकथित वदान्य लोगो के दोहरे चरित्र से घिन आती है i इस जुगुप्सा को आपकी कथा ने और अधिक भास्वर कर दिया है i गढ़न , कहन सभी अनिवर्चनीय i बहुत बहुत शाधुवाद i
बताइये समाज में ऐसे भी समाज सेवी होते हैं?
आदरणीय गणेश जी, सफेद पोशों के चेहरे से नकाब उतारती इस लघुकथा के लिये बधाई स्वीकार करें
आदरणीय सलीम रज़ा जी, बहुत दिनों बाद आपका आना हो रहा है, लघुकथा पर आपकी उत्साहवर्धन करती टिप्प्णी प्राप्त हुई, बहुत ही अच्छा लगा, बहुत बहुत आभार |
आभार वीनस भाई |
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