ऋतुराज के स्वागत में पांच दोहे
स्वागत तव ऋतुराज
चंप पुष्प कटि मेखला, संग सुभग कचनार।
गेंदा बिछुआ सा फबे, गल जूही का हार।१।
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बेला बाजूबंद सा, कंगन हरसिंगार।
गुलमोहर भर मांग में, करे सखी श्रृंगार ।२।
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पहन चमेली मुद्रिका, नथिया सदाबहार।
गुडहल बिंदी भाल दे, मन मोहे गुलनार।३।
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जूही गजरा केवडा, सजे सखिन के बाल।
तन मन को महका रही, मौलश्री की माल।४।
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झुमका लटके कान में, अमलतास का आज।
इस अनुपम श्रृंगार से, स्वागत तव ऋतुराज।५।
-सत्यनारायण सिंह
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय सतयनारायण सिंह जी आपके द्वारा प्रस्तुत दोहे शृंगार की सुंदर और मनभावन प्रस्तुति है। इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई
मौल श्री को 'मौलस् री' की तरह कभी नहीं उच्चारित किया जाता. बल्कि वह सदा 'मौल श्री' ही होता है. ऐसा हर उस शब्दयुग्म के लिए सही है जिसके आखिर में श्री जुड़ा हुआ होता है.
जैसे कि महिमा श्री. यह शब्द युग्म कभी महिमास् री की तरह उच्चारित नहीं होगा. बल्कि महिमा + श्री की तरह उच्चारित होगा. अतः मौलश्री की भी मात्रा २१२ रखना उचित होगा. आगे सुधीजन जैसा उचित समझें, कहें, मुझे मान्य होगा.
:-)))
परम आ. सौरभ जी सादर प्रणाम,
रचना पर आपकी प्रोत्साहनात्मक प्रतिक्रिया एवं अनमोल सुझाव हेतु आपका ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ,
आदरणीय, मात्रा गणना से सम्ब न्धित मौलश्री शब्द को लेकर मन में दुविधा थी.. २ १ २ या फिर २ २ २ मैं २ २ २ मानकर चल रहा था शायद गड़बड़ी का यही कारण रहा हो. यदि मेरी धारणा गलत हो तो कृपया इस पर प्रकाश अवश्य डालियेगा
श्रृंगार जैसा हिज्जै अशुद्ध है. पिछले आयोजन में एक जगह इस विषय पर आप प्रकाश डाल चुके है . तथापि, असावधानी के चलते श्रृंगार अशुद्ध अक्षरी का प्रयोग मेरे द्वारा हुआ है जिसके लिए मुझे खेद है. इस शब्द के प्रयोग को लेकर मैं भविष्य में सजग रहूँगा. आदरणीय.
सादर आभार
वाह वाह . क्या शृंगार हुआ है.. दोहे तक सुवासित हो गये प्रतीत हो रहे हैं.
मौलश्री वाला चरण गड़बड़ है, आदरणीय. मौलसिरी जैसा कर सकते है. आपने अपने दोहे की भाषा खड़ी हिन्दी तो यों भी नहीं रखी है.
एक् बात और, श्रृंगार जैसा हिज्जै अशुद्ध है. यह नेट के कारण हमारे आपके बीच में घुस आया है, फ़ॉण्ट की नॉन-कौम्पैटिबिलिटी का बहाना ओढ़े. लेकिन अब तो हम क्लिष्ट अक्षरियों को भी लिख सकते हैं. सही अक्षरी शृंगार है.
सादर
वाह !! आदरणीय बहुत सुंदर दोहे ।
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