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वो तन को ढाँकते हैं रोशनी से
बचा तू ही ख़ुदा इस बेबसी से
बनावट से ज़रा सा दूर रहना
मै कहना चाहता हूँ , सादगी से
नज़र में मुस्कुराहट, होठ चुप हैं
न जाने कह रहे हैं क्या, हँसी से
मै अब बेरोक बहता हूँ, हवा हो
ये रिश्ता खूब है आवारगी से
वो जुगनूँ जल के, शायद कह रहा है
नहीं डरता, किसी भी तीरगी से
वो जिनकी फ़िक्र मे आज़ार है कुछ
वही डरते रहे बे पर्दगी से
चलो हम गुनगुनायें आज, ग़म को
ज़रा रिश्ता तो जोड़ें आशिकी से
ये दुनिया खूबसूरत भी लगेगी
तू आजिज़ आ कभी जो आजिज़ी से
बहुत ज़ाहिर किया, फिर भी बचा है
कोई कितना कहेगा शाइरी से ?
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय भाई गिरिराज जी क्या कहने आपने तो सचमुच सादगी से मार डाला . एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई
वो तन को ढाँकते हैं रोशनी से
बचा तू ही ख़ुदा इस बेबसी से
बनावट से ज़रा सा दूर रहना
मै कहना चाहता हूँ , सादगी से
इनके लिए पुनः बधाई
अहा .. मार डाला .. एक एक शेर के लिए ढेरो ढेर बधाई
ये चार तो ख़ास हैं ... शानदार ग़ज़ल हुई है
वो तन को ढाँकते हैं रोशनी से
बचा तू ही ख़ुदा इस बेबसी से
बनावट से ज़रा सा दूर रहना
मै कहना चाहता हूँ , सादगी से
ये दुनिया खूबसूरत भी लगेगी
तू आजिज़ आ कभी जो आजिज़ी से
बहुत ज़ाहिर किया, फिर भी बचा है
कोई कितना कहेगा शाइरी से ?
चलो हम गुनगुनायें आज, ग़म को
ज़रा रिश्ता तो जोड़ें आशिकी से
बहुत ज़ाहिर किया, फिर भी बचा है
कोई कितना कहेगा शाइरी से ?......बेहतरीन अशआर ....लाजवाब ग़ज़ल ! बधाई आदरणीय ..!
बनावट से ज़रा सा दूर रहना
मै कहना चाहता हूँ , सादगी से
ये दुनिया खूबसूरत भी लगेगी
तू आजिज़ आ कभी जो आजिज़ी से.....बहुत बढ़िया ग़ज़ल आदरणीय
आदरणीया अन्नपूर्णा जी , उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ॥
आदरणीया कल्पना जी , ग़ज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
वाह !! आदरणीय भण्डारी जी बहुत बधाई ।
वो तन को ढाँकते हैं रोशनी से
बचा तू ही ख़ुदा इस बेबसी से....वाह!! मतला बहुत मन भाया। सुंदर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय गिरिराज जी
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