बह्र-ए- खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
2122 1212 22
इश्क में डूब इन्तहाँ कर ली,
यार मुश्किल में अपनी जाँ कर ली,
भा गई सादगी अदा हमको,
जल्दबाजी में हमने हाँ कर ली,
वश में पागल ये दिल नहीं अब तो,
धडकनें छेड़ बेलगाँ कर ली,
पाँव जख्मी लहू से लथपथ हैं,
राह ने ठोकरें जवाँ कर ली,
नाम बदनाम हो न महफ़िल में,
शायरी मैंने बेजबाँ कर ली..
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
नाम बदनाम हो न महफ़िल में,
शायरी मैंने बेजबाँ कर ली..,,,,,,,,,,
shayari ....maine be-z"u"ban .....ya be-z"a" ban ....sahi hai ....kriypa margdarshan kare ..........
भा गई सादगी अदा हमको,
जल्दबाजी में हमने हाँ कर ली, kuch clear nahi lag raha hai .....sadgi ada ......
आदरणीय शिज्जू जी मैंने आपकी जानकारी को चैलेन्ज नहीं किया मैनें नेट पर उपलब्ध सामग्री के बारें में लिखा था फिर भी मेरे शब्दों से आपको जो कष्ट हुआ उसके लिए आपसे माफ़ी चाहती हूँ जहाँ तक जानकारी का सवाल है उसके लिए आपके नजरिये का सम्मान करती हूँ बात साफ़ होनी ही चाहिए वाणी प्रकाशन की पुस्तकों में आपने जैसा उद्धृत किया वैसा ही है मैंने भी देखा है
और बहस वाली बात भी आपको लेकर नहीं लिखी पर आदरणीय अरुण जी की पोस्ट पर मेरी टिप्पणी से किसी को ( खासतौर से खुद आदरणीय अरुण जी को ) कष्ट पहुँचाने की जो शुरुआत हुई उसके लिए केवल मैं जिम्मेदार हूँ उसीके लिए क्षमाप्रार्थना की थी
भाई अरुण जी, "इन्तहाँ" शब्द गलत है, सही शब्द है "इंतिहा".
अगर "बेलगाँ" को "बे-लगाम" की जगह प्रयोग किया गया है तो वह भी गलत है, क्योंकि व्यंजन "म" को चन्द्रबिन्दु से स्थानापन्न नहीं किया जाता है, यह छूट केवल व्यंजन "न" से ख़त्म होने वाले शब्द के साथ ही ली जा सकती है.
अरूण एक तो गजल में जाँ मुश्किल में कर ली और दूसरा गजल लिख कर ऐसा लग रहा है
बहुत बहुत बधाई
वंदना जी ये बहस वाली बात नही है कोई न कोई शंका हर किसी के मन में होती है बात साफ होनी ज़रूरी है, रही बात जानकारी के अभाव की जी हाँ आप सही हैं मेरे पास जानकारी का अभाव तो है ये स्वीकार करने में कोई हिचक नही है जो सच वो सच है, जो भी जानकारी मुझे मिली है वो बहुत ओबीओ से ही मिली है कुछ उस्तादों की गज़लों से।
अब जिगर मुरादाबादी का शेर उस किताब से मैंने लिया है जिसका संपादन जनाब निदा फाज़ली द्वारा किया गया है
हिजाबे इश्क़ को ऐ दिल बहुत गनीमत जान
रहेगा क्या जो ये पर्दा भी दर्मियाँ न रहा
ये वाणी प्रकाशन की किताब है पहले वाली राजपाल एण्ड संस की
वंदनाजी ये शेर मैंने बशीर बद्र जी के ग़ज़ल संग्रह धूप का चेहरा से निकाला है एक और उदाहरण है इन्हीं का
हज़ार साल का किस्सा तमाम होता है
ज़मीं का एक वरक़ आसमाँ ने मोड़ दिया
इस किताब का संपादन श्री कन्हैया लाल नंदन जी द्वारा किया गया है
आदरणीय शिज्जू जी आपने जो उदाहरण दिया है वो बिलकुल ठीक है काफिये में मूल शब्द का आना जरूरी नहीं बस कमान शब्द को कमां लिखा जाना चाहिए न कि कमाँ यह टंकण त्रुटि हो सकती है या जानकारी का अभाव भी अगर आपने यह उदाहरण नेट पर देखा है तो कृपया ग़ज़ल की किसी पुस्तक में भी देखिये और बताइयेगा
जैसे राही मासूम रजा साहब की ग़ज़ल में -
जहाँ और जहां में अंतर है यह बात कहना चाहती थी और(काफिया - मूल शब्द - लिखा जा सकता है)यहाँ काफिया (जो लिया गया )उसका मूल शब्द क्या है और चन्द्र बिंदु का प्रयोग न करते हुए कैसे लिखा जाना चाहिए यह बात उसके नीचे दिए गए उदाहरणों के माध्यम से व्यक्त करना इसका उद्देश्य था|
वैसे टिप्पणी करते हुए सहज और सरल भाषा का प्रयोग करना चाहिए उसमें न चाहते हुए भी कमी रह जाती है
अपनी भाषा या टिप्पणी से आदरणीय अरुन शर्मा 'अनन्त' जी को आहत किया हो तो क्षमाप्राथी हूँ
आपकी पोस्ट को बहस का मंच नहीं बनाना चाहती थी पर इन बातों को लेकर यदि मेरी ग़लतफ़हमी है तो दूर होनी चाहिए आपसे पुन: एक बार क्षमा चाहती हूँ
बहुत खूबसूरत गजल हुई है प्रिय अरुण , बधाई ।
आदरणीया वंदना जी //काफिया - मूल शब्द - लिखा जा सकता है// शायद यहाँ आपके कहने का मतलब है कि काफिया मूल शब्द होना चाहिये?
बशीर बद्र जी की एक ग़ज़ल का मतला देखिये
//रात की राह में तारों की कमाँ रोशन है
चाँद में कौन है ये किसका मकाँ रोशन है//
यहाँ कमान को कमाँ, मकान को मकाँ लिखा गया है
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online