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बह्र : २१२ २१२ २१२

जब उड़ी नोच डाली गई
ओढ़नी नोच डाली गई

एक भौंरे को हाँ कह दिया
पंखुड़ी नोच डाली गई

रीझ उठी नाचते मोर पे
मोरनी नोच डाली गई

खूब उड़ी आसमाँ में पतंग
जब कटी नोच डाली गई

देव मानव के चिर द्वंद्व में
उर्वशी नोच डाली गई
------------
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Saarthi Baidyanath on January 28, 2014 at 10:59am

बहुत ही लाजवाब ग़ज़ल ..ये शेर मेरी पसंद का 

एक भौंरे को हाँ कह दिया
पंखुड़ी नोच डाली गई....वाह ..क्या कहने !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 28, 2014 at 8:57am

बहुत शानदार ग़ज़ल कही है आ० धर्मेन्द्र जी 

हर शेर मन में एक टीस उत्पन्न करता हुआ...

बहुत बहत बधाई 

Comment by Tilak Raj Kapoor on January 27, 2014 at 10:55pm

भाई बाकमाल ग़ज़ल है। इस उम्‍दा ग़ज़ल के लिये बधाई। 

Comment by बृजेश नीरज on January 27, 2014 at 10:26pm

बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by Sarita Bhatia on January 27, 2014 at 7:59pm

मार्मिक गजल 

Comment by Arun Sri on January 27, 2014 at 12:28pm

कब से पढ़ रहा हूँ ! और फिर भी पढ़ने का मन कर रहा है ! तारीफ में कुछ नही लिखूंगा ! फिर से पढता हूँ एक बार !

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 27, 2014 at 10:43am

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई जी आप ग़ज़ल में कठिन रदीफ़ चुनते हैं और जिस खूबसूरती से उसका निर्वाह करते हैं वो काबिले तारीफ है. सुन्दर ग़ज़ल बधाई स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 26, 2014 at 6:02pm

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , लाजवाब गज़ल कही है , सभी शे र खूबसूरत हैं ॥ बधाइयाँ कुबूल हो ॥

Comment by MAHIMA SHREE on January 26, 2014 at 5:26pm

जब उड़ी नोच डाली गई
ओढ़नी नोच डाली गई.... भीतर तक भेद गयी ... आपकी लेखनी को नमन ...धन्यवाद ... आधी आबादी के दर्द को आपने स्वर दिया ...सादर आभार

Comment by gumnaam pithoragarhi on January 26, 2014 at 3:57pm

वाह भाई जी  बधाई

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