रह जाएगा धन यहीं,जान अरे नादान!
इसकी चंचल चाल पर,मत करिये अभिमान!!
सत्कर्मों से तात तुम,कर लो ह्रदय पवित्र!
उजला उजला ही दिखे,सारा धुँधला चित्र!!
सागर में मोती सदृश,अंधियारे में दीप!
पाना है यदि राम को,जाओ तनिक समीप!!
मन गंगा निर्मल रखें,सत्कर्मों का कोष!
ऐसे नर के हिय सदा,परम शांति संतोष!!
जाग समय से हे मनुज,सींच समय से खेत!
समय फिसलता है सदा,ज्यों हाथों से रेत!!
मन करता फिर से चलूँ,उसी गाँव की ओर!
कोयल गाती थी जहाँ ,नाचा करते मोर !!
गैरों के घर फेकता,पत्थर क्यूँ इंसान!
बना हुआ है काँच का ,तेरा देख मकान !!
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
//खुद ही ये छट जायंगे ,सारे धुंधले चित्र , के स्थान पर , साफ स्वयं हो जायेंगे , सारे धुंधले चित्र ( कैसा रहेगा) //
शिल्प की दृष्टि से बहुत ही बेकार रहेगा.
आदरणीय रामशिरोमणीजी, जायंगे कौन सा शब्द है ?
ये भाषिक घालमेल या शाब्दिक छूट आदि के प्रति लोभ या उत्साह नहीं है. वस्तुतः यह अध्ययन के प्रति अकर्मण्यता है.
अमूल्य सुझाव व् अनुमोदन हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय गिरिराज जी। .... सादर
आदरणीय राम शिरोमणी भाई , बहुत खूब सूरत दोहा रचना की है , सभी दोहे एक से बढ्के एक हैं , सुन्दर सन्देश देते ॥ आपको बहुत बधाई ॥
जाग समय से हे मनुज,सींच समय से खेत!
समय फिसलता है सदा,ज्यों हाथों से रेत!! - ये दोहा खूब पसन्द आया ॥ बधाई स्वीकार करें ॥
खुद ही ये छट जायंगे ,सारे धुंधले चित्र , के स्थान पर , साफ स्वयं हो जायेंगे , सारे धुंधले चित्र ( कैसा रहेगा )
हार्दिक आभार भाई सिज्जू जी। ……। सादर
भाई रामशिरोमणिजी बड़ी अच्छी दोहावली आपका दार्शनिक अंदाज इनमें दिखाई दे रहा है बहुत बहुत बधाई आपको
मेरा प्रयास आपको अच्छा लगा यही मेरे लिए अमूल्य उपहार है,बहुत बहुत आभार आदरणीय रमेश भाई ......... सादर
उत्साह वर्धन हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय केवल भाई ......... सादर
आदरणीय पाठकजी, आप दोहावली के लगातार श्रृंखला प्रस्तुत करते आ रहे है, आपके इस अनवरत प्रयास से आपके दोहा मे नित निखार आ रहा है, सादर बधाई ।
प्रस्तुत दोहा सुंद र जन आंकांक्षा के संदेश समेटे समर्पित किये है, बहुत बहुत बधाई
आ0 रामशिरोमणि भार्इ जी,. सुन्दर भावों को व्यक्त करते बेहतरीन दोहे..। हार्दिक बधार्इ स्वीकारें। सादर,
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