For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मन – पाँच दोहे

************

मन को मत कमजोर कर , फिर से होगी भोर

फिर से गुनगुन धूप में , नाचेगा मन मोर 

 

मन, आखें मीचे अगर , खूब मचाये शोर

आँख अगर हो  देखती , मन भटके चहुँ ओर

 

खाली मन चिंता करे , मन का बस ये काम

बांधो इसको काम से , कभी न दो आराम

 

मन का ले के साथ तू , मन से हो जा दूर

मन के बन्धन में रहा , वो लगता मज़बूर

 

जब तक मन का राज है, मन मनवाये बात   

तू राजा जिस दिन हुआ , मन की क्या औकात    

 

मौलिक एवँ अप्रकाशित  ( संशोधित )

***********************************

 

 

Views: 976

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 5, 2014 at 7:31pm

आदरणीया वन्दना जी , दोलावली की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ  ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 5, 2014 at 7:30pm

आदरणीय सौरभ भाई , आपको मेरा दोहों का प्रयास अच्छा लगा , लिखना सार्थक हुआ !! आपका हृदय से आभारी हूँ ॥

Comment by vandana on March 4, 2014 at 6:34am

मन को मत कमजोर कर , फिर से होगी भोर

फिर से गुनगुन धूप में , नाचेगा मन मोर 

मन का ले के साथ तू , मन से हो जा दूर

मन के बन्धन में रहा , वो लगता मज़बूर

 

जब तक मन का राज है, मानो उसकी बात   

तू राजा जिस दिन हुआ , मन की क्या औकात

वाह आदरणीय बहुत सुन्दर दोहावली 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 4, 2014 at 2:16am

प्रस्तुति पर विशद व्याख्या के बाद विशेष शेष नहीं.

आपको इस उन्नत प्रयास के लिए हार्दिक बधाइयाँ.

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 18, 2014 at 4:30pm

आदरणीया प्राची जी , दोहो पर विस्तार से प्रतिक्रिया देने और सराहाना के लिये आपका आभारी हूँ ॥ आपके निर्देशानुसार गलतियों को सुधारने का प्रयत्न करूंगा ॥   आपका पुनः आभारी हूँ ॥


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 18, 2014 at 1:25pm

मन की सत्ता को समझते हुए बहुत सुन्दर कथ्य प्रस्तुत किया है दोहों में आदरणीय गिराज भंडारी जी 

मन को मत कमजोर कर , फिर से होगी भोर

फिर से गुनगुन धूप में , मन नाचेगा मोर ...................'नाचेगा मन मोर'  ऐसे किया जाए तो ?

 

मन, आखें मीचे अगर, खूब मचाये शोर

आँख अगर रखते खुली, तो देखे चहुँ ओर....................यह पंक्ति बहुत सपाट सी लगी , इसमें थोड़ी सी और कल्पना शीलता होती तो आनंद आ जाता 

 

खाली मन चिंता करे , मन का बस ये काम

बांधो इसको काम से , कभी न दो आराम................सीधी सादी बात, पर सुन्दर  (फिर भी 'कभी न दो आराम 'से मैं सहमत नहीं, मन की विश्रांति तो बहुत जीवन में बहुत ही ज़रूरी है  )

 

मन का ले के साथ तू , मन से हो जा दूर

मन के बन्धन में रहा , वो लगता मज़बूर................वाह मन के पार जाने के लिए मन का ही सहारा...बहुत पसंद आया यह दोहा 

 

जब तक मन का राज है, मानो उसकी बात   

तू राजा जिस दिन हुआ , मन की क्या औकात...........यह भी बहुत सुन्दर , मन जब तक नचाता है हम नाचते हैं पर जिस दिन मन पर नियंत्रण करना आ गया वह ही विजय का दिन होता है .  इस दोहे की पहली पंक्ति में 'मानो '  शब्द और दूसरी पंक्ति में 'तू' शब्द दोनों एक साथ वचन दोष उत्पन्न कर रहे हैं ..एक नज़र देखिये 

इस सुन्दर दोहावली के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें 

सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 14, 2014 at 9:45pm

आदरणीय अशुतोष भाई , दोहों की सराहना के लिये आपका बहुत आभार ॥

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 14, 2014 at 7:51pm

खाली मन चिंता करे , मन का बस ये काम

बांधो इसको काम से , कभी न दो आराम

 

जब तक मन का राज है, मानो उसकी बात   

तू राजा जिस दिन हुआ , मन की क्या औकात    ...आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..वाकई कमल के दोहे ..मन पे व्यापक चिंतन से ओतप्रोत ये दोहे ..इनमे गेयता है और जीवन के लिए सार्थक संदेश भी ..आपको तहे दिल बधाअयीए के साथ सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 14, 2014 at 5:03pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई , दोहों की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ॥

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 14, 2014 at 11:14am

आदरणीय भाई गिरिराज जी, सटीक संदेशप्रद दोहावली के लिये हार्दिक बधाई l

खाली मन चिंता करे , मन का बस ये काम

बांधो इसको काम से , कभी न दो आराम

 

बहुत खूब .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय गिरिराज भाई,  प्रदत्त चित्र से उमगता बालसुलभ उत्साह सहज ही शाब्दिक हुआ है। बधाई बधाई…"
54 minutes ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी चित्र को सार्थक करती छंद रचना।चित्र के सभी भावों पर दृष्टि डाली है आपने।…"
2 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय गिरिराज जी वाह बहुत सुन्दर..चित्र के हर भाव को जीवंत करती रचना..हार्दिक बधाई "
2 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी चित्र को जीवंत कर दिया है आपके छंदों ने। हार्दिक बधाई स्वीकार करें"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं । हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन।चित्र को साकार करते उत्तम छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई। "
4 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"रोला छंद    आओ रे सब साथ, करेंगे मिलकर मस्ती। तोड़ेंगे  हम   आम,…"
11 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"कृपया ठेले पढ़ें।एडिट का समय निकल जाने के बाद इस टंकण त्रुटि पर ध्यान गया"
12 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"रोला छंद  _ चित्र दिखाता मस्त, एक टोली बच्चों की हैं थोड़े शैतान, मगर दिल के सच्चों की ठान…"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"रोला छंद ******** पके हुए  ढब  आम,  तोड़ने  बच्चे आये। गर्मी का उपचार, तभी यह…"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह, आदरणीय, वाह!  प्रवहमान अभिव्यक्ति पर हार्दिक बधाई शुभ-शुभ "
15 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service