For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आज के बाज़ार पर.. (नवगीत) // --सौरभ

बिस्तर-करवट-नींद तक
रिस आया बाज़ार

हर कश से छल्ले लिए

बातें हुई बवण्डरी
मुदी-मुदी सी आँख में
उम्मीदें कैलेण्डरी

गलबहियों के ढंग पर
करता कौन विचार..  

रजनीगंधा सूँघता
लती हुआ मन रेह का
फेनिल-कॉफ़ी घूँट पर
बाँध तोड़ता देह का

अधलेटे म्यूराल* पर
बाँच रहा अख़बार

खिड़की के बाहर हवा
इतनी कब निर्लिप्त थी
गुलमोहर के गाल पर
होठ धरे संतृप्त थी

उसके दिये रुमाल पर
आँकी थी तब प्यार..

******
-सौरभ

(मौलिक एवं अप्रकाशित)
******

*म्यूराल - दीवार पर उगी हुई मूर्तियाँ, भित्तिचित्र

Views: 880

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 6, 2015 at 7:26pm

आ० सौरभ जी

आपका  यह  गीत बहुत ही सुन्दर है और निस्संदेह नव गीत में अपना विशिष्ट स्थान बनाएगा बल्कि बना चुका है i यह शिल्प ही  तो है जो  गीत और नवगीत में विभाजन करता है i स्तुत्य् रचना  i  सादर i


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 28, 2014 at 11:10pm

इस प्रस्तुति पर अपनी सार्थक प्रतिक्रिया देने केलिए समस्त सुधी पाठकों और आत्मीयजनों को मेरा हार्दिक धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 29, 2014 at 9:19am

//सिर्फ लती हुआ मन रेह का .. बात मुझे स्पष्ट नहीं हुई ..//

जिसके पास रजनीगंधा जैसा पुष्प उपलब्ध हो वह रेह या ऊसर का लती यानि आदती होने लगे..  यानि रजनीगंधा जैसे नम और अत्यंत सुवासित पुष्प-गुच्छ को सूँघने और उसका आनन्द लेने वाला कोई शख़्स यदि रेह या ऊसर का जहाँ कुछ नहीं उगता, ऐसे वातावरण का लती होने लगे..  या हो जाय.. तो क्या वो कम अतार्किक बात होगी ?

इसी को रेखांकित करने की एक कोशिश हुई है.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 29, 2014 at 9:12am

//'हवा'स्त्रीलिंग संज्ञा तो है लेकिन फिर भी मुझे लगता है "आँका था" ही ज्यादा सही होगा.//

ऐसा ?  कर्ता के साथ ने कारक हो तो क्रिया कर्म के अनुसार चलती है. अन्यथा नहीं. इतना मैं जानता हूँ. ..  :-)))


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 29, 2014 at 9:10am

हम शब्दों को साँचे में जमाने की प्रक्रिया को या भाव-प्रधान उद्वेलनों को ही कविता नहीं कहेंगे. उम्मीद थी, इस प्रस्तुति पर सार्थक चर्चा होती.
बहरहाल, इस नवगीत की अवधारणा तथा इसके वैचारिक पहलू को अनुमोदित करने के लिए सभी सुधीजनों के प्रति आभार..
शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 29, 2014 at 9:09am

आदरणीय योगराजभाईजी, आपका अनुमोदन मिलना ही किसी प्रस्तुति के सार्थक होने की पहचान है..
सादर धन्यवाद, आदरणीय.
 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 23, 2014 at 1:51pm

बाज़ार के बिस्तर तक पहुँच जाने का ख्याल वास्तव में बेहद नवीन और विलक्षण हुआ है. कैलेन्डरी उम्मीदों को भी क्या सुन्दर शब्दों में बाँधा है. आपके इस नवगीत की गम्भीर सुगंध नथुनो से मस्तिष्क तक पहुंची है, हार्दिक बधाई निवेदित है.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 23, 2014 at 12:56pm

आदरणीय सौरभ जी 

बहुत ही अभिनव बिम्ब लिए हैं आपने इस नवगीत में...

हर कश से छल्ले लिए

बातें हुई बवण्डरी ...................वाह वाह! ऊहापोह का क्या खूब चित्रण हुआ है 

लती हुआ मन रेह का............ सीधी सीधी राह चलने वाले का डगमगा जाना.....बहुत खूबसूरती से व्यक्त हुआ है 

बस एक जगह अटक रही हूँ 

आपने अंतिम पंक्ति में "आँकी थी ...." क्यों लिखा है?  'हवा'स्त्रीलिंग संज्ञा तो है लेकिन फिर भी मुझे लगता है "आँका था" ही ज्यादा सही होगा............................कुछ गलती हुई हो तो क्षमा कीजियेगा 

आपकी प्रस्तुतियों के शिल्प को गौर करना भी बहुत कुछ सीखने के अवसर देता है.. 13-11 और 13-13 के शिल्प पर बहुत सुन्दर साधा है आपने अपने कथ्य को.

इस सुन्दर नवगीत पर बहुत बहुत बधाई आदरणीय 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on January 22, 2014 at 5:20pm

आदरणीय सौरभ भाईजी ,

नवगीत की बधाई। बाज़ार और विज्ञापन  के युग में हर कोई बाज़ारू होता जा रहा है, हालात तो अभी  और बिगड़ना है । आखिर कौन सोचेगा ? जब ..................
 हर व्यक्ति यहाँ पे बिकाऊ है, हर रोज यहाँ बाज़ार।

युवा, प्रौढ़, बूढ़े सब मस्त हैं, कौन करेगा विचार ॥...................

.................   सादर 

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 22, 2014 at 11:13am

वाह हृदयस्पर्शी मनमोहक नवगीत रचा है आपने आदरणीय सौरभ सर शब्द चुनाव, पंक्तियों की गहराई प्रवाह बरबस आकर्षित कर रहा है. एक एक पंक्ति  चिंतन पर विवश कर रही है. हृदयतल से ढेरों बधाइयाँ स्वीकारें.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service