कहते हैं की इन्सान दुनिया से मुँह चुरा सकता है पर स्वयं से नहीं। जब भी हम कुछ करते हैं अच्छा या बुरा हम स्वयं ही उसके गवाह और न्यायाधीश होते हैं, अगर अच्छा करते हैं तो खुद को शाबासी देते हैं और बुरा करते हैं तो स्वयं को कटघरे में खड़ा कर देते हैं,क्योंकि हम खुद के प्रति उत्तरदायी होते हैं पर ये सारी क्रिया हम दुनिया के सामने करने का साहस कर सकते हैं … ??? नहीं … ना …!! क्योंकि हम दुनिया से मुँह चुरा रहे होते हैं। हमारे कार्य जीवन के प्रति हमारे नजरिये से जुड़े होते हैं। हम क्या अच्छा करते हैं क्या बुरा करते हैं ये सब इसी नजरिये की देन होता है। बुरा करने के बाद भी यदि हमें लगता है कि हमने सही किया है तो हम सही और गलत में फर्क कर पाने में असमर्थ होते हैं और यही से हम ढलान कि ओर सरकना शुरू हो जाते हैं जहाँ से सिर्फ और सिर्फ बुराई कि ओर चल पड़ते हैं और अपनी आत्मा कि आवाज की अनसुनी करने लगते हैं, क्योंकि हमारा मन या चेतना ,आत्मा इसे जो भी कहें हमारे अच्छे या बुरे कर्मों की साक्षी रहती है। वही हमें कटघरे में खड़ा कर सकती है। और वही जीवन के प्रति हमारे गलत नजरिये को सही कर सकती है.
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बुराई को बड़ी सरलता से अपनाया जा सकता है और व्यक्ति बुराई की ओर जल्दी झुकता है क्योंकि बुराई हमेशा से इन्सान पर आसानी से हावी हो जाती है जबकि अच्छाई को अपनाने में कठिनाई आती है। अच्छाई में आत्मानुशासन की आवश्यकता होती है और अमूमन इन्सान इसी बात से बचना चाहता है। अच्छाई का अगर रास्ता इतना ही आसान होता तो सारी दुनिया में चारों ओर अच्छाई का ही बोलबाला होता, कहते हैं ना ,"बहुत कठिन है डगर पनघट की " , बिल्कुल अच्छाई के लिए यही बात सटीक बैठती है।
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बुराई की सबसे बुरी बात यही है कि वह इंसान को अपनी गिरफ्त में इस तरह से लेती है कि उसे सोचने का अवसर ही नहीं मिल पाता। बुराई वास्तव में एक मकड़जाल कि मानिन्द है जिसमें एक बार उलझ गए तो निकल पाना पाना इतना सरल नहीं है। हाँ …इससे बाहर निकला जा सकता है, बशर्ते कि व्यक्ति जबतक स्वयं न चाहे। बुराई से बाहर निकलने के लिए हमारा विवेक और हिम्मत ही हमारा साथ दे सकते हैं। हौसला और धीरज रखते यदि शान्त से सोचेंगे तो हमें अपनी अपनाई हुई बुराई से बाहर निकलने का रास्ता मिल जायेगा। जीवन के प्रति आशावादी और सकारात्मक सोच हमें बुराई कि तरफ जाने से रोकती है और अच्छाई का दामन थामे रखने में हमारी मदद करता करता है … जरा थोड़ी देर के लिए एक बार रुकें … और सोचें … क्या वाकई आप किसी बुराई के शिकार तो नहीं .... ?? अगर हैं तो कोई बात नहीं आप उससे बाहर निकल सकते हैं … बस … एक कदम अच्छाई कि और बढ़ाएं तो सही ....!!
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यह रचना मौलिक तथा अप्रकाशित है
Comment
एक अच्छी बातचीत को बढ़ाती हुई प्रस्तुति. सार्थक चर्चा के लिए धन्यवाद.
आदरणीया वीना जी बहुत ही सुन्दर आलेख साझा किया है आपने बहुत बहुत बधाई आपको.
एक बहुत ही सही विषय पर आपने अपना आलेख साझा किया है आदरणीया वीना जी, इन्सान के जीवन में आत्म विश्लेषण बहुत मायने रखता है उसे यह समझ आ सकता है की उसकी गलतियों से उसने क्या खोया है, और अच्छाई से क्या पाया है. कभी कभी इन्सान अपनी सारी खूबियाँ बतलाकर दूसरों के विश्लेषण पर अपनी ही राह में गड्ढे खोदता रहता है, ऐसे रास्तों पर चला जाता है जहाँ से वापस आना मुश्किल होता है|
आदरणीया वीना जी , एक सार्थक आलेख के लिये आपको बधाई ॥
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