१२२२ १२२२ १२२२ १२२
मुझे बेजान सा पुतला बनाना चाहता है
किसी शोकेस में रखकर सजाना चाहता है
मेरे जज्बात सब उसको खिलौने जान पड़ते
जिन्हें वो खुद की चाभी से चलाना चाहता है
कुतर डाले मेरे जब हौंसलों के पंख उसने
बुलंदी आसमां की अब दिखाना चाहता है
मेरे किरदार में सख्ती नहीं उसको गंवारा
बिना हड्डी का कर मुझको पचाना चाहता है
दिवारें चार मेरी हो गईं हैं कब्रगाहें
मुझे जिन्दा ही वो मुर्दा बनाना चाहता है
.
संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बहुत सुंदर ग़ज़ल रचना संजू जी // हार्दिक बधाई आपको
wowwwwwwww...........
it`s amazing........
मेरे किरदार में सख्ती नहीं उसको गंवारा
बिना हड्डी का कर मुझको पचाना चाहता है............बहुत कमाल का शेर
बेहतरीन गजल हुयी , बधाई आदरणीया संजू जी
वाह बेहद उम्दा हर्फ़ हर्फ आक्रोश में तपा सा लगता है लाजवाब सार्थक ग़ज़ल हेतु बधाई
सादर
आदरणीया संजू जी .. क्या कहूँ ...बहुत बढ़िया .. वर्षो से दबी , कुचली गयी भावनाओं को आपने जबदरस्त आवाज दी है .. हर शेर बुलंद होकर चुनौती दे रहें हैं .. हार्दिक बधाईयाँ
आप सभी सुधीजनों का रचना अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार
खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई
आदरणीया संजू जी , बहुत खूबसूरत गज़ल कही है , हर शे र नायाब हैं आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥
दीवारें 222 को दिवारें 122 करना कितना सही है मै कह नही सकता , गुणीजनो की सलाह का इंतिज़ार रहेगा ॥
उत्तम...
भावनाएं ग़ज़ल में बखूबी मुखरित हुई हैं उम्दा ग़ज़ल के लिए दिली मुबारकबाद मोहतरमा !!
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