For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ज्यों प्रसून जल-जन्य ( दोहावली) //डॉ० प्राची

नत-मस्तक वंदन करूँ, हे प्रभु! प्राणाधार

तमस क्षरण कर ज्ञान का, प्रभु कीजै विस्तार

कर्म रती या रिक्त मन, हो सुमिरन अविराम 

क्षणिक न विस्मृत उर करे, प्रभु तव शुचिकर नाम 

नयन मूँद - अन्तः रमे, दर्शन - तव विस्तार 

झंकृत वीणा तार पर, श्रव्य मधुर मल्हार 

क्षणभंगुर जग बंध से, मुक्त रहे चैतन्य 

नित्य पंक अस्पृष्ट है, ज्यों प्रसून जल-जन्य

प्राप्य प्रयोजन पूर्ण कर, हो विदीर्ण स्वयमेव 

विरह मिलन भव मुक्त उर, यदि विनष्ट अहमेव 

Views: 750

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 4, 2014 at 11:37am

दोहावली के भाव आप सब सुधि जनों के हृदय तक पहुचें...और इनकी सार्थकता कर आप सभी का अनुमोदन प्राप्त हुआ.

हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ.

सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 4, 2014 at 4:55am

संभव जागृत शुद्ध मन समझे अनहद नाद

किन्तु हुआ वर्णन कहाँ गूँगे से गुड़-स्वाद !

फिरभी, आपने अपने दोहों के माध्यम से बहुत कुछ सार्थक अभिव्यक्त किया है, आदरणीया प्राचीजी.. इन दोहों के लिए हार्दिक धन्यवाद. 

शुभ-शुभ

Comment by बृजेश नीरज on February 2, 2014 at 10:03pm

आदरणीया प्राची जी, बहुत सुन्दर दोहावली! शब्द-शब्द उस परमपिता से एकनिष्ठ हो जाने को विवश कर रहा है! अपने स्व को त्याग कर उस परम शक्ति में रम जाने में ही जीवन है और उसकी सार्थकता भी!

आपको बहुत-बहुत बधाई!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 2, 2014 at 9:18am

सुंदर सात्विक दोहावली पर बधाई स्वीकारें आदरणीया डा. प्राची जी

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 1, 2014 at 9:22pm

क्षणभंगुर जग बंध से, मुक्त रहे चैतन्य 

नित्य पंक अस्पृष्ट है, ज्यों प्रसून जल-जन्य..आदरणीया प्राची जी परम पिता परमेश्वर को समर्पित ये दोहे दिल को बेहद भाये ..आपके साहित्यिक बैबिध्य के नमन करते हुए ..सादर 

Comment by vandana on February 1, 2014 at 9:16pm

नयन मूँद - अन्तः रमे, दर्शन - तव विस्तार 

झंकृत वीणा तार पर, श्रव्य मधुर मल्हार 

बहुत सुन्दर आध्यात्मिक दोहे आदरणीया प्राची जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 1, 2014 at 9:02pm

दोहावली के भावार्थ को पसंद कर अनुमोदित करने के लिए आप सभी सुधिजनो का हृदय तल से आभार..

Comment by annapurna bajpai on February 1, 2014 at 6:51pm

बहुत सुंदर , गहन अर्थ एवं सुंदर शिल्प , आपकी इस अनुपम रचना हेतु bahut बधाई । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 1, 2014 at 6:24pm

आदरणीया  प्राची जी , दोहों के माध्यम से परम पिता से बहुत सुंदर सात्विक प्रार्थना  हुई है  ॥ आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by रमेश कुमार चौहान on February 1, 2014 at 4:37pm

प्राप्य प्रयोजन पूर्ण कर, हो विदीर्ण स्वयमेव 

विरह मिलन भव मुक्त उर, यदि विनष्ट अहमेव                                                   ये है गीता का ज्ञान

अध्यात्म चिंतन मनन करने बाध्य करती सभी दोहे

आदरणीया दीदीजी नमन सह बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service