क्यूँ
हाँ क्यूँ
मेरा मन
मेरा कहा नहीं मानता
क्यूँ मेरा तन
मेरे बस में नहीं
न जाने इस पंथ का अंत क्या हो
किस इच्छा के वशीभूत हो
मेरे पाँव
अनजान उजाले की ओर आकर्षित हो
निरंतर धुल धूसरित राह पे
बढ़ते ही जा रहे हैं
ये तन
उस मन के वशीभूत है
जो स्थूल रूप में है ही नहीं
न जाने मैं इस राह पे
क्या ढूढने निकला हूँ
क्या वो
जो मैं पीछे छोड़ आया
या वो
जो मेरे मन की
गहरी कंदराओं में
छुपा बैठा है
मन के
राग-विराग, सुख-दुःख
मिलन-विरह, जीवन-मरण के प्रश्न
आज भी उत्तर की प्रतीक्षा में
मानव की बेबसी का उपहास उड़ा रहे हैं
बेलगाम घोड़े सा ये मन
अपनी इच्छा रूपी
नागफ़ास की कुंडली में
तन को उस उजाले की ओर ले जा रहा है
जो स्वयं अन्धकार के वश में है
क्या इस मन और जीवन रूपी राह का अंत निर्वाण है
शायद हाँ
शायद न
तन हारा न हारा मन
लम्बी राहें थकता जीवन
जन्म-मरण और पुनर्जन्म
उलझे प्रश्नों में हँसता मन, उलझे प्रश्नों में हँसता मन ……
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
Vandana jee rachna par aapkee snehil prashansa ka haardik aabhaar
गहन भावों से भरी सुन्दर रचना है आदरणीय सुशील सर
aa.Saurabh Pandey jee rachna par aapkee snehaasheesh ka haardik aabhaar...aapke dwara ingit truti ko bhavishy men avashy dhyaan men rakhoonga ....kyun shabd men mujhe force laga isleye uska pryog kiya....khair aapke is anmol sujhaav ka haardik aabhaar......nav varsh kee aapko haardik shubhkaamnaaye SIR jee
मनस के अवयवों के सापेक्ष-प्रभाव को साझा करती इस अभिव्यक्ति के लिए धन्यवाद, आदरणीय. स्थूल और सूक्ष्म की परस्पर निर्भरता परा-ज्ञान का मूल है. बहुत बधाई स्वीकारें आदरणीय.
अलबत्ता, क्यूँ जैसे शब्द रचना के स्तर को हल्का अवश्य कर रहे हैं, इसके प्रति अवश्य ध्यान रखा जाय.
सादर
aa.Arun Sharma Anant jee rachna par aapkee snehil prashansa ka haardik aabhaar avm nav varsh kee haardik shubhkaamnaayen
aa.Ramesh Kumar Chouhan jee rachna par aapke sneh ka haardik aabhaar avm aapko nav varsh kee haardik shubhkaamnaayen
aa.Akhilesh Krishan Shrivastav jee rachna par aapkee snehankit prashansa ka haardik aabhaa aivm nav varsh kee haardik shubhkaamnaayen
aadrneey Dr.Prachi Singh jee rachna par aapkee smeekshaatmak pratikriya aur prashansa se rachna ko aik naee oonchaaee milee hai....aapkee aatmeeyata se pripoorn snehankit shabdon ke liye haardik aabhaar....aapko nav varsh kee haardik shubhkaamnaayen
आदरणीय सुशील जी बहुत ही गहन भाव सुन्दर रचना बधाई स्वीकारें
आदरणीय सुशील सरलजी, इस भाव युक्त प्रस्तुति के साथ साथ नववर्ष की बधाई
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online