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ग़ज़ल - मुझे बेजान सा पुतला बनाना चाहता है

१२२२   १२२२     १२२२    १२२

मुझे बेजान सा पुतला बनाना चाहता है

किसी शोकेस में रखकर सजाना चाहता है

 

मेरे जज्बात सब उसको खिलौने जान पड़ते

जिन्हें वो खुद की चाभी से चलाना चाहता है

 

कुतर डाले मेरे जब हौंसलों के पंख उसने

बुलंदी आसमां की अब दिखाना चाहता है

 

मेरे किरदार में सख्ती नहीं उसको गंवारा

बिना हड्डी का कर मुझको पचाना चाहता है

 

दिवारें चार मेरी हो गईं हैं कब्रगाहें

मुझे जिन्दा ही वो मुर्दा बनाना चाहता है

.

संजू शब्दिता  मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by ram shiromani pathak on January 14, 2014 at 10:15pm

बहुत सुंदर ग़ज़ल रचना संजू जी   // हार्दिक बधाई आपको 

Comment by sarika choudhary on January 14, 2014 at 1:43pm

wowwwwwwww...........

it`s amazing........

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 14, 2014 at 8:14am

मेरे किरदार में सख्ती नहीं उसको गंवारा

बिना हड्डी का कर मुझको पचाना चाहता है............बहुत कमाल का शेर

बेहतरीन गजल हुयी , बधाई आदरणीया संजू जी

 

Comment by Anurag Singh "rishi" on January 14, 2014 at 12:16am

वाह बेहद उम्दा हर्फ़ हर्फ आक्रोश में तपा सा लगता है लाजवाब सार्थक ग़ज़ल हेतु बधाई
सादर

Comment by MAHIMA SHREE on January 13, 2014 at 10:05pm

आदरणीया संजू जी .. क्या  कहूँ ...बहुत बढ़िया .. वर्षो से दबी  , कुचली गयी भावनाओं को आपने जबदरस्त आवाज दी है .. हर शेर बुलंद होकर  चुनौती दे रहें हैं .. हार्दिक बधाईयाँ

Comment by sanju shabdita on January 13, 2014 at 1:31pm

आप सभी सुधीजनों का रचना अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार

Comment by gumnaam pithoragarhi on January 12, 2014 at 8:30pm

खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 12, 2014 at 6:30pm

आदरणीया संजू जी , बहुत खूबसूरत गज़ल कही है , हर शे र नायाब हैं आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥ 

दीवारें 222  को दिवारें  122  करना कितना सही है मै कह नही सकता , गुणीजनो की सलाह का इंतिज़ार रहेगा ॥

Comment by Ajay Agyat on January 12, 2014 at 5:27pm

उत्तम...

Comment by Abhinav Arun on January 12, 2014 at 8:02am

भावनाएं ग़ज़ल में बखूबी मुखरित हुई हैं उम्दा ग़ज़ल  के लिए दिली मुबारकबाद मोहतरमा !!

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