नत-मस्तक वंदन करूँ, हे प्रभु! प्राणाधार
तमस क्षरण कर ज्ञान का, प्रभु कीजै विस्तार
कर्म रती या रिक्त मन, हो सुमिरन अविराम
क्षणिक न विस्मृत उर करे, प्रभु तव शुचिकर नाम
नयन मूँद - अन्तः रमे, दर्शन - तव विस्तार
झंकृत वीणा तार पर, श्रव्य मधुर मल्हार
क्षणभंगुर जग बंध से, मुक्त रहे चैतन्य
नित्य पंक अस्पृष्ट है, ज्यों प्रसून जल-जन्य
प्राप्य प्रयोजन पूर्ण कर, हो विदीर्ण स्वयमेव
विरह मिलन भव मुक्त उर, यदि विनष्ट अहमेव
Comment
दोहावली के भाव आप सब सुधि जनों के हृदय तक पहुचें...और इनकी सार्थकता कर आप सभी का अनुमोदन प्राप्त हुआ.
हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ.
सादर
संभव जागृत शुद्ध मन समझे अनहद नाद
किन्तु हुआ वर्णन कहाँ गूँगे से गुड़-स्वाद !
फिरभी, आपने अपने दोहों के माध्यम से बहुत कुछ सार्थक अभिव्यक्त किया है, आदरणीया प्राचीजी.. इन दोहों के लिए हार्दिक धन्यवाद.
शुभ-शुभ
आदरणीया प्राची जी, बहुत सुन्दर दोहावली! शब्द-शब्द उस परमपिता से एकनिष्ठ हो जाने को विवश कर रहा है! अपने स्व को त्याग कर उस परम शक्ति में रम जाने में ही जीवन है और उसकी सार्थकता भी!
आपको बहुत-बहुत बधाई!
सुंदर सात्विक दोहावली पर बधाई स्वीकारें आदरणीया डा. प्राची जी
क्षणभंगुर जग बंध से, मुक्त रहे चैतन्य
नित्य पंक अस्पृष्ट है, ज्यों प्रसून जल-जन्य..आदरणीया प्राची जी परम पिता परमेश्वर को समर्पित ये दोहे दिल को बेहद भाये ..आपके साहित्यिक बैबिध्य के नमन करते हुए ..सादर
नयन मूँद - अन्तः रमे, दर्शन - तव विस्तार
झंकृत वीणा तार पर, श्रव्य मधुर मल्हार
बहुत सुन्दर आध्यात्मिक दोहे आदरणीया प्राची जी
दोहावली के भावार्थ को पसंद कर अनुमोदित करने के लिए आप सभी सुधिजनो का हृदय तल से आभार..
बहुत सुंदर , गहन अर्थ एवं सुंदर शिल्प , आपकी इस अनुपम रचना हेतु bahut बधाई ।
आदरणीया प्राची जी , दोहों के माध्यम से परम पिता से बहुत सुंदर सात्विक प्रार्थना हुई है ॥ आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥
प्राप्य प्रयोजन पूर्ण कर, हो विदीर्ण स्वयमेव
विरह मिलन भव मुक्त उर, यदि विनष्ट अहमेव ये है गीता का ज्ञान
अध्यात्म चिंतन मनन करने बाध्य करती सभी दोहे
आदरणीया दीदीजी नमन सह बधाई
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