For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

धीरे-धीरे समझे हम

इस दुनिया के तौर तरीके

धीरे धीरे समझे हम

गुलदस्तों की ओट में खंजर

धीरे-धीरे समझे हम|  

जोश बड़ा था होश नहीं था

हद से आगे गुजरे हम

हद से आगे जो होता है  

धीरे-धीरे समझे हम|

 

जो भी मिल गए

अपने बन गए

रिश्ते खूब निभाये हम

रिश्तेदारों की हकीकत     

धीरे-धीरे समझे हम|

बीत गयी हर बात पुरानी

एक कहानी बन गए हम

 फंतासी हैं रिश्ते नाते

धीरे-धीरे समझे हम|

शहद समझकर हंसकर पी गए

जहर के कितने प्याले हम

किश्तों में फिर मौत का आना

धीरे-धीरे समझे हम| 

 

दर्पण का दिल चटक गया

जब इसके भीतर झांके हम

हजार मुखोटे एक चेहरे पर

धीरे-धीरे समझे हम| 

मेहनत करके हारा है जो

उसे नकारा समझे हम

मेहनतकश की पीर कहां है

धीरे-धीरे समझे हम| 

(मौलिक और अप्रकाशित) 

Views: 719

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 11, 2017 at 5:36pm

बहुत सुंदर प्रस्तुति |

Comment by Gul Sarika Thakur on February 1, 2014 at 7:18am

प्रबुद्ध सुधीजनो के इस मार्ग दर्शन से अभिभूत हूँ, लम्बे समय तक मुक्त छ्न्द में लिखने के उपरांत अनुभव हुआ कि काव्य में छ्न्द भी अति महत्वपूर्ण है, सहमत हूँ शिल्प दोष अवश्य होंगे... बहुत ही आभारी रहूँगी अगर सुधीजन भूल सुधार भी कर दें... . आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 1, 2014 at 2:00am

बहुत दिनों पर आपकी रचना से गुजर रहा हूँ. आपके भावशब्दों में रुहानी ताकत है लेकिन रचनाकर्म प्रस्तुति के अलावे एक साधना भी है जिसमें कुछ कहने का ढंग यानि शिल्प भी अर्थ रखता है. तब तो और, जब रचनाकार शाब्दिक प्रवाह के व्यामोह में दिखे.
अरुन अनन्तभाई के कहे से मैं भी सहमत हूँ.
शुभेच्छाएँ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 27, 2014 at 3:53pm

दुनियादारी, रिश्ते नातों, अपनों परायों के उलझे जाल को समझने की चेष्टा करती अभिव्यक्ति...

शिल्प के स्तरपर अभी कुछ और वक़्त दिए जाने की ज़रुरत है इस रचना पर.

शुभकामनाएं  

Comment by अजय कुमार सिंह on January 26, 2014 at 2:21am

भाई अरुन शर्मा 'अनन्त' जी की बात से सर्वथा सहमत हूँ. पहले पद का प्रवाह यदि सम्पूर्ण रचना में होता तो क्या ही उत्तम रचना होती. फिलहाल, भावपूर्ण रचना के सृजन पर बधाई स्वीकारें आदरणीया |

Comment by ajay sharma on January 25, 2014 at 9:58pm

इस दुनिया के तौर तरीके

धीरे धीरे समझे हम

गुलदस्तों की ओट में खंजर

धीरे-धीरे समझे हम|  .....wah wah kya kahan hai apka ..........bahut hi sunder 

Comment by Priyanka singh on January 25, 2014 at 6:49pm

जोश बड़ा था होश नहीं था

हद से आगे गुजरे हम

हद से आगे जो होता है  

धीरे-धीरे समझे हम|

दर्पण का दिल चटक गया

जब इसके भीतर झांके हम

हजार मुखोटे एक चेहरे पर

धीरे-धीरे समझे हम| 

मेहनत करके हारा है जो

उसे नकारा समझे हम

मेहनतकश की पीर कहां है

धीरे-धीरे समझे हम| ........आदरणीया सारिका जी ....बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना कही अपने...... बहुत बहुत बधाई आपको 

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 24, 2014 at 11:32am

आदरणीया सारिका जी रचना ने बहुत ही सुन्दर भाव पिरोये हैं आपने प्रथम दो पंक्तियों में जो प्रवाह है यदि वही सम्पूर्ण रचना में होता तो आनंद आ जाता. खैर इस रचना पर ढेरों बधाइयाँ स्वीकारें.

Comment by Gul Sarika Thakur on January 23, 2014 at 10:59pm

Abhaar Nadir Khan Sahab...

Comment by नादिर ख़ान on January 23, 2014 at 9:48pm

शहद समझकर हंसकर पी गए

जहर के कितने प्याले हम

किश्तों में फिर मौत का आना

धीरे-धीरे समझे हम| 

 

दर्पण का दिल चटक गया

जब इसके भीतर झांके हम

हजार मुखोटे एक चेहरे पर

धीरे-धीरे समझे हम| 

 आदरणीया   सारिका जी इस उम्दा रचना के लिए आपको कोटिशः बधाईयाँ..

दिल को छू लेने वाली शानदार अभिव्यक्ति ....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
19 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service