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कुंडलिया -

सबके अन्दर जी रहा , मेरा , मै का भाव

वही डिगाता है सदा , आपस  का सदभाव

आपस  का  सदभाव , मिटाये ऐसी  दूरी

रिश्ते का सम्मान , हटा दे  हर  मजबूरी

टूटे  रिश्ते जुड़ें , सामने  कहता  रब  के  

रहे सरलता भाव, प्रज्वलित अन्दर सब के

 

मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 27, 2013 at 7:12am

आदरणीय सुशील भाई , रचना की सराहना के लिये आपका  शुक्रिया। आप सलाह देते संकोच न किया करें , कम से कम मेरी रचना मे। आपकी सलाह उचित है , मै सुधार ज़रूर करूंगा ॥ आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 27, 2013 at 7:09am

आदरनीय लक्ष्मण भाई , आपका बहुत बहुत शुक्रिया ॥

Comment by ram shiromani pathak on December 27, 2013 at 12:37am

आदरणीय अखिलेश जी से सहमत हूँ आदरणीय,कृपा कर इसे पुनः देख लें   ………  सादर 

Comment by नादिर ख़ान on December 26, 2013 at 11:58pm

आह भाई वाह, मनभावन कुंडलिया 

बहुत बधाई आदरणीय गिरिराज जी ।

Comment by रमेश कुमार चौहान on December 26, 2013 at 9:56pm

आदरणीय गिरिराजजी, आपके गजल, दोहे के बाद मै पहला छंद देख रहा हूॅ, अस्तु कोटिश बधाई ।

इन पंक्ति पर-

आपस का सदभाव , बढ़ा  दे  ऐसी  दूरी

बंद सिलसिला  करें , बने  ऐसी मज़बूरी

 मै आदरणीयअखिलेश श्रीवास्तव जी से सहमत हॅू ।

Comment by Shyam Narain Verma on December 26, 2013 at 5:51pm
बढ़िया रचना पर हार्दिक बधाइयाँ....
Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on December 26, 2013 at 1:16pm

छोटे भाई गिरिराज ,  कुंडलियों में तुम्हारी पकड़ बनती जा रही है, भाव भी अच्छे हैं,  हार्दिक बधाई ॥

लेकिन बीच की दो पंक्तियों को पढ़ें तो अर्थ उल्टा  क्यों हो जाता है , इस छंद के जानकार और गुणीजन ही बतायेंगे..... जैसे... 

आपस का सदभाव , बढ़ा  दे  ऐसी  दूरी  ///   ( आपस के सदभाव से दूरियाँ कम होती है, मिट जाती है... बढ़ती नहीं )

बंद सिलसिला  करें , बने  ऐसी मज़बूरी ///   ( उपरोक्त कारण से चौथी पंक्ति का अर्थ / भाव भी गलत हो रहा है। )

इस संबंध में कुंडलिया छंद के जानकार और गुणीजन ही कुछ बता सकते है। 

Comment by Sushil Sarna on December 26, 2013 at 12:32pm

aa.Giriraj Bhandaari jee bahut sundr kudli...sundr bhaa....lekin SIR kshma sahit chaturth aur pancham pankti ke visham pankti ka ant laghu maatra se hona chahiye...yadi ham बंद सिलसिला  करें ko  सिलसिला  करें बंद krain to theek rahega isee trah pancham pankti ke visham bhaag ko bhee theek kiya jaa sakta hai....meree kisee baat ko anytha n levain ....kuch galt khaa to kshma chahta hoon....sadar naman

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 26, 2013 at 6:51am

आदरणीय भाई गिरिराज जी ,

लाजवाब कुंडलियों के लिए हार्दिक बधाई

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